Exclusive: 'सऊदी-पाकिस्तान' समझौते में US-चीन, भारत पर हमला न करे सऊदी अरब मगर पाक की मदद करेगा, सतर्क रहें- ले. कर्नल सोढ़ी
पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच हुए “स्ट्रैटेजिक म्यूचुअल डिफेंस डील” पर रिटायर्ड लेफ्टिनेंट कर्नल जे.एस. सोढ़ी ने कहा कि यह भारत के लिए बेहद गंभीर खतरे का संकेत है. उनके मुताबिक, समझौते के पीछे चीन और अमेरिका की शह है, क्योंकि दोनों भारत से नाराज़ हैं. भले सऊदी अरब भारत पर सीधा हमला न करे, लेकिन पाकिस्तान की सैन्य मदद करना उसकी कानूनी ज़िम्मेदारी बन गई है. सोढ़ी ने चेतावनी दी कि भारत को अब हर स्तर पर अलर्ट मोड में आना होगा.;
“पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच बुधवार (17 सितंबर 2025) को NATO देशों की तर्ज पर हुआ “रणनीतिक आपसी रक्षा-समझौता (स्ट्रैटेजिक म्यूचुअल डिफेंस डील Strategic Mutual Defense Agreement) भारत के लिए बेहद चिंता का विषय है. चिंता का विषय यह भी है कि पाकिस्तान ने न केवल अपनी सैन्य-मदद के लिए सऊदी अरब से समझौता किया है. चिंता की यह भी बात है कि भारत के मजबूत इस्लामिक-दोस्त-देश समझे जाने वाले सऊदी-अरब का, भारत के लिए भविष्य में बेहद खतरनाक साबित होने वाले समझौते की हमें (भारत को) भनक तक नहीं लगी. दूसरे, यह समझौता उस पाकिस्तान के साथ हुआ है जिसे हाल ही में (6-7 मई 2025 को आधी रात) ऑपरेशन सिंदूर (Operation Sindoor) में भारत धूल चटाए बैठा है.''
''मैं मानता हूं कि सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच हुआ यह द्विपक्षीय बेहद खास सैन्य-सुरक्षा समझौता टाला नहीं जा सकता था. फिर भी हमारी एजेंसियों को इस समझौते के बारे में कम से कम वक्त रहते भनक तो लग गई होती, वह भी तो नहीं हो सका. फिलहाल तो यही कहूंगा कि पाकिस्तान ने अपने हित में यह बहुत बड़ा काम कर लिया है. इस समझौते के नफा-नुकसान का हिसाब-किताब तो वक्त के साथ ही संभव हो सकेगा. हां, इतना जरूर है कि इस द्विपक्षीय समझौते के पीछे चतुर-चालबाज चीन और मक्कार-मतलबपरस्त धूर्त अमेरिका का हाथ जरूर होगा. चीन भारत से पहले से ही खार खाये बैठा है. 50 फीसदी टैरिफ की चाल को जब भारत ने भाव नहीं दिया तो इससे अमेरिका भी हाल-फिलहाल के वक्त में बौखलाया-बौराया तो घूम ही रहा है भारत से. ऐसे में भले ही सऊदी अरब और अमेरिका के बीच कभी संबंध मधुर न रहे हों लेकिन जब भारत से हिसाब चुकता करने का सवाल अमेरिका के सामने होगा तो कोई बड़ी बात नहीं है कि, अमेरिका ने ही पाकिस्तान को भारत के खिलाफ उसे ताकतवर बनाने की गरज से और भारत को नीचा दिखाने के लिए, यह समझौता (पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच) करने के लिए पाकिस्तान को उकसाया हो.''
भारत के सामने सौ सवाल
यह तमाम बेबाक और बेहद अहम अंदर की बातें बयान की हैं भारत की थलसेना के रिटायर्ड लेफ्टिनेंट कर्नल जे एस सोढ़ी ने. जे एस सोढ़ी गुरुवार को (18 सितंबर 2025) को नई दिल्ली में मौजूद स्टेट मिरर हिंदी के एडिटर इनवेस्टीगेशन से ‘एक्सक्लूसिव’ बात कर रहे थे. उन्होंने कहा, “इस एक समझौते ने भारत के सामने सौ सवाल खड़े कर दिये हैं. साथ ही इस एक समझौते ने भारत को चौकन्ना हो जाने का भी इशारा कर दिया है. वैसे वैश्विक, कूटनीतिक, सामरिक-सैन्य और विदेश नीति के मामलों में कभी कुछ स्थाई नहीं होता है. सब कुछ समय काल पात्र जरूरत के हिसाब से इधर-उधर होकर बदलता रहता है. बुधवार को लेकिन जिस तरह का समझौता सऊदी अरब और पाकिस्तान ने करके दुनिया को चौंका दिया है, यह भारत की नजर से बेहद गंभीर विषय है. हालांकि, कहने को इस तरह का समझौता साल 2015 में भी पाकिस्तान और सऊदी अरब को लेकर हो चुका था. उस वक्त के समझौते में शुरुआती दौर में 34 देश जुड़े थे. जिनकी संख्या बढ़कर बाद में 44 पहुंच गई. तब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ हुआ करते थे. अब उन्हीं नवाज शरीफ के भाई शहबाज शरीफ जब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री हैं, तब 10 साल बाद यह दूसरा समझौता हुआ है.”
10 साल पहले हुआ समझौता इसके सामने कुछ नहीं
स्टेट मिरर हिंदी के एक सवाल के जवाब में भारतीय फौज के सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट कर्नल जसविंदर सिंह सोढ़ी बोले, “अब से 10 साल पहले सन् 2015 में हुए समझौते और अब हुए समझौते को अगर पैनी नजर से देखें तो कई भिन्नताएं भी हैं. मसलन, वह समझौता कई देशों के बीच हुआ था. उस समझौते में शिया-सुन्नी के मुद्दे पर ईरान इराक और सीरीया जैसे कुछ देश शामिल नहीं हुए थे. अब जो समझौता हुआ है वह तो द्विपक्षीय समझौता है जो सिर्फ और सिर्फ सऊदी अरब व पाकिस्तान के बीच, वह भी बाकायदा लिखित में हुआ है. लिखित में हुए समझौते का वजन हर नजरिए से हमेशा बेहद अहम कहिए या फिर भारी रहता है. इन तमाम बिंदुओं को देखते हुए कह सकता हूं कि दस साल पहले हुआ समझौता भारत के लिए अब हुए समझौते की तुलना में कुछ भी दुष्परिणाम देने वाला नहीं था. अब हुआ यह द्विपक्षीय समझौता तो सीधे-सीधे सऊदी अरब और पाकिस्तान में से किसी के भी ऊपर हुए हमले के दौरान, दूसरे उस देश को सैन्य मदद की खुलेआम कानूनी स्वंत्रता देगा, जिस देश के ऊपर हमला नहीं हुआ होगा.”
शायद भारत पर सीधा हमला न बोले सऊदी अरब
मान लीजिए भारत ने अगर दुबारा पाकिस्तान पर “ऑपरेशन सिंदूर” जैसा कोई हमला किया तो, अब सऊदी अरब को किसी से पूछने की जरूरत नहीं है. न ही ऐसे वक्त में पाकिस्तान को सऊदी अरब से मदद मांगने की कोई जरूरत होगी. अपनी समझ से सऊदी अरब की ऐसे में अब स्वत: जिम्मेदारी बन जाती है कि वह पाकिस्तान की सैन्य मदद करे. एक सवाल के जवाब में भारतीय थलसेना के पूर्व लेफ्टिनेंट कर्नल सोढ़ी बोले, “देखिए बेशक भारत के सऊदी अरब के साथ संबंध क्यों और कितने भी दोस्ताना हों. मगर अब इस समझौते के तहत तो सऊदी अरब पाकिस्तान के ऊपर किसी दूसरे देश द्वारा किए गए हमले के समय में पाकिस्तान की मदद करने के लिए कानूनन बंध ही गया है. हां, यह हो सकता है कि मुसीबत में पाकिस्तान की सऊदी अरब सैन्य मदद करे और भारत पर मगर वो उसके साथ अपने पुराने दोस्ताना संबंधों के चलते हमला न बोले.”
भारत से खार खाए चीन-अमेरिका की भी रही होगी शह
जिस सऊदी अरब और अमेरिका की हमेशा ठनी ही रहती थी उस सऊदी अरब से, अमेरिका का पाला हुआ पाकिस्तान बिना चीन और अमेरिका की सहमति के हाथ मिलाने की जुर्रत कर सकता है? पूछने पर पूर्व लेफ्टिनेंट कर्नल ने कहा, “देखिए विदेश नीति, सामरिक, अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक संबंधों में कभी कोई देर तक किसी का दुश्मन नहीं होता. दूसरे, ऐसे में दोस्त का दुश्मन अपना दोस्त भी बना लिया जाता है. इस वक्त भारत ने 50 परसेंट टैरिफ के मुद्दे पर मक्कार अमेरिका और उसके मास्टरमाइंड राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को हाल ही में चीन में आयोजित संघाई सहयोग संगठन की बैठक में, भारत ने जिस कूटनीतिक तरीके से खामोशी के साथ बेदम किया है, उससे अमेरिका और भी ज्यादा बौखलाया हुआ है. अमेरिका हर हाल में भारत को नीचा दिखाने की कोशिश में जुटा है. ऐसे में अगर चीन और अमेरिका के पास रोता हुआ पाकिस्तान सऊदी अरब के साथ यह द्विपक्षीय समझौता करने की योजना का ब्लू प्रिंट लेकर पहुंचा होगा, तो भारत के धुर विरोधी दोनों देश (अमेरिका चीन) भला पाकिस्तान को किसी उस काम से क्यों रोकेंगे जिससे भारत के लिए मुसीबत खड़ी हो रही हो. मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि पाकिस्तान जिस तरह से अमेरिका चीन के टुकड़ों पर पल रहा है, उस दृष्टि से वह इस तरह का कोई समझौता बिना अमेरिका-चीन को बताए नहीं कर सकता है. भले ही अमेरिका और सऊदी अरब के बीच क्यों न बीते कई साल से ठनी रही हो, मगर अमेरिका को जब लगा कि पाकिस्तान के कंधे पर रखकर चलाने से अगर भारत का कहीं किसी तरह से कोई नुकसान हो रहा हो, तब फिर उसे अपने दुश्मन देश सऊदी अरब से पाकिस्तान का समझौता हो जाने देने में भला कोई आपत्ति क्यों?”
मक्कार पाकिस्तान दे रहा क्षेत्रीय वैश्विक शांति को मजबूती की दलील
यहां जिक्र करना जरूरी है कि 17 सिंतबर 2025 को ही पाकिस्तान-सऊदी अरब ने “स्ट्रैटेजिक म्यूचुअल डिफेंस डील” पर लिखित समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं. इसके तहत किसी भी एक देश के ऊपर हुआ हमला, दोनों देशों (पाकिस्तान-सऊदी अरब) के ऊपर किया गया हमला माना जाएगा. हालांकि, मक्कार पाकिस्तान ने इस समझौते पर दलील दी है कि इससे सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच क्षेत्रीय वैश्विक शांति को मजबूती मिलेगी. साथ ही दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग की भावना भी स्थायित्व की ओर बढ़ेगी. यह समझौता पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की सऊदी अरब यात्रा के दौरान किया गया है. इस यात्रा के दौरान उनका सऊदी अरब में स्वागत वहां के अल यमामा पैलेस में क्राउन प्रिंस और प्रधानमंत्री मोहम्मद बिन सलमान ने किया. पाकिस्तान के लिए बेहद अहम इस यात्रा के दौरान पाकिस्तानी प्रधानमंत्री की भेंट रियाद के डिप्टी गवर्नर मुहम्मद बिन अब्दुलरहमान बिन अब्दुलअज़ीज से भी हुई. सऊदी अरब के इस दौरे में पाकिस्तानी प्रतिनिधि मंडल में विदेश मंत्री इशाक डार, रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ, वित्त मंत्री मुहम्मद औरंगजेब, पर्यावरण मंत्री मुसादिक मलिक विशेष सहायक तरीक फातिमी सहित पाकिस्तानी सूचना मंत्री अत्ताउल्लाह तारड़ भी मौजूद थे.
पाक-चीन-अमेरिका को भारत के खिलाफ जो भी करना है खुलकर कर रहे
भारतीय थलसेना के पूर्व लेफ्टिनेंट कर्नल जे एस सोढ़ी के मुताबिक, “पाकिस्तान चीन अमेरिका को भारत के खिलाफ जो कुछ करना है, वे खुलकर कर रहे हैं. अब इन बदलते हालातों में भारत को बेहद चौकन्ना होकर रहना है. अब भारत को भूलना होगा कि नेपाल, भूटान, बंग्लादेश, श्रीलंका हमारी कोई विशेष मदद कर पाने की स्थिति में होंगे. बंग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका की अपनी ही अंदरूनी हालत बदतर है. बचा ले देकर भूटान. उसे खुद भारत ही आगे बढ़ा रहा है. तब ऐसे में जब चीन, पाकिस्तान, अमेरिका अगर एक हो चुके हैं, फिर तो भारत को और भी ज्यादा अलर्ट मोड पर आ जाना चाहिए. भारत को अपनी सैन्य क्षमता को तो अपडेट करना ही होगा. साथ ही उसे आर्थिक मोर्चे पर भी खुद को मजबूत बनाना होगा. क्योंकि कुछ नहीं पता कि पाकिस्तान, सऊदी अरब जैसों को कब चीन और अमेरिका भारत के खिलाफ उकसा बैठें.”