ट्रंप के टैरिफ बम भारत के लिए 'मौका-मौका', 1991 का जिक्र कर आनंद महिंद्रा ने बताया कैसे शुरू करें नई आर्थिक क्रांति

डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर लगाए गए 25% अतिरिक्त टैरिफ के बाद, महिंद्रा ग्रुप के चेयरमैन आनंद महिंद्रा ने इसे एक 'मंथन' का क्षण बताया है. उन्होंने दो प्रमुख सुधार सुझाए - Ease of Doing Business में क्रांतिकारी बदलाव और पर्यटन को विदेशी मुद्रा कमाने के बड़े साधन के रूप में विकसित करना. इसके अलावा उन्होंने MSME, PLI और इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने की भी बात कही.;

( Image Source:  X/anandmahindra )
Curated By :  नवनीत कुमार
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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर लगाए गए अतिरिक्त 25% टैरिफ ने वैश्विक व्यापार जगत में हलचल मचा दी है. इस फैसले से भारतीय वस्तुओं पर अमेरिका में कुल 50% आयात शुल्क लगेगा, जिससे भारत की कई प्रमुख इंडस्ट्रीज़, विशेषकर फार्मास्युटिकल्स और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर पर नकारात्मक असर पड़ने की आशंका है. इसे केवल एक चुनौती के रूप में नहीं, बल्कि एक चेतावनी के रूप में देखा जा रहा है कि भारत को अब अपनी आर्थिक और कारोबारी रणनीतियों में तेजी से बदलाव लाना होगा.

इस स्थिति पर महिंद्रा ग्रुप के चेयरमैन आनंद महिंद्रा की प्रतिक्रिया बेहद सोच-समझ और दूरदर्शी रही है. उन्होंने इसे एक 'मंथन' की स्थिति कहा है, जैसे 1991 में विदेशी मुद्रा संकट भारत के लिए एक बड़ा मोड़ साबित हुआ था, वैसे ही यह संकट भी भारत को एक नए आर्थिक युग की ओर ले जा सकता है. महिंद्रा ने अपने सुझावों में दो मुख्य बातों पर जोर दिया है: Ease of Doing Business में क्रांतिकारी सुधार और पर्यटन क्षेत्र को विदेशी मुद्रा अर्जित करने के इंजन के रूप में विकसित करना. इसके साथ ही MSME, पीएलआई और इंफ्रास्ट्रक्चर पर भी विशेष ध्यान देने की जरूरत बताई गई है. उनका स्पष्ट संदेश है - अब नहीं तो कब?

ट्रंप के टैरिफ का असर और भारत के लिए चेतावनी

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारतीय वस्तुओं पर अतिरिक्त 25% टैरिफ लगाने का फैसला भारत के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है. इससे अमेरिका में भारतीय वस्तुओं पर कुल आयात शुल्क 50% हो जाएगा. इस कदम को वैश्विक व्यापार के परिप्रेक्ष्य में ‘टैरिफ युद्ध’ का विस्तार कहा जा सकता है. भारत के सामने यह स्पष्ट संकेत है कि उसे वैश्विक आर्थिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए अपनी रणनीति तुरंत बदलनी होगी.

आनंद महिंद्रा की प्रतिक्रिया और मंथन की तुलना

महिंद्रा ग्रुप के चेयरमैन आनंद महिंद्रा ने इस फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए इसे एक “मंथन” की स्थिति करार दिया है. उन्होंने अपने सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा कि यह समय भारत के लिए आत्ममंथन का है, जैसे 1991 का विदेशी मुद्रा संकट था, जिसने भारत को आर्थिक सुधारों की राह पर डाल दिया था. महिंद्रा ने पूछा, “क्या यह वैश्विक मंथन भारत के लिए भी कोई अमृत लेकर आएगा?”

‘Ease of Doing Business’ में क्रांतिकारी सुधार

आनंद महिंद्रा का पहला मजबूत सुझाव है कि भारत को व्यापार करने की प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए क्रांतिकारी कदम उठाने होंगे. उन्होंने सुझाव दिया कि केंद्र और राज्यों को मिलकर एक प्रभावी सिंगल-विंडो क्लीयरेंस सिस्टम तैयार करना चाहिए, जिससे विदेशी निवेशकों को तेजी, सरलता और भरोसे के साथ काम करने का अवसर मिले. उन्होंने कहा कि यदि भारत निवेशकों को भरोसा दे पाए, तो वह ग्लोबल पूंजी के लिए सबसे पसंदीदा गंतव्य बन सकता है.

पर्यटन को बनाया जाए विदेशी मुद्रा का इंजन

महिंद्रा का दूसरा सुझाव पर्यटन क्षेत्र को लेकर है. उन्होंने इसे सबसे कम इस्तेमाल की गई विदेशी मुद्रा कमाने की क्षमता वाला क्षेत्र बताया. उन्होंने कहा कि भारत को वीज़ा प्रोसेसिंग को तेज़ करना चाहिए, पर्यटकों के लिए सुविधाएं और सुरक्षा बढ़ानी चाहिए और प्रमुख पर्यटन स्थलों के आसपास विशेष 'टूरिज्म कॉरिडोर' विकसित करने चाहिए. ये कॉरिडोर सुरक्षा, स्वच्छता और सेवा के आदर्श बन सकते हैं और पूरे देश में पर्यटन के स्तर को ऊपर उठा सकते हैं.

एमएसएमई और पीएलआई जैसे क्षेत्रों पर भी ध्यान देने की जरूरत

महिंद्रा ने अपने पोस्ट में इस संकट से उबरने के लिए व्यापक सुधारों की जरूरत पर भी बल दिया. उन्होंने MSMEs को मजबूत करने, बुनियादी ढांचे के विकास की रफ्तार बढ़ाने, और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को मजबूती देने के लिए प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) योजनाओं का विस्तार करने की बात कही. साथ ही, उन्होंने आयात शुल्क को युक्तिसंगत बनाने की सलाह दी ताकि भारतीय उत्पाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धी बन सकें.

‘Unintended Consequences’ को बनाएं रणनीतिक अवसर

महिंद्रा ने अपने पोस्ट में 'Unintended Consequences' (अनजाने परिणामों) की धारणा को दोहराया. उन्होंने कहा कि अमेरिका की नीति से भारत को भी अपने राष्ट्रहित में दूरदर्शिता और रणनीतिक साहस दिखाने की प्रेरणा मिलनी चाहिए. “हम दूसरों को उनके राष्ट्रहित के लिए दोष नहीं दे सकते, लेकिन हमें अपने राष्ट्र को और महान बनाने की प्रेरणा ज़रूर लेनी चाहिए,” उन्होंने कहा.

यह संकट एक अवसर है, न कि केवल चुनौती

महिंद्रा ने इस पूरी स्थिति को केवल चुनौती के रूप में नहीं देखा, बल्कि इसे एक अवसर के रूप में प्रस्तुत किया. उन्होंने कहा कि वैश्विक पूंजी और निवेश के लिए भारत को एक भरोसेमंद, स्थिर और आकर्षक विकल्प बनने का यह उपयुक्त समय है. उन्होंने इसे ‘1991 के आर्थिक मोड़’ की तरह का एक और निर्णायक क्षण बताया, जिसमें भारत को निर्णायक रुख अपनाने की आवश्यकता है.

क्या था 1991 का दौर?

1991 में भारत बहुत बड़े आर्थिक संकट से जूझ रहा था. देश के पास सिर्फ़ तीन हफ्ते का ही विदेशी मुद्रा भंडार बचा था, जिससे जरूरी सामान भी बाहर से नहीं मंगाया जा सकता था. इसकी सबसे बड़ी वजह थी ज़रूरत से ज़्यादा आयात और सोवियत संघ का टूटना, जो भारत का बड़ा व्यापारिक साथी था. उस वक़्त भारत और सोवियत संघ के बीच रुपये में कारोबार होता था, लेकिन उसके बिखरने के बाद भारत की अर्थव्यवस्था लड़खड़ा गई.

मनमोहन सिंह ने दी नई सोच

इस मुश्किल घड़ी में जून 1991 में कांग्रेस की नई सरकार बनी और पी॰वी॰ नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री बने. उन्होंने मनमोहन सिंह को वित्त मंत्री बनाया और दोनों ने मिलकर भारत में आर्थिक सुधारों की नींव रखी. उन्होंने 'लाइसेंस राज' को खत्म किया, जिससे कारोबार शुरू करने के लिए अब सैकड़ों सरकारी मंजूरी की ज़रूरत नहीं रही. साथ ही, विदेशी निवेश को मंज़ूरी दी गई और आयात शुल्क घटा दिए गए. इन फैसलों से भारत के लिए दुनिया के दरवाज़े खुले और आर्थिक रफ्तार तेज़ हो गई.

भारत ने पलट दिया था खेल

इन सुधारों की वजह से भारत तेज़ी से आगे बढ़ा. लाखों नई नौकरियां बनीं और देश की अर्थव्यवस्था में जान आ गई. 1991-92 में जहां विदेशी निवेश सिर्फ़ 13.2 करोड़ डॉलर था, वो 1995-96 तक 5.3 अरब डॉलर तक पहुंच गया. गरीबी भी घटी, हालांकि इसका असर गांवों की बजाय शहरों में ज़्यादा दिखा. लेकिन इतना ज़रूर है कि इन सुधारों ने भारत को नई दिशा दी और देश एक खुली अर्थव्यवस्था की तरफ बढ़ गया. राव और मनमोहन की इस सोच को बाद में किसी भी सरकार ने पलटने की हिम्मत नहीं की.

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