वक्फ कानून को लेकर सुप्रीम कोर्ट में होगी सुनवाई, अब 1995 का मूल कानून भी कटघरे में
सुप्रीम कोर्ट में आज वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 पर सुनवाई होगी, जहां कानून की वैधता को चुनौती दी गई है. कई याचिकाएं इसे असंवैधानिक और तुष्टिकरण का प्रतीक बता रही हैं. कुछ ने 1995 के वक्फ एक्ट को भी धार्मिक भेदभाव वाला करार दिया है. केंद्र सरकार ने कैविएट दाखिल कर कोर्ट से अनुरोध किया है कि किसी भी अंतरिम आदेश से पहले उसका पक्ष सुना जाए.;
सुप्रीम कोर्ट में वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर बुधवार यानी आज अहम सुनवाई होने जा रही है. यह मामला इसलिए भी महत्वपूर्ण बन गया है क्योंकि अदालत के समक्ष केवल संशोधित कानून ही नहीं, बल्कि 1995 के मूल वक्फ एक्ट की संवैधानिकता को भी चुनौती दी गई है. न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, पीवी संजय कुमार और केवी विश्वनाथन की तीन सदस्यीय पीठ इन याचिकाओं पर सुनवाई करेगी.
अब तक सुप्रीम कोर्ट में 20 से अधिक याचिकाएं दाखिल की जा चुकी हैं, जिनमें से अधिकांश में संशोधित अधिनियम को अल्पसंख्यक तुष्टीकरण और असंवैधानिक करार देते हुए रद्द करने की मांग की गई है. कुछ याचिकाओं ने तो मूल वक्फ अधिनियम 1995 को भी धार्मिक आधार पर भेदभावकारी बताते हुए उसकी वैधता पर सवाल उठाए हैं.
केंद्र सरकार भी सुनाएगी अपना पक्ष
खास बात यह है कि केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में ‘कैविएट’ दायर कर यह आग्रह किया है कि कोई भी अंतरिम आदेश पारित करने से पहले उसका पक्ष जरूर सुना जाए. दरअसल, कुछ याचिकाओं में संशोधन पर तत्काल अंतरिम रोक की मांग की गई है, जिसे सरकार ने एकतरफा सुनवाई के जरिए पारित न करने का आग्रह किया है.विपक्षी पार्टी ने दायर की याचिका
इस बहस में विभिन्न राजनीतिक दल और सामाजिक संगठन भी खुलकर सामने आए हैं. एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी, कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद और इमरान प्रतापगढ़ी, तृणमूल कांग्रेस की महुआ मोइत्रा, आम आदमी पार्टी के अमानतुल्ला खान सहित कई विपक्षी नेताओं ने इस कानून को मुस्लिम समुदाय के अधिकारों के लिए नुकसानदेह बताते हुए याचिकाएं दाखिल की हैं.हरिशंकर जैन ने भी उठाए सवाल
वहीं, वक्फ कानून के मूल ढांचे पर सवाल उठाने वालों में सुप्रीम कोर्ट के वकील हरिशंकर जैन और उत्तर प्रदेश की पारुल खेड़ा शामिल हैं. इन्होंने दावा किया है कि वक्फ अधिनियम गैर-मुस्लिमों, विशेष रूप से हिंदुओं के साथ संपत्ति अधिकारों में भेदभाव करता है, और इसे पूरी तरह से असंवैधानिक घोषित किया जाना चाहिए.