'यौन उत्पीड़न में आरोपित कुलपति को माफ़ किया जा सकता है, लेकिन...' - सुप्रीम कोर्ट ने कहा - अपनी सीवी में करें...
सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल के एनयूजेएस के कुलपति निर्मल कांति चक्रवर्ती पर लगे यौन उत्पीड़न के आरोपों को खारिज कर दिया. अदालत ने कहा कि ऐसे कृत्य माफ किए जा सकते हैं, लेकिन अपराधी के साथ हमेशा बने रहेंगे. कोर्ट ने आदेश दिया कि कुलपति अपने रिज़्यूमे में इस मामले का उल्लेख करें. पीड़िता की शिकायत समय सीमा से बाहर मानी गई थी, लेकिन अदालत ने संस्थागत जवाबदेही और महिलाओं की सुरक्षा पर ज़ोर दिया.;
सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल स्थित नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ ज्यूडिशियल साइंसेज (NUJS) के कुलपति (वी-सी) प्रो. निर्मल कांति चक्रवर्ती के खिलाफ दायर यौन उत्पीड़न मामले को खारिज तो कर दिया, लेकिन एक अनूठा आदेश भी दिया.
अदालत ने कहा कि भले ही ऐसे आरोप माफ़ किए जा सकते हैं, लेकिन उन्हें “गलत करने वाले के साथ हमेशा के लिए रहना चाहिए.” अदालत ने निर्देश दिया कि कुलपति के रिज़्यूमे में इस मामले का उल्लेख अनिवार्य रूप से किया जाए ताकि उनकी पूर्व शिकायतों का रिकॉर्ड सार्वजनिक रूप से दर्ज रहे.
मामला क्या था?
यह मामला तब सामने आया जब विश्वविद्यालय की एक महिला फैकल्टी सदस्य ने आरोप लगाया कि कुलपति ने जुलाई 2019 में पद ग्रहण करने के बाद उसे निजी लाभ का लालच देकर व्यक्तिगत संबंध बनाने के लिए कहा. 8 सितंबर 2019 को कुलपति ने उसे अपने कार्यालय बुलाकर डिनर पर चलने का आग्रह किया और कहा कि इससे उसका “व्यक्तिगत लाभ” होगा. आरोप है कि इस दौरान उन्होंने महिला का हाथ पकड़कर उसे असहज कर दिया. महिला ने विरोध किया और वहां से लौट गई.
इसके बाद अक्टूबर 2019 में फिर से कुलपति ने उसे बुलाकर वही प्रस्ताव दोहराया. जब महिला ने साफ़ तौर पर कहा कि वह केवल पेशेवर संबंध रखना चाहती है, तब आरोप है कि कुलपति ने सेक्सुअल फेवर की मांग की और इनकार करने पर करियर को नुकसान पहुंचाने की धमकी दी.
प्रमोशन रोकी गई और पद से हटाया गया
महिला ने आरोप लगाया कि अक्टूबर 2019 में उसका प्रमोशन रोक दिया गया जो कि अप्रैल 2022 में जाकर मंज़ूर हुआ. इसके बाद अप्रैल 2023 में कुलपति ने उसे रिसॉर्ट यात्रा का प्रस्ताव दिया जिसे महिला ने अस्वीकार कर दिया. इसके बाद धमकी दी गई कि उसका करियर बर्बाद कर दिया जाएगा. अगस्त 2023 में उसे सेंटर ऑफ़ फ़ाइनेंशियल, रेगुलेटरी एंड गवर्नेंस स्टडीज़ (CFRGS) के निदेशक पद से हटा दिया गया.
शिकायत और समय सीमा का विवाद
महिला ने 26 दिसंबर 2023 को औपचारिक शिकायत दर्ज कराई, जबकि कथित उत्पीड़न की घटनाएं अप्रैल 2019 से अप्रैल 2023 तक हुई थीं. लोकल कंप्लेंट कमेटी (LCC) ने शिकायत को “समय सीमा से बाहर” बताते हुए खारिज कर दिया क्योंकि शिकायत निर्धारित तीन महीने और विस्तारित छह महीने की अवधि से कहीं बाद दर्ज की गई.
जांच और अन्य आरोप
उसी समय महिला पर अनियमितता से जुड़ी शिकायतें भी उठीं. उन पर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) से प्राप्त ग्रांट के दुरुपयोग और नेशनल फाउंडेशन ऑफ़ कॉरपोरेट गवर्नेंस (NFCG) से जुड़े मुद्दों की जांच शुरू हुई. रिपोर्ट में ₹1,00,000 की राशि तुरंत लौटाने का आदेश दिया गया। अदालत ने माना कि यह प्रशासनिक कार्रवाई यौन उत्पीड़न से संबंधित नहीं है.
अदालत का फैसला
न्यायमूर्ति पंकज मिथल और न्यायमूर्ति प्रसन्ना बी वराल की पीठ ने कहा कि शिकायत समय सीमा से बाहर है. लेकिन अदालत ने यह भी कहा, “ऐसे कृत्य भले ही माफ़ कर दिए जाएं, लेकिन उन्हें हमेशा अपराधी के साथ बने रहने देना चाहिए ताकि भविष्य में उसे याद रहे.” अदालत ने निर्देश दिया कि कुलपति अपने रिज़्यूमे में इस मामले का उल्लेख करेंगे और व्यक्तिगत रूप से इसकी अनुपालना सुनिश्चित करेंगे.
न्यायिक और सामाजिक संदेश
यह फैसला एक ऐतिहासिक मिसाल है. अदालत ने यौन उत्पीड़न जैसे मामलों में पीड़िता की शिकायत को खारिज किया, लेकिन साथ ही अपराधी के लिए जवाबदेही सुनिश्चित की. अदालत का संदेश स्पष्ट है - कानूनी तकनीकीताओं के आधार पर मामला भले ही खारिज हो जाए, लेकिन नैतिक जिम्मेदारी से कोई नहीं बच सकता.
महिलाओं की सुरक्षा और संस्थागत जवाबदेही
विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला यौन उत्पीड़न की शिकायतों के समय सीमा से जुड़ी जटिलताओं को उजागर करता है. साथ ही, यह बताता है कि संस्थानों में शक्ति के असमान उपयोग से उत्पन्न मुद्दों का समाधान केवल कानूनी प्रक्रिया तक सीमित नहीं है. महिलाओं की सुरक्षा, शिकायत तंत्र की विश्वसनीयता और अपराधियों की सार्वजनिक जवाबदेही पर आगे गंभीर विचार की आवश्यकता है.