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'जनता का भरोसा रखने के लिए जांच...', CBI से जुड़े मामले में SC ने दिल्ली HC के फैसले को रखा बरकरार, कहा- पहली नजर में अफसर दोषी

CBI अफसर से जुड़े मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश को बरकरार रखते हुए कहा कि पहली नजर में अफसर दोषी दिखाई देते हैं. अदालत ने कहा कि इस तरह के मामलों में दूसरों की आम जनता का विश्वास बनाए रखने के लिए जांच करने वालों की भी जांच होनी चाहिए. नहीं तो मैसेज गलत जाएगा.

जनता का भरोसा रखने के लिए जांच..., CBI से जुड़े मामले में SC ने दिल्ली HC के फैसले को रखा बरकरार, कहा- पहली नजर में अफसर दोषी
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( Image Source:  ANI )

सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई अफसरों के अपराध से जुड़े एक मामले में अहम टिप्पणी करते हुए साफ किया है कि भ्रष्टाचार या गंभीर आरोपों से जुड़े मामलों में किसी भी अफसर को बख्शा नहीं जा सकता. CBI अफसर से जुड़े मामले में अदालत ने दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए जांच को सही ठहराया है. सुप्रीम कोर्ट ने 10 सितंबर को दिल्ली हाई कोर्ट के उस आदेश को बरकरार रखा, जिसमें 2000 की एक घटना को लेकर पूर्व सीबीआई संयुक्त निदेशक नीरज कुमार और निरीक्षक विनोद कुमार पांडे के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का निर्देश दिया गया था. अदालत ने आरोपियों से कहा, "यह सही समय है कि कभी-कभी व्यवस्था में आम जनता का विश्वास बनाए रखने के लिए जांच करने वालों की भी जांच होनी चाहिए."

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस पंकज मित्तल और जस्टिस पी.बी. वराले की पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट के 26 जून 2006 के फैसले को पढ़ने से पता चलता है कि सीबीआई के जिन अधिकारियों पर आरोप लगाया गया है, उन्होंने अपने पेशागत कर्तव्यों के निर्वहन में अनियमितताएं की हैं. इतना हीं नहीं, पहली नजर में वे कथित अपराधों के लिए दोषी लगते हैं."

पहली नजर में दोनों अफसर दोषी

शीर्ष अदालत ने कहा, "शिकायतों और याचिकाओं में दिए गए बयानों से साफ है कि दोनों अधिकारियों ने मिलीभगत से काम किया. आरोप है कि उनमें से एक अधिकारी विनोद कुमार पांडे ने वरिष्ठ अधिकारी नीरज कुमार के इशारे पर काम किया था. सवाल यह कि क्या विनोद कुमार पांडे ने नीरज कुमार की सलाह या इशारे पर काम किया या दोनों की इसमें मिलीभगत थी. इस मामले की जांच होनी चाहिए."

इससे पहले दिल्ली हाईकोर्ट ने इस मामले में विजय अग्रवाल और शीश राम सैनी की याचिकाओं पर जांच का आदेश दिया था. अग्रवाल ने अपने भाई द्वारा दोनों अधिकारियों पर अपने भाई द्वारा दर्ज कराई गई शिकायत वापस लेने के लिए दबाव डालने का आरोप लगाया. जबकि सैनी की याचिका में संबंधित समय में सीबीआई में प्रतिनियुक्ति पर रहे अधिकारियों द्वारा दस्तावेजों की जब्ती के दौरान प्रक्रियात्मक अनियमितताओं, धमकी और पद के दुरुपयोग का आरोप लगाया गया था. साल 2013 में सेवानिवृत्त हुए कुमार दिल्ली पुलिस आयुक्त भी रह चुके हैं.

अफसरों के अपराध गंभीर

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट ने "विजय अग्रवाल पर अपने भाई की शिकायत वापस लेने के लिए दबाव डालने के मकसद से अभद्र भाषा का प्रयोग करने सहित दुर्व्यवहार, धमकी और धमकियों के आरोपों को गंभीर और निराधार नहीं माना था." सीबीआई के पूर्व अफसरों का यह आचरण गंभीर प्रकृति का था. यह पहली नजर में भारतीय दंड संहिता के तहत संज्ञेय अपराधों की श्रेणी में आता है."

याची के आरोपों को हल्के में नहीं ले सकते

अदालत ने कहा कि सीबीआई ने आरोपों की प्रारंभिक जांच की थी और निष्कर्ष निकाला था कि कोई अपराध नहीं बनता है. अफसरों पर दुर्व्यवहार तथा जबरदस्ती के आरोप निराधार हैं. फिर भी उच्च न्यायालय ने माना था कि "आरोपों की सत्यता या सत्यता की जांच प्रारंभिक जांच के चरण में नहीं की जा सकती थी. ऐसे आरोप, गंभीर प्रकृति के होने के कारण, हल्के में नहीं लिए जा सकते."

विजय अग्रवाल और सैनी ने पुलिस द्वारा उनकी शिकायतों पर एफआईआर दर्ज करने से इनकार करने के बाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. उसी आधार पर हाईकोर्ट ने यदि याचिकाओं पर विचार करने और दोनों अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का निर्देश देने में अपने विवेक का प्रयोग किया है, तो यह संतुष्ट होने पर कि उनके खिलाफ प्रथम दृष्टया संज्ञेय अपराध का मामला बनता है, हमें ऐसे विवेकाधिकार में हस्तक्षेप करने का कोई उचित कारण नहीं दिखता."

हालांकि, अदालत ने कहा कि "संज्ञेय अपराधों के संबंध में हाईकोर्ट द्वारा व्यक्त की गई राय केवल प्रारंभिक जांच पर आधारित है. इसे इसी रूप में माना जाना चाहिए. ताकि जांच के बाद जांच अधिकारी के विवेकाधिकार पर कोई प्रभाव न पड़े."

जस्टिस पंकज मित्तल ने कहा, "यह कहना अतिश्योक्ति होगी कि यह अपराध वर्ष 2000 में किया गया था और आज तक इसकी जांच नहीं होने दी गई. अगर ऐसे अपराध की जांच नहीं की जाती, खासकर जब सीबीआई में प्रतिनियुक्ति पर तैनात अधिकारी ही संलिप्त हों तो यह न्याय के साथ खिलवाड़ होगा. कानून में यह अनिवार्य है कि न्याय न केवल किया जाए, बल्कि न्याय होते हुए भी दिखना चाहिए."

एसीपी स्तर का अधिकारी करे इसकी जांच

बता दें कि दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली पुलिस के विशेष प्रकोष्ठ द्वारा जांच का निर्देश दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया है कि जांच "दिल्ली पुलिस द्वारा ही की जाए, लेकिन सहायक पुलिस आयुक्त के पद से नीचे के अधिकारी द्वारा नहीं."

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