सहमति वाले संबंध को 'रेप’ बताने की प्रवृत्ति पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, टूटे रिश्तों को आपराधिक रंग देने पर कड़ी चेतावनी

सुप्रीम कोर्ट ने सहमति से बने रिश्तों को ‘रेप’ का रंग देने की बढ़ती प्रवृत्ति पर कड़ी नाराज़गी जताई है. कोर्ट ने कहा कि टूटे या असफल रिश्तों को आपराधिक मामला बनाना न सिर्फ रेप जैसे गंभीर अपराध को हल्का करता है, बल्कि आरोपी पर स्थायी कलंक लगाता है और अन्याय भी है. एक वकील के खिलाफ झूठे रेप केस को रद्द करते हुए कोर्ट ने कहा कि आपराधिक न्याय प्रणाली के दुरुपयोग की कड़ी निंदा होनी चाहिए.;

( Image Source:  sci.gov.in )
Edited By :  प्रवीण सिंह
Updated On : 25 Nov 2025 11:45 AM IST

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि सहमति से बने संबंधों को ‘रेप’ का रूप देना न केवल आपराधिक न्याय व्यवस्था का दुरुपयोग है, बल्कि इससे बलात्कार जैसे गंभीर अपराध की वास्तविकता भी कमजोर होती है. कोर्ट ने साफ तौर पर कहा कि इस तरह के मामलों में आरोपी पर “अमिट कलंक” लगता है और उसके साथ “गंभीर अन्याय” होता है.

यह टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट ने तब की, जब उसने एक महिला द्वारा अपने ही वकील पर लगाए गए रेप के आरोपों को खारिज कर दिया. पीठ में जस्टिस बी. वी. नागरत्ना और जस्टिस आर. महादेवन शामिल थे. उन्होंने कहा कि कोर्ट कई बार इस “चिंताजनक प्रवृत्ति” को नोट कर चुका है कि टूटे या असफल संबंधों को आपराधिक रूप दे दिया जाता है, जबकि रेप का मामला केवल तभी बनता है जब वास्तविक यौन हिंसा, जबरदस्ती या सहमति का पूर्ण अभाव हो.

न्याय व्यवस्था का दुरुपयोग गंभीर चिंता का विषय

पीठ ने कहा, “हर कड़वे अनुभव या बिगड़े संबंध को रेप का केस बना देना न केवल इस अपराध की गंभीरता को कम करता है, बल्कि आरोपित पर गहरा अन्याय भी करता है. ऐसे मामले सिर्फ निजी विवाद नहीं रहते, बल्कि न्याय व्यवस्था के दुरुपयोग का रूप ले लेते हैं, जो गहरी चिंता का विषय है और जिसकी स्पष्ट रूप से निंदा की जानी चाहिए.”

क्या था मामला?

मामले के अनुसार, पीड़िता अपने अलग रह रहे पति से गुज़ारा भत्ता (maintenance) दिलाने के लिए उस अधिवक्ता से मिली थी. इस दौरान दोनों के बीच नज़दीकियां बढ़ीं और सितंबर 2022 में वह गर्भवती हुईं. लेकिन बाद में यह गर्भपात दोनों की सहमति से कराया गया. आगे चलकर दो और बार महिला का गर्भपात हुआ. बाद में महिला ने आरोप लगाया कि वकील ने उससे शादी करने से इनकार कर दिया और धमकी दी कि यदि उसने यह बात सार्वजनिक की तो जान से मार देगा.

वहीं, आरोपी वकील का कहना था कि उनका संबंध आपसी सहमति पर आधारित था और जब उसने महिला को 1.5 लाख रुपये देने से मना किया, तभी उसने उसके खिलाफ मामला दर्ज कराया.

पिछले हफ्ते भी कोर्ट ने दी थी कड़ी नसीहत

दिलचस्प है कि ठीक पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट ने एक अन्य केस में भी ऐसी ही सख्त टिप्पणी की थी. उस मामले में एक महिला वकील ने अपने शादीशुदा क्लाइंट पर ‘शादी का वादा’ करने का आरोप लगाते हुए रेप का केस दर्ज कराया था. तब कोर्ट ने उससे पूछा, “आप इस झंझट में क्यों पड़ीं? आपको अपने क्लाइंट्स के साथ पेशेवर दूरी बनाए रखनी चाहिए.”

कोर्ट का संदेश स्पष्ट

सुप्रीम कोर्ट की दो टूक राय यह है कि रेप का कानून किसी निजी रिश्ते की विफलता को आपराधिक मामले में बदलने का साधन नहीं है. ऐसे मामले बलात्कार जैसे गंभीर अपराध को हल्का दिखाते हैं. इससे न केवल आरोपी को नुकसान होता है, बल्कि वास्तविक पीड़िताओं के लिए न्याय भी कठिन हो जाता है.

इस निर्णय ने एक बार फिर साफ किया है कि सहमति वाले संबंधों को जबरदस्ती रेप केस में बदलना न्याय व्यवस्था के लिए खतरनाक है और ऐसे मामलों में न्यायालय भविष्य में भी सख्त रुख अपना सकता है.

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