Tejas Crash: ‘स्वदेशी लड़ाकू’ की अधूरी उड़ान… 24 साल की यात्रा, सवाल अब भी वहीं खड़े; क्या वाकई तैयार है भारत का अपना फाइटर?
Tejas Crash: दुबई एयर शो में तेजस लड़ाकू विमान के क्रैश ने भारत के स्वदेशी फाइटर प्रोग्राम पर नए सवाल खड़े कर दिए हैं. यह तेजस का दूसरा और पहला जानलेवा हादसा है. 40 साल पुराने LCA प्रोग्राम में विकास, डिलीवरी और इंजन प्रदर्शन जैसी समस्याएँ अब भी जारी हैं. IAF तेजस की क्षमता और HAL की धीमी गति से असंतुष्ट दिखती है. MiG-21 के रिटायर होने के बाद तेजस पर भरोसा बढ़ा है, लेकिन प्रदर्शन में सुधार आवश्यक है.;
Tejas Crash: दुबई एयर शो के चमकते आसमान में भारतीय वायुसेना का तेजस लड़ाकू विमान जब अंतिम बार करतब दिखा रहा था - तो शायद ही किसी को अंदाज़ा था कि कुछ ही सेकेंड बाद एक ऐसा हादसा होगा जो देश की सबसे महत्वाकांक्षी स्वदेशी फाइटर प्रोग्राम की साख पर फिर से बहस छेड़ देगा.
21 नवंबर 2025, दोपहर 2:10 बजे. तेजस ने एक हाई-G मनूवर लिया, संतुलन बिगड़ा और विमान सीधा जमीन की ओर गिर पड़ा. जोरदार धमाके ने पूरे एयर शो को स्तब्ध कर दिया. इस हादसे में पायलट की मौत हो गई. यह तेजस का 24 साल के ऑपरेशनल इतिहास में दूसरा क्रैश था, लेकिन पहला जानलेवा.
‘तेजस’ की उड़ान लंबी रही, लेकिन मंज़िल अब भी दूर
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट बताती है कि यह हादसा सिर्फ एक दुर्घटना नहीं, बल्कि उस लंबे, जटिल और बार-बार की देरी स्वदेशी लड़ाकू परियोजना का एक और विवादित अध्याय है, जो 1980 के दशक में शुरू हुई थी पर आज भी अपने ‘पूर्ण क्षमता’ के मुकाम तक नहीं पहुंच पाई है. तेजस की कहानी गर्व और चुनौतियों, दोनों का संगम है - पर सवाल यह है कि ‘दुनिया के सबसे हल्के सुपरसोनिक फाइटर’ का टैग क्या आज भी उसके प्रदर्शन को जस्टिफाई कर पाता है?
तेजस पर बढ़ता भरोसा… पर सवाल भी उतने ही बड़े
अक्टूबर में MiG-21 के रिटायर होते ही तेजस पर भार और बढ़ गया. उसे IAF की बैकबोन बनने की जिम्मेदारी दी जा रही है. IAF ने अब तक 182 तेजस Mk1A की खरीद ऑर्डर की है, और भविष्य में यह संख्या 351 तक पहुंचाने की योजना है. यानी साफ है - तेजस सिर्फ एक विमान नहीं, बल्कि आने वाले दशक में भारतीय वायुसेना की रीढ़ बनने की रणनीति है.
लेकिन दूसरी तरफ कई अहम सवाल आज भी जस के तस खड़े हैं -
- क्षमता का स्तर इतना कम क्यों बताया जा रहा है?
- डिलीवरी में इतना बड़ा विलंब क्यों?
- इंजन प्रदर्शन के मुद्दे कब तक जारी रहेंगे?
विकास में देरी - LCA प्रोग्राम की सबसे बड़ी कमजोरी
तेजस, एयरोनॉटिकल डेवलपमेंट एजेंसी (ADA) द्वारा डिज़ाइन और HAL द्वारा निर्मित एक सिंगल-इंजन, डेल्टा-विंग मल्टीरोल फाइटर है. पर इसकी विकास यात्रा आसान नहीं रही.
- LCA प्रोग्राम की शुरुआत: 1980s
- पहला उड़ान परीक्षण: 2001
- वायुसेना में आधिकारिक एंट्री: 2015
- कुल ऑपरेशनल स्क्वाड्रन (अब तक): सिर्फ 2 (38 विमान)
14 वर्षों तक लगातार डिज़ाइन बदलाव, तकनीकी समस्याएं और इंजन मुद्दों ने इस प्रोजेक्ट को बार-बार धीमा किया. यह देरी आज भारतीय वायुसेना को सबसे ज्यादा चोट पहुंचा रही है, क्योंकि स्क्वाड्रन स्ट्रेंथ तेज़ी से कम हुई है.
IAF का गुस्सा - ‘भरोसा नहीं रहा’, एयर चीफ़ ने कहा था
फरवरी में एयर चीफ़ मार्शल अमर प्रीत सिंह ने HAL पर बेहद सख्त टिप्पणी की थी. उन्होंने कहा था, “मुझे भरोसा नहीं रहा. मुझे कहा गया था कि फरवरी तक 11 तेजस Mk1A तैयार होंगे… एक भी तैयार नहीं है. HAL मिशन मोड में नहीं दिखता.” यह बयान सिर्फ नाराज़गी नहीं, बल्कि एक देश की एयर पावर के भविष्य पर मंडराते खतरे की चेतावनी था. वायुसेना की स्वीकृत स्क्वाड्रन संख्या 42 है जबकि फिलहाल उसके पास केवल 29 स्क्वाड्रन ही उपलब्ध हैं. अब MiG-29, Jaguar और Mirage 2000 भी 2035 तक रिटायर होने वाले हैं. ऐसे में तेजस की देरी एक गंभीर सामरिक समस्या बनती जा रही है. IAF कई वर्षों से तेजस की प्रदर्शन क्षमता को लेकर ‘संकोच’ व्यक्त करता रहा है. एयर चीफ़ ने साफ कहा था, “सिर्फ सॉफ्टवेयर बदल देने से लड़ाकू क्षमता नहीं बढ़ती. मज़ा नहीं आ रहा है.”
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सबसे बड़ा विवाद - इंजन की कमज़ोरी
LCA प्रोग्राम की सबसे गंभीर असफलता Kaveri इंजन रहा. DRDO के GTRE को 1980s में एक इंडिजिनस इंजन बनाने का काम दिया गया था. पर 20 साल में भी इंजन किसी भी मानक पर खरा नहीं उतर पाया. DRDO ने विदेशी मदद (Pratt & Whitney) ठुकराई, इंजन लगातार उम्मीद से कम प्रदर्शन करता रहा और 2008 में इसे तेजस से अलग कर दिया गया. इसके बाद अमेरिकी GE F404 इंजन लगाया गया, जो 1980 के दशक का है. यह इंजन F-16, Gripen जैसे विमानों के इंजनों से कमजोर है और हाई-एल्टीट्यूड में परफॉर्मेंस गिराता है. साथ ही लोड-कैरींग क्षमता को सीमित करता है.
तेजस Mk2 के लिए नया GE F414 इंजन लाया जा रहा है, लेकिन यह अभी भी विकास के शुरुआती चरण में है. एक IAF टेस्ट पायलट ने The Indian Express को 2017 में कहा था, “LCA अपने दम पर युद्ध से लौट आए, इसकी उम्मीद नहीं की जा सकती.”
क्या तेजस भविष्य है? या एक ‘प्रोग्राम’ जो बहुत ज्यादा आत्मविश्वास में खो गया?
स्वदेशी तकनीक हमेशा गर्व की बात है. तेजस ने भारत को उन देशों की सूची में रखा, जो अपना लड़ाकू विमान बनाते हैं. यह उसकी सबसे बड़ी उपलब्धि है, और रहेगी भी. लेकिन 40 साल की यात्रा, भारी बजट, लगातार देरी, इंजन की कमज़ोरी, परफॉर्मेंस का संतोषजनक स्तर न मिलना - इन सबने तेजस को एक ‘अधूरी सफलता’ बना दिया है. वायुसेना को आधुनिक, शक्तिशाली और तुरंत उपलब्ध फाइटर्स की तलाशी है, जबकि तेजस अभी भी विकास की सीढ़ी चढ़ रहा है.
तेजस Mk2 - आखिरी उम्मीद?
Mk2 भारत की आखिरी बड़ी कोशिश है जिसमें बेहतर एवियोनिक्स, F414 इंजन, लंबी रेंज, अधिक हथियार क्षमता, फ्यूचर युद्ध के अनुरूप डिजाइन- ये सब होंगे. लेकिन इसकी पहली उड़ान 2027 से पहले संभव नहीं मानी जा रही. और इंडक्शन? शायद 2032–2033 के बाद. यानी IAF की मौजूदा जरूरतें फिर HAL के इंतजार में अटक जाएंगी.
तेजस क्रैश सिर्फ एक हादसा नहीं - यह एक चेतावनी है
दुबई एयर शो का यह हादसा एक बड़ा सवाल दोबारा उठाता है कि क्या भारत का स्वदेशी लड़ाकू विमान कार्यक्रम अपनी क्षमता के अनुसार डिलीवर कर पा रहा है? भारत को अब जल्द ही यह तय करना होगा कि क्या HAL और DRDO पर पूरा दांव खेलते हुए सुधार के लिए कठोर कदम उठाए जाएं? या फिर विदेशी फाइटर्स के साथ एक हाइब्रिड मॉडल अपनाकर वायुसेना की तत्काल जरूरतें पूरी की जाएं? दुबई का यह हादसा शायद तेजस प्रोग्राम के लिए वह मोड़ है जहां आत्मसंतोष छोड़कर हकीकत का सामना करना पड़ेगा.