Tariff Controversy: ट्रंप क्यों बदल रहे बार-बार बयान, क्या सता रहा भारत को खोने का गम?

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अक्सर अपने बयानों से सुर्खियों में रहते हैं. पिछले कुछ दिनों से पीएम मोदी को लगातार वो नया-नया बयान दे रहे हैं. कभी उनके पक्ष में तो कभी चेतावनी भरे लहजे में. एससीओ मीटिंग के बाद तो वे चीन से भी नाखुश चल रहे हैं. कभी रूस तो कभी भारत पर दिए गए उनके उलझे हुए बयान अमेरिकी राजनीति ही नहीं, वैश्विक परिदृश्य में भी चर्चा का विषय बने हैं. हाल ही में भारत को लेकर ट्रंप के बदलते रुख ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या उन्हें भारत से दूरी बनाने का डर सता रहा है?;

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अमेरिका और विश्व राजनीतिक पटल पर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपने बयानबाजी और अचानक रुख बदलने के लिए जाने जाते हैं. ताजा घटनाक्रम में भारत को लेकर दिए गए उनके बयान एक बार फिर चर्चा में है. कभी भारत की तारीफ, कभी आलोचना और कभी साझेदारी पर संदेह, ट्रंप की यह महज रणनीति और राजनीति दोनों है. संभवत: उन्हें भारत को खोने का डर सता रहा है. फिर, सवाल यह है कि वे ऐसा कर क्यों रहे हैं, तो इसका जवाब यह हो सकता है कि यह उनकी चुनावी मजबूरी हो.

बता दें कि अमेरिका के वर्जीनिया और न्यू जर्सी प्रांत में गवर्नर के चुनाव तो न्यूयॉर्क सिटी में मेयर चुनाव हैं. ये चुनाव ट्रंप के लिए प्रतिष्ठा का सवाल है. वह रिपब्लिकन पार्टी को हर हाल में जीतना चाहते हैं. न्यूयॉर्क सिटी मेयर चुनाव भी वहां की राजनीति में अहम मायने रखता है.

 ट्रंप ने कब, क्या दिया बयान?

एक सप्ताह पहले पीएम मोदी को लेकर उन्होंने कहा था, "हमने भारत को चीन के हाथों खो दिया है." न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक ट्रंप ने 5 और 6 सितंबर को ट्रूथ पर लिखा, "ऐसा लगता है कि हमने भारत और रूस को सबसे गहरे, सबसे अंधकारमय चीन के हाथों खो दिया है, लेकिन बाद में उन्होंने मीडिया से कहा,"मुझे नहीं लगता कि मैंने मोदी को खो दिया, वे महान प्रधानमंत्री हैं और वे हमेशा दोस्त रहेंगे." उन्होंने आगे कहा, "भारत और अमेरिका के बीच बहुत खास रिश्ता है. इसमें चिंता की कोई बात नहीं है."

शंघाई सम्मेलन को बताया था जमावड़ा

इससे पहले शंघाई शिखर सम्मेलन को लेकर एक टीवी चैनल के साथ साक्षात्कार में तंज कसते हुए कहा था, 'यह चीन, रूस और भारत का एक मंच पर जमावड़ा है. हम एक साथ लंबे और समृद्ध भविष्य की कामना करते हैं!”

शी ने अमेरिका का जिक्र तक नहीं किया

उन्होंने चीन की विक्ट्री परेड पर शी जिनपिंग को निशाने पर लेते हुए कहा, 'शी दोस्त हैं, लेकिन मैं हैरान हूं कि वहां अमेरिका का जिक्र ही नहीं हुआ.' उन्होंने कहा, 'हमने आजादी दिलाने में चीन की बहुत मदद की है और उसके श्रेय के हकदार हैं.' एक दिन पहले ही ट्रंप ने ट्रुथ सोशल पर पोस्ट के जरिए उम्मीद जताई थी कि शी अपने भाषण में अमेरिका का भी जिक्र करेंगे, लेकिन उन्होंने खासतौर से अमेरिका का नाम नहीं लिया.

ट्रंप के बयान महज जुबानी खेल नहीं

विश्व राजनीति के जानकारों का कहना है कि ट्रंप की बयानबाजी महज जुबानी खेल नहीं है बल्कि ये उनकी राजनीति की रणनीति है. वो जानते हैं कि मीडिया और जनता उनकी हर बात को पकड़ती है, इसलिए वो इसे अपने पक्ष में इस्तेमाल करते हैं. ट्रंप की राजनीति और बयानबाजी दोनों एक-दूसरे से गहराई से जुड़े हैं.

ट्रंप अक्सर इमोशनल और तीखे शब्दों का इस्तेमाल करते हैं. वो कई बार ऐसे बयान देते हैं जो सुर्खियों में बने रहें, भले ही उनका तथ्यात्मक आधार कमजोर हो. उनकी शैली 'पॉपुलिस्ट' है. मतलब साफ है वह आक्रामक और जनता की भावनाओं को छूने वाली है.

अमेरिकी राष्ट्रपति के हर बयान का राजनीतिक मकसद होता है. चाहे वो घरेलू वोटरों को साधना हो या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संदेश देना. भारत, चीन, रूस या यूरोप पर दिए गए उनके बयान अमेरिकी चुनावी राजनीति से भी जुड़े होते हैं, क्योंकि वहां की भारतीय, एशियाई या प्रवासी आबादी और उद्योगपतियों पर उनके बयानों का असर पड़ता है. बयान बदलने की रणनीति भी राजनीति है. ट्रंप हालात देखकर टोन बदलते हैं ताकि उन्हें अधिक से अधिक फायदा मिले.

डोनाल्ड ट्रंप चुनावी मौसम में हमेशा विवादित और ध्यान खींचने वाले बयान देते रहे हैं. उनका मकसद समर्थकों को जोड़े रखना और विरोधियों को असमंजस में डालना होता है. भारत पर उनके बयानों में भी यही रणनीति झलकती है. कभी मजबूत सहयोगी बताया तो कभी व्यापार और रणनीतिक साझेदारी पर सवाल खड़ा करना, यह मैसेज देता है.

भारत-अमेरिका रिश्तों की अहमियत

ट्रंप भारत को लेकर ऐसा इसलिए कर रहे हैं कि भारत आज वैश्विक राजनीति में एक बड़ी ताकत बनकर उभरा है. वह अन्य देशों की तरह उनके आगे-पीछे नहीं घूमता. अमेरिका के लिए चीन का मुकाबला करने में भारत अहम भूमिका निभाता है. ट्रंप इसे समझते भी हैं, लेकिन घरेलू राजनीति और अमेरिकी मतदाताओं के हिसाब से वे अक्सर बयान बदल देते हैं. यही वजह है कि भारत को लेकर उनका रुख स्थिर नहीं दिखाई देता.

भारत को खोने का डर या चुनावी हथकंडा?

डोनाल्ड ट्रंप का बार-बार बयान बदलना कहीं न कहीं भारत की बढ़ती कूटनीतिक ताकत से भी जुड़ा है. अगर भारत अमेरिका से दूरी बनाता है तो इसका सीधा असर एशिया-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिकी रणनीति पर पड़ेगा. ट्रंप जानते हैं कि भारत को खोना उनके लिए बड़ी राजनीतिक भूल होगी.

ट्रंप के बयान पर मोदी का रिएक्शन

अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के लगातार बयान सामने आने के बार शनिवार को पीएम मोदी की पहली प्रतिक्रिया दी. उन्होंने ट्रंप के बयानों का जवाब देते हुए एक्स पर पोस्ट लिखा, “राष्ट्रपति ट्रंप की भावनाओं और हमारे संबंधों के सकारात्मक मूल्यांकन की गहराई से सराहना करता हूं और पूरी तरह से पारस्परिक भावना रखता हूं. भारत और अमेरिका के बीच एक बहुत सकारात्मक और दूरदर्शी, व्यापक एवं वैश्विक रणनीतिक साझेदारी है.”

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