तालिबानी विदेश मंत्री की प्रेस कॉन्‍फ्रेंस में महिलाओं की एंट्री बैन, विपक्ष ने कहा - महिला अधिकारों के दावे सिर्फ चुनावी नारे

दिल्ली में अफगान विदेश मंत्री आमिर खान मुत्तकी की प्रेस कॉन्फ्रेंस में महिला पत्रकारों की एंट्री पर रोक ने देशभर में तीखा विरोध भड़का दिया. विपक्षी नेताओं प्रियंका गांधी, चिदंबरम और महुआ मोइत्रा ने इसे भारतीय महिलाओं और लोकतंत्र का अपमान बताया. यह प्रेस कॉन्फ्रेंस अफगान दूतावास में आयोजित थी, जहां तालिबानी अधिकारियों ने ही महिला पत्रकारों को बाहर रखने का फैसला लिया.;

( Image Source:  ANI )
Edited By :  प्रवीण सिंह
Updated On :

दिल्ली में शुक्रवार को अफगानिस्तान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्तकी की प्रेस कॉन्फ्रेंस सुर्खियों में रही, लेकिन वजह उनके बयान नहीं बल्कि महिलाओं की गैरमौजूदगी थी. इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में महिला पत्रकारों को प्रवेश नहीं दिया गया, और केवल चुनिंदा पुरुष रिपोर्टरों को ही आमंत्रित किया गया. यह घटना दिल्‍ली में हुई, ठीक कुछ घंटे बाद जब मुत्तकी ने विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर से मुलाकात की थी.

इससे न केवल पत्रकार समुदाय बल्कि देश की राजनीति में भी तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आईं. विपक्षी दलों ने केंद्र सरकार पर सवाल उठाए कि तालिबान के लैंगिक भेदभाव को भारत की धरती पर क्यों स्वीकार किया गया. आलोचकों का कहना है कि यह घटना सिर्फ एक प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं, बल्कि महिलाओं के अधिकारों और स्वतंत्रता पर सीधा प्रहार है, वह भी ऐसे देश में, जो खुद को दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में गर्व से पेश करता है.

अफगानिस्तान के विदेश मंत्री मुत्तकी की यह प्रेस कॉन्फ्रेंस नई दिल्ली स्थित अफगान दूतावास में आयोजित की गई थी. इसमें केवल कुछ चुनिंदा पुरुष पत्रकारों को बुलाया गया, जबकि किसी भी महिला पत्रकार को आमंत्रण नहीं दिया गया. सूत्रों के अनुसार, प्रेस कॉन्फ्रेंस में किसे बुलाया जाएगा, यह निर्णय मुत्तकी के साथ आए तालिबानी अधिकारियों ने किया था. भारतीय पक्ष ने सुझाव दिया था कि महिला पत्रकारों को भी आमंत्रण सूची में शामिल किया जाए, लेकिन तालिबान प्रतिनिधिमंडल ने इसे अस्वीकार कर दिया. यह कदम तालिबान शासन के उस रवैये की झलक देता है, जिसकी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लगातार निंदा होती रही है, यानी महिलाओं को शिक्षा, रोजगार और सार्वजनिक जीवन से दूर रखना.

राजनीतिक प्रतिक्रियाएं : भारतीय महिलाओं का अपमान

यह घटना सामने आते ही भारत में राजनीतिक हलचल मच गई. पूर्व गृह मंत्री पी. चिदंबरम ने कहा कि पुरुष पत्रकारों को प्रेस कॉन्फ्रेंस से बाहर निकल जाना चाहिए था जब उन्होंने पाया कि उनकी महिला सहयोगियों को बाहर रखा गया है.

“मैं स्तब्ध हूं कि महिला पत्रकारों को प्रेस कॉन्फ्रेंस से बाहर रखा गया. पुरुष पत्रकारों को तुरंत वॉकआउट करना चाहिए था,” - चिदंबरम ने X (पूर्व ट्विटर) पर लिखा.

प्रियंका गांधी वाड्रा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सवाल किया कि उनकी सरकार ने इस अपमानजनक घटना की अनुमति क्यों दी.

“प्रधानमंत्री मोदी जी, कृपया स्पष्ट करें कि तालिबान मंत्री की प्रेस कॉन्फ्रेंस में महिला पत्रकारों को क्यों हटाया गया? क्या आपके महिला अधिकारों के दावे सिर्फ चुनावी नारे हैं?”

टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा ने इसे “हर भारतीय महिला का अपमान” बताया.

“सरकार ने तालिबान मंत्री को महिला पत्रकारों को बाहर रखने की अनुमति देकर देश की हर महिला का अपमान किया है. यह शर्मनाक और रीढ़विहीन कदम है,” - मोइत्रा ने कहा.

भारत की कूटनीतिक दुविधा: व्यावहारिकता बनाम सिद्धांत

इस घटना ने भारत की कूटनीतिक स्थिति को भी असहज बना दिया है. एक ओर, भारत अफगानिस्तान के साथ मानवीय और आर्थिक सहयोग बढ़ाने की दिशा में काम कर रहा है, जिसमें तकनीकी सहायता, दवा आपूर्ति और एयर कॉरिडोर बढ़ाना शामिल है. दूसरी ओर, तालिबान की महिला विरोधी नीतियों ने भारत की लोकतांत्रिक और नैतिक छवि पर सवाल खड़े कर दिए हैं. कई विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को तालिबान से बातचीत करनी पड़ रही है क्योंकि अफगानिस्तान में जमीनी वास्तविकता बदल चुकी है, लेकिन ऐसे आयोजनों में भारतीय संवैधानिक मूल्यों का अपमान नहीं होना चाहिए था. यह पहली बार है जब तालिबान का कोई शीर्ष प्रतिनिधि खुले तौर पर भारत आया और यहां मीडिया से बातचीत की, लेकिन महिलाओं को बाहर रखकर, उन्होंने अफगानिस्तान की दमनकारी सच्चाई को दिल्ली के बीचोंबीच दोहरा दिया.

तलिबान ने कहा, “हर देश के रीति-रिवाजों का सम्मान करें”

जब मुत्तकी से महिला अधिकारों पर सवाल पूछा गया, तो उन्होंने जवाब देने से परहेज किया. उन्होंने कहा, “हर देश की अपनी परंपराएं, कानून और मूल्य होते हैं, और उनका सम्मान किया जाना चाहिए.” मुत्तकी ने दावा किया कि तालिबान शासन के बाद अफगानिस्तान की स्थिति पहले से बेहतर हुई है. उन्‍होंने कहा, “तालिबान के आने से पहले हर दिन 200–400 लोग मरते थे. अब चार साल में ऐसा नहीं हुआ. कानून लागू हैं, और सबको अधिकार मिले हैं.”

उन्होंने यह भी कहा कि अफगान जनता खुश है, क्योंकि देश में शांति लौटी है. लेकिन अंतरराष्ट्रीय रिपोर्टें कुछ और कहती हैं. संयुक्त राष्ट्र और मानवाधिकार संगठनों के मुताबिक, तालिबान शासन के तहत महिलाओं को स्कूल, कॉलेज, नौकरी और सार्वजनिक जीवन से पूरी तरह बाहर रखा गया है.

तालिबान की हकीकत का आईना और भारत की प्रतिक्रिया

दिल्ली में हुई यह घटना उस “नई स्थिरता” की पोल खोलती है, जिसका दावा तालिबान बार-बार करता है. अफगान विदेश मंत्री जब यह कह रहे थे कि “सबको अधिकार मिले हैं,” उसी समय महिला पत्रकारों को प्रेस कॉन्फ्रेंस के दरवाजे पर रोक दिया गया था. यह न केवल तालिबान की मानसिकता का प्रतिबिंब है, बल्कि भारत के लिए भी एक कूटनीतिक नैतिक चुनौती बन गया है. भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में, जहां महिला पत्रकारिता और स्वतंत्र प्रेस गर्व का विषय हैं, वहां तालिबान की इस शर्त को स्वीकार किया जाना कई लोगों के लिए अस्वीकार्य है. कई वरिष्ठ पत्रकारों ने भी इस घटना को भारत की प्रेस स्वतंत्रता पर धब्बा बताया. एक वरिष्ठ महिला पत्रकार ने कहा, “अगर तालिबान अपने दूतावास में दिल्ली की धरती पर भी महिलाओं को बाहर रख सकता है, तो यह हमारे लोकतंत्र के लिए शर्म की बात है.”

जारी है तालिबान का दमन का चक्र

तालिबान शासन ने अगस्त 2021 में सत्ता संभालने के बाद से महिलाओं के खिलाफ लगातार कठोर कदम उठाए हैं.

  • महिलाओं के लिए स्कूल और विश्वविद्यालय बंद कर दिए गए.
  • महिलाओं को सरकारी नौकरियों और NGO कार्यों से प्रतिबंधित किया गया.
  • महिलाओं के अकेले यात्रा करने पर पाबंदी लगाई गई.
  • महिला टीवी प्रेज़ेंटर्स को चेहरा ढकने के लिए मजबूर किया गया.

संयुक्त राष्ट्र और मानवाधिकार संगठनों ने इसे “Gender Apartheid” यानी लैंगिक रंगभेद करार दिया है. अब जब यह रवैया भारत की राजधानी तक पहुंच गया है, तो सवाल यह है कि क्या भारत इसे कूटनीतिक शिष्टाचार के नाम पर नजरअंदाज करेगा या मूल्य आधारित प्रतिक्रिया देगा?

Similar News