'बिना कारण बताए गिरफ्तारी अवैध...' सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस को दिए सख्त निर्देश
Supreme Court: शुक्रवार को एक मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया है. कोर्ट ने फैसला सुनाते कहा कि अनुच्छेद 22 को मौलिक अधिकारों के तहत संविधान के भाग 3 में शामिल किया गया है. इस प्रकार गिरफ्तार किए गए और हिरासत में रखे हर व्यक्ति का मौलिक अधिकार है कि उसे जल्द से जल्द गिरफ्तारी के बारे में जानकारी दी जाए. अगर ऐसा नहीं होता तो गिरफ्तारी अवैध होगी.;
Supreme Court: देश में अपराध पर लगाम लगाने के लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकार अलग-अलग तरीके अपनाती है. पुलिस अपराध में शामिल लोगों पर कार्रवाई करते हैं और कई बार उन्हें अरेस्ट भी किया जाता है. अब सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (7 फरवरी) को बड़ा फैसला सुनाया है. कोर्ट ने कहा कि किसी भी व्यक्ति को बिना अपराध का कारण बताए गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है.
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, कोर्ट ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 22(1) के तहत किसी व्यक्ति को उसकी गिरफ्तारी की वजहों के बारे में जानकारी देना केवल एक औपचारिकता नहीं, बल्कि एक अनिवार्य संवैधानिक आवश्यकता है. इसका पालन न करने पर गिरफ्तारी अवैध मानी जाएगी. इस मामले की सुनवाई जस्टिस ए.एस. ओका और न्यायमूर्ति एन. के सिंह की पीठ ने की.
क्या है मामला?
हरियाणा पुलिस ने हाल ही में एक व्यक्ति को बिना कारण बताए गिरफ्तार किया था. इस पर बेंच ने कहा कि हरियाणा पुलिस ने यह कार्रवाई करते वक्त अनुच्छेद 22(1) का पालन नहीं किया. इसलिए यह गिरफ्तारी अवैध और आरोपी को तुरंत रिहा करने का आदेश दिया. कोर्ट ने फैसला सुनाते कहा कि अनुच्छेद 22 को मौलिक अधिकारों के तहत संविधान के भाग 3 में शामिल किया गया है. इस प्रकार गिरफ्तार किए गए और हिरासत में रखे हर व्यक्ति का मौलिक अधिकार है कि उसे जल्द से जल्द गिरफ्तारी के बारे में जानकारी दी जाए. अगर ऐसा नहीं होता तो गिरफ्तारी अवैध होगी.
इन्हें जानकारी देना अनिवार्य- SC
कोर्ट में आगे कहा, गिरफ्तारी के आधार सिर्फ गिरफ्तार व्यक्ति को ही नहीं, बल्कि उसके दोस्तों, रिश्तेदार और अन्य व्यक्तियों को देनी होगी. जिससे कानूनी प्रक्रिया के जरिए कार्रवाई को चुनौती देकर उसकी रिहाई सुनिश्चित की जा सकें. कोर्ट ने पंकज बंसल के मामले में सुझाव दिया था कि गिरफ्तारी के आधार को सूचित और आदर्श तरीका गिरफ्तारी के आधार को लिखित रूप में प्रदान करना है.
मामले पर जस्टिस ओका ने कहा कि भले ही गिरफ्तारी के आधार लिखित रूप में देने की आवश्यकता नहीं है, लेकिन इसे लिखित रूप में देने से विवाद समाप्त हो जाएगा. उन्होंने कहा कि पुलिस को हमेशा अनुच्छेद 22 की जरूरतों का कड़ाई से पालन करना चाहिए. कोर्ट ने पुलिस को सख्ती से इस अनुच्छेद का पालन करने को कहा है.