बंधुआ मजदूर नहीं हैं MBBS स्टूडेंट्स, राज्‍य नहीं थोप सकते शर्तें - सुप्रीम कोर्ट की बड़ी टिप्पणी

Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड हाई कोर्ट के एक फैसले पर यह टिप्पणी की.कोर्ट ने कहा, राज्य सरकारें MBBS के छात्रों पर जबरदस्ती शर्तें नहीं लगा सकतीं और लाखों रुपये की पेनाल्टी वसूल नहीं सकतीं. उन्हें बंधुआ मजदूर की तरह ट्रीट नहीं किया जा सकता. याचिका में हाई कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उनसे बांड न भरने पर ज्यादा फीस के साथ 18% ब्याज चुकाने को कहा गया था.;

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Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को ऑल इंडिया कोटा के एमबीबीएस छात्रों पर बांड लगाने वाले मामले पर सुनवाई की. कोर्ट ने मेडिकल कोर्स पूरा करने के बाद दूरदराज के इलाकों में काम करने के लिए छात्रों को मजबूर करने पर नाराजगी जताई. साथ ही इस तरह के व्यवहार को बंधुआ मजदूरी बताया.

सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड हाई कोर्ट के एक फैसले पर यह टिप्पणी की. जिसमें राज्य ने 2009 की अपनी नीति को बरकरार रखा था. इसके तहत एमबीबीएस छात्रों को सब्सिडी वाली फीस पर पढ़ाई पूरी करने के लिए 5 साल तक दूरदराज में सेवा देने का आदेश दिया था. इस मामले की सुनवाई जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की बेंच की.

कोर्ट की टिप्पणी

अदालत ने कहा, छात्रों ने इस संबंध में 2011 में एक याचिका दायर की थी. यह अपील उनकी ओर से थी, जिन्होंने गढ़वाल के एक कॉलेज में पढ़ाई की थी. हाई कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उनसे बांड न भरने पर ज्यादा फीस के साथ 18% ब्याज चुकाने को कहा गया था. SC ने फैसला सुनाया कि ब्याज दर 9% कर दी जाए और छात्रों को 4 हफ्तों का समय दिया जाए. कोर्ट ने यह भी कहा कि जब छात्रों ने 2011 में एडमिशन फॉर्म भरा था, तब उन्हें 2009 की इस नीति के बारे में पता था.

बेंच ने कहा कि ऑल इंडिया कोटा के छात्र राज्य कोटा के छात्रों की तुलना में अधिक मेधावी होते हैं. कोर्ट ने पूछा, इतने टैलेंटेड और होशियार छात्रों को जबरन मजदूरी करने के लिए कैसे मजबूर किया जा सकता है? इस पर उत्तराखंड सरकार ने दलील दी कि यह बांड पूरी तरह स्वैच्छिक है, और जो छात्र इसे भरते हैं, उन्हें कम फीस पर पढ़ाई करने का मौका मिलता है. सरकारी वकील ने बताया कि जो छात्र पांच साल तक सेवा नहीं करना चाहते, वे 30 लाख रुपये देकर बांड से बाहर निकल सकते हैं.

सरकार को लगाई फटकार

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, राज्य सरकारें MBBS के छात्रों पर जबरदस्ती शर्तें नहीं लगा सकतीं और लाखों रुपये की पेनाल्टी वसूल नहीं सकतीं. उन्हें बंधुआ मजदूर की तरह ट्रीट नहीं किया जा सकता. केंद्र सरकार के वकील ने कहा कि कई राज्य इस तरह की नीतियां इसलिए अपनाते हैं ताकि दूरदराज के इलाकों में डॉक्टरों की कमी न हो, क्योंकि आमतौर पर वहां कोई काम करना नहीं चाहता.

इस पर बेंच ने सवाल उठाया, कोई छात्र किसी ऐसे राज्य में सेवा कैसे दे सकता है, जहां वह रहता भी नहीं? जस्टिस सूर्यकांत ने उदाहरण देते हुए कहा कि अगर तमिलनाडु का कोई मेधावी छात्र ऑल इंडिया कोटा से उत्तराखंड के कॉलेज में एडमिशन लेता है, तो वह दूरदराज के इलाकों में सेवा कैसे देगा? मरीज अपनी बीमारी का सही तरीके से बयान नहीं कर पाएगा और डॉक्टर, चाहे जितनी भी कोशिश करे, सही इलाज नहीं कर पाएगा.

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