मणिपुर हिंसा में मारे गए इतने लोग, अमित शाह ने राज्यसभा में बताया आंकड़ा; सभी सवालों के दिए जवाब

राज्यसभा में मणिपुर हिंसा पर बोलते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने बताया कि अब तक 260 लोगों की जान जा चुकी है. उन्होंने साफ किया कि यह राजनीतिक मुद्दा नहीं बनाना चाहिए. शाह ने राष्ट्रपति शासन लगाने के कारण, महिलाओं पर हुए अत्याचार और कांग्रेस के दोहरे रवैये पर भी विपक्ष को घेरा. उन्होंने मणिपुर की पूर्ववर्ती स्थिति से वर्तमान हालात की तुलना भी की.;

Edited By :  नवनीत कुमार
Updated On :

राज्यसभा में मणिपुर हिंसा को लेकर चर्चा के दौरान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पहली बार आधिकारिक रूप से बताया कि अब तक इस संघर्ष में 260 लोगों की जान गई है. शाह ने स्वीकार किया कि अधिकतर मौतें शुरूआती 15 दिनों में हुईं जब हालात बेहद तनावपूर्ण थे और प्रशासन के लिए हालात पर काबू पाना मुश्किल हो गया था. गृह मंत्री ने विपक्ष पर तीखा हमला करते हुए कहा कि वे इस संवेदनशील मुद्दे का राजनीतिक लाभ उठाना चाह रहे हैं, जो दुर्भाग्यपूर्ण है.

तृणमूल कांग्रेस नेता डेरेक ओ'ब्रायन द्वारा महिलाओं पर हो रहे अत्याचार को लेकर उठाए गए सवाल पर शाह ने पश्चिम बंगाल की घटना का हवाला देकर विपक्ष की "दोहरे मापदंड" की आलोचना की. उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल में सैकड़ों महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार हुआ. आपकी सरकार ने कुछ नहीं किया और आपकी ही पार्टी का एक व्यक्ति इसके पीछे था जिसे आपको निलंबित करना पड़ा. हम दोनों का समर्थन नहीं करते, लेकिन आपका दोहरा रवैया नहीं हो सकता.

मणिपुर में राष्ट्रपति शासन की स्थिति स्पष्ट

शाह ने राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने के निर्णय का बचाव करते हुए कहा कि यह सरकार गिराने की मंशा से नहीं, बल्कि संवैधानिक स्थिति को बनाए रखने के लिए लिया गया कदम था. उन्होंने यह भी साफ किया कि कांग्रेस अविश्वास प्रस्ताव लाने की स्थिति में नहीं थी, और मुख्यमंत्री के इस्तीफे के बाद किसी भी पार्टी ने सरकार बनाने का दावा नहीं किया.

इतिहास से की तुलना

अमित शाह ने सात साल पहले की स्थिति को याद दिलाया, जब मणिपुर में कांग्रेस की सरकार थी और वर्ष में 225 दिन कर्फ्यू लगा रहता था. उन्होंने बताया कि उस समय मुठभेड़ों में 1500 से ज्यादा लोगों की जान गई थी, जिससे साबित होता है कि आज की स्थिति उतनी खराब नहीं है जितनी बताई जा रही है.

'जातीय हिंसा और नक्सलवाद में फर्क है'

गृह मंत्री ने जोर देकर कहा कि जातीय हिंसा और नक्सली हिंसा को एक नजरिए से नहीं देखा जा सकता, क्योंकि दोनों की प्रकृति और समाधान की दिशा अलग होती है. उनका कहना था कि दो समुदायों के बीच संघर्ष राज्य के खिलाफ युद्ध नहीं होता, और इससे निपटने का तरीका भी अलग होता है.

Similar News