बैन करें या नहीं... शराब ने जम्मू-कश्मीर की राजनीति को किया दो फाड़, कहीं मिला सपोर्ट तो कहीं विरोध

जम्मू-कश्मीर में शराब पर प्रतिबंध लगाने की मांग तेज हो गई है. हुर्रियत नेता मीरवाइज उमर फारूक, राजनीतिक दलों और धार्मिक संगठनों ने इसे लेकर विरोध जताया है. हालांकि, भाजपा और कुछ अन्य नेताओं ने इसे समर्थन दिया है. इस पर आगामी विधानसभा सत्र में तीन निजी विधेयक पेश किए जा सकते हैं. शराबबंदी से पर्यटन और राजस्व पर असर पड़ सकता है.;

Edited By :  नवनीत कुमार
Updated On : 17 Feb 2025 9:40 PM IST

जम्मू-कश्मीर में शराब की बिक्री और खपत पर प्रतिबंध लगाने की मांग जोर पकड़ रही है. इस मुद्दे पर राजनीतिक दलों, धार्मिक संगठनों और नागरिक समाज के बीच तीखी बहस हो रही है. कुछ लोग इसे नैतिकता और सामाजिक मूल्यों से जोड़ रहे हैं, जबकि अन्य इसे पर्यटन और राजस्व से संबंधित बता रहे हैं.

जम्मू-कश्मीर में शराबबंदी को लेकर लोगों की राय बंटी हुई है. जहां एक ओर सामाजिक और धार्मिक संगठनों का कहना है कि शराब समाज के लिए हानिकारक है, वहीं दूसरी ओर कुछ लोग इसे आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण मानते हैं. अब यह देखना होगा कि विधानसभा में इस पर क्या फैसला लिया जाता है और सरकार इस मुद्दे को कैसे संभालती है.

शराबबंदी की मांग क्यों उठ रही है?

शराबबंदी की यह मांग कोई नई नहीं है. जम्मू-कश्मीर में लंबे समय से धार्मिक और सामाजिक संगठन शराब की बिक्री पर रोक लगाने की मांग कर रहे हैं. उनका कहना है कि शराब की वजह से समाज में कई समस्याएं बढ़ रही हैं, जैसे अपराध, घरेलू हिंसा और युवा पीढ़ी का नशे की लत में फंसना आदि.

हुर्रियत नेता भी चाहते हैं शराबबंदी

हुर्रियत नेता मीरवाइज उमर फारूक ने भी इस मुद्दे पर अपनी आवाज उठाई है. उन्होंने कहा कि मुस्लिम बहुल क्षेत्र में शराब को बढ़ावा देना गलत है और इससे समाज पर बुरा असर पड़ेगा. उन्होंने यह भी तर्क दिया कि भारत के कई राज्यों में शराबबंदी लागू है, फिर भी वे पर्यटन को बढ़ावा देने में सफल रहे हैं.

पर्यटन पर क्या होगा असर?

कुछ राजनीतिक दलों और कारोबारियों का मानना है कि अगर जम्मू-कश्मीर में शराब पर प्रतिबंध लगाया गया, तो इससे पर्यटन उद्योग प्रभावित हो सकता है. नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता तनवीर सादिक ने तर्क दिया कि कई अरब देशों में भी पर्यटन को ध्यान में रखते हुए शराब की अनुमति दी गई है. उनका कहना है कि शराबबंदी लागू करने से जम्मू-कश्मीर में आने वाले पर्यटकों की संख्या घट सकती है. हालांकि, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के नेता वहीद पर्रा ने इस तर्क को खारिज कर दिया. उन्होंने उदाहरण दिया कि गुजरात जैसे राज्यों में शराबबंदी के बावजूद हर साल करोड़ों पर्यटक आते हैं, जिनमें लाखों विदेशी पर्यटक भी शामिल होते हैं.

सरकार और विपक्ष का क्या रुख है?

इस मुद्दे पर सत्ताधारी पार्टी और विपक्ष की राय अलग-अलग है. भाजपा ने इस मांग का समर्थन किया है. भाजपा नेता और वक्फ बोर्ड की अध्यक्ष दरख्शां अंद्राबी ने कहा कि युवाओं को नशे से बचाने के लिए यह कदम जरूरी है. जम्मू-कश्मीर के पूर्व उपमुख्यमंत्री निर्मल सिंह ने भी शराबबंदी का समर्थन किया और कहा कि धार्मिक स्थलों के पास शराब की बिक्री पूरी तरह से बंद होनी चाहिए. दूसरी ओर, सरकार का कहना है कि शराबबंदी से मिलने वाले राजस्व का भी ध्यान रखना होगा. पिछले साल जम्मू-कश्मीर सरकार ने शराब की बिक्री से 2000 करोड़ रुपये से अधिक का राजस्व अर्जित किया था.

क्या विधानसभा में पारित होगा विधेयक?

आगामी विधानसभा सत्र में शराबबंदी को लेकर तीन विधेयक पेश किए जाने की संभावना है. कई विधायक चाहते हैं कि जम्मू-कश्मीर में शराब की बिक्री और खपत पर पूरी तरह से रोक लगा दी जाए. शिवसेना (यूबीटी) ने भी इस मांग का समर्थन किया है और विरोध प्रदर्शन किया. पार्टी का कहना है कि जम्मू-कश्मीर को शराब मुक्त बनाने की दिशा में कदम उठाया जाना चाहिए.

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