छात्र को डांटना आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने क्यों पलटा मद्रास हाईकोर्ट का फैसला?

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि साधारण अनुशासनात्मक डांट आत्महत्या के लिए उकसावा नहीं। मद्रास हाईकोर्ट का निर्णय पलटते हुए न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह व प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने हॉस्टल वार्डन को बरी किया। कोर्ट ने कहा शिक्षक की मंशा सुधारात्मक थी, वह विद्यार्थी की मौत का पूर्वानुमान नहीं लगा सकता था। यह फैसला शिक्षकों और शैक्षणिक संस्थानों में उचित कानूनी सुरक्षा देता है.;

Edited By :  नवनीत कुमार
Updated On : 2 Jun 2025 9:11 AM IST

सुप्रीम कोर्ट ने एक निर्णायक टिप्पणी करते हुए कहा कि शिक्षक या वार्डन द्वारा की गई साधारण डांट-फटकार को भारतीय दंड संहिता की धारा 306 के तहत ‘आत्महत्या के लिए उकसावा’ नहीं ठहराया जा सकता है. न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने मद्रास हाईकोर्ट के उस आदेश को उलट दिया, जिसमें आरोपी को बरी करने से इनकार किया गया था.

दरअसल एक हॉस्टल इंचार्ज ने दूसरे छात्र की शिकायत पर मृतक विद्यार्थी को अनुशासनात्मक चेतावनी दी थी. चेतावनी के कुछ घंटे बाद छात्र ने अपने कमरे में फांसी लगाकर जान दे दी. स्थानीय पुलिस ने वार्डन पर आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला दर्ज किया, जिसे हाईकोर्ट ने आगे बढ़ाया. इसी आदेश के खिलाफ आरोपी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था.

कोर्ट ने क्या कहा?

पीठ ने जोर देकर कहा कि कोई भी साधारण विवेक वाला व्यक्ति यह अनुमान नहीं लगा सकता था कि एक छात्रों के बीच की शिकायत पर दी गई फटकार आत्मघाती कदम की ओर ले जाएगी. अदालत ने माना कि वार्डन की मंशा केवल सुधारात्मक थी और उसे छात्र की आत्महत्या का ‘ज्ञात परिणाम’ नहीं ठहराया जा सकता है.

चरमरा जाएगा एजुकेशन सिस्टम

फैसले में कहा गया कि विद्यालयी या हॉस्टल परिवेश में अनुशासन स्थापित करने के लिए डांटना स्वाभाविक और कभी-कभी आवश्यक प्रबंधन उपाय है. यदि प्रत्येक डांट को संभावित ‘उकसावा’ माना जाए, तो शिक्षक और प्रशासक भय और कानूनी असुरक्षा के माहौल में काम करेंगे, जिससे शैक्षणिक ढांचा चरमराएगा.

शिक्षकों को मिली कानूनी ढाल

इस निर्णय ने शैक्षणिक संस्थानों में काम करने वाले शिक्षकों और वार्डनों को एक महत्वपूर्ण कानूनी राहत दी है. अदालत ने हालांकि यह भी रेखांकित किया कि अनुशासनात्मक कार्रवाई ‘समानुपातिक’ और ‘सम्मानजनक’ होनी चाहिए. फैसला संकेत देता है कि जबकि कठोर कानून का दुरुपयोग रोका जाना चाहिए, छात्र–अध्यापक संवाद में सहानुभूति और संवेदनशीलता को प्राथमिकता देना अब भी अनिवार्य है.

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