अंतिम विदाई तक कुछ नहीं खाया, ताबूत से चिपका रहा डॉगी, रतन टाटा के बिना 'गोवा' का हाल बेहाल

Ratan Tata Dog 'Goa': रतन टाटा का कुत्ते से प्यार किसी से छिपा नहीं है. उनका कुत्ता 'गोवा' उन्हें अंतिम विदाई पर श्रद्धांजलि देने पहुंचा, जहां उसे बेहद भावुक देखा गया. उन्हें कुत्तों से बेहद प्यार था, लेकिन 'गोवा' रतन टाटा के बेहद करीब था. अंतिम दर्शन करने पहुंचा 'गोवा' शांत था और सुबह से शाम तक खाना भी नहीं खाया था.;

Ratan Tata Dog 'Goa'
Edited By :  सचिन सिंह
Updated On : 11 Oct 2024 6:09 PM IST

Ratan Tata Dog 'Goa': एक सफल इंडस्ट्रियलिस्ट, एक महान व्यक्तित्व और दयालुता के जीते-जागते मूरत रतन टाटा ने दुनिया को अलविदा तो कह दिया, लेकिन कई लोगों के पास अपना प्यार छोड़ गए. यही कारण रहा कि उनके जाने के बाद उनके प्यार और याद ने हर किसी को रुला दिया. उनके कुत्ते के साथ प्यार की कहानी बेहद इमोशनल है. यूं तो उनके पास कई कुत्ते थे, लेकिन जिसे वो बेहद प्यार करते थे, वो है उनका सबसे प्यारा डॉगी-  'गोवा'

'गोवा' उनकी मौत के अगले दिन ही टैक्सी से उनकी डेथ बॉडी के पास पहुंच गया. उसके केयर टेकर ने खुलासा किया कि रतन टाटा को हिलता-डुलता नहीं देखकर वह बेहद परेशान हो गया. उसने सुबह से शाम तक कुछ भी नहीं खाया. वो अपने प्यारे रतन को बहुत याद कर रहा. इस दौरान 'गोवा' इमोशनल भी दिखा. इस बाद ने साबित कर दिया है कि कभी-कभी जानवर इंसान से अधिक महसूस करते हैं.

ताबूत से चिपका रहा 'गोवा'

'गोवा' के केयर टेकर ने ये भी बताया कि वह रतन टाटा को इतना मिस कर रहा था कि उनकी बॉडी जिस ताबूत में रखी गई थी, 'गोवा' पूरे टाइम इससे चिपका रहा. रतन टाटा के जाने का एहसास उसे भी हो चुका था. अंतिम दर्शन से एक वीडियो खूब वायरल हो रहा, जिसमें पैपराजी 'गोवा' की तस्वीर लेने की कोशिश कर रहे थे, तभी उनके केयर टेकर ने कहा कि जाने दीजिए इसे, बेचारे ने सुबह से खाना तक नहीं खाया है. 'गोवा', एक काला कुत्ता जिसके पंजे सफेद हैं और नाक और माथे पर सफेद धब्बा है.

'गोवा' और रतन टाटा की कहानी

'गोवा' कोई साधारण कुत्ता नहीं है. उसकी एक कहानी है जो रतन टाटा के चरित्र और मूल्यों को बताती है. कई साल पहले रतन टाटा गोवा गए थे, जहां एक आवारा कुत्ता उनका पीछा करने लगा. कुत्ते की वफ़ादारी से प्रभावित होकर टाटा ने उसे गोद लेने का फ़ैसला किया और उसे मुंबई ले आए. फिर उन्होंने उसका नाम 'गोवा' रखा और उसे टाटा समूह के मुख्यालय बॉम्बे हाउस में आश्रय दिया. 'गोवा' और रतन टाटा का साथ 11 सालों का रहा. 

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