'कोई लेक्चरबाज़ी नहीं', लड़की का प्राइवेट पार्ट पकड़ना, नाड़ा तोड़ना रेप की कोशिश नहीं वाले HC के फैसले पर क्या बोला SC
हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट की एक टिप्पणी चर्चा का विषय बनी, जिसमें कहा गया कि किसी लड़की के प्राइवेट पार्ट को पकड़ना या नाड़ा तोड़ना बलात्कार या बलात्कार की कोशिश के दायरे में नहीं आता. इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी, लेकिन शीर्ष अदालत ने इस पर सुनवाई से इनकार कर दिया.;
हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट की एक टिप्पणी चर्चा का विषय बनी, जिसमें कहा गया कि किसी लड़की के प्राइवेट पार्ट को पकड़ना या नाड़ा तोड़ना बलात्कार या बलात्कार की कोशिश के दायरे में नहीं आता. इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी, लेकिन शीर्ष अदालत ने इस पर सुनवाई से इनकार कर दिया.
न्यायमूर्ति बेला त्रिवेदी और प्रसन्ना बी. वराले की पीठ ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि अदालत इस पर विचार करने के लिए इच्छुक नहीं है. सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने "बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ" योजना का उल्लेख करते हुए अपनी दलील पेश करने की कोशिश की.
क्या बोला सुप्रीम कोर्ट?
इस पर न्यायमूर्ति बेला त्रिवेदी ने बीच में ही हस्तक्षेप करते हुए कहा कि अदालत में "लेक्चरबाजी" की अनुमति नहीं दी जाएगी. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले में बदलाव या कुछ शब्द हटाने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया.
राहगीरों ने हस्तक्षेप के बाद आकाश और पवन भाग गए, कासगंज ट्र्रायल कोर्ट ने निर्दश पर दोनों पर भारतीय दंड संहिता की धारा 376 बलात्कार और POCSO अधिनियम की धारा 18 के तहत मुकदमा चल रहा है. हालांकि कोर्ट के न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा की पीठ ने निर्देश दिया कि दोनों IPC की पोक्सो अधिनियम की धारा 9/10 के तहत मुकदमा चलाया जाना चाहिए.
कहां का है मामला?
उत्तर प्रदेश के कासगंज जिले में पवन और आकाश नाम के दो व्यक्तियों पर एक नाबालिग लड़की को पुलिया के नीचे खींचने, उसके स्तनों को छूने और उसकी पजामी का नाड़ा तोड़ने का आरोप था. मामले की सुनवाई के दौरान निचली अदालत ने आरोपियों पर आईपीसी की धारा 376 (बलात्कार) और POCSO अधिनियम की धारा 18 (बलात्कार का प्रयास) के तहत मामला दर्ज किया था.
हाईकोर्ट का फैसला
इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा की पीठ ने आरोपियों द्वारा दायर आपराधिक पुनरीक्षण याचिका को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए कहा, मामले के तथ्यों के आधार पर बलात्कार के प्रयास का अपराध नहीं बनता. "बलात्कार के प्रयास का आरोप लगाने के लिए अभियोजन पक्ष को यह साबित करना होगा कि अपराध केवल 'तैयारी' से आगे बढ़कर वास्तविक 'प्रयास' की अवस्था में पहुंच चुका था. गवाहों ने यह नहीं कहा कि पीड़िता इस घटना के दौरान नग्न हो गई थी या उसके कपड़े पूरी तरह से उतर गए थे. ऐसा कोई साक्ष्य नहीं है जो यह साबित करे कि आरोपी ने पीड़िता के खिलाफ बलात्कार की कोशिश की.