मद्रास HC कोर्टरूम बना कॉमेडी शो! जातिवाद के आरोप पर जज का वकील पर तंज - 'यू आर ए कॉमेडी पीस...'

मद्रास हाईकोर्ट में 28 जुलाई को उस समय अजीबोगरीब माहौल बन गया जब एक वरिष्ठ वकील ने जज साहब पर ही जातिवादी होने का आरोप लगा दिया. जज साहब ने भी जवाब में जो कहा, उसने पूरे कोर्ट रूम को हास्य नाटक में बदल दिया. जानिए कैसे एक गंभीर सुनवाई के बाद अदालत का माहौल तनावपूर्ण हो गया और जज ने वकील साहब से कहा कि ‘यू आर ए कॉमेडी पीस....;

( Image Source:  ANI )
Edited By :  धीरेंद्र कुमार मिश्रा
Updated On : 29 July 2025 11:39 AM IST

आमतौर पर कोर्टरूम को गंभीरता, मर्यादा और न्याय का मंदिर माना जाता है, लेकिन मद्रास हाईकोर्ट में 28 जुलाई को एक मामले में न्याय के मंदिर में जज और वकील के बीच बहस हंगामे तब्दील हो गया. दरअसल, मद्रास हाईकोर्ट में सोमवार को एक असाधारण घटनाक्रम सामने आया जब जस्टिस जी.आर. स्वामीनाथन ने अधिवक्ता वंचिनाथन से सीधे तौर पर उनके एक बयान को लेकर जवाब तलब किया, जिसमें एक वकील ने जज पर आरोप लगाया था कि वो जातिवादी हैं. जज साहब ने इस मामले पर वकील से जो कहा उसने ‘कोर्टरूम को कॉमेडी’ में तब्दील कर दिया. घटना के समय जस्टिस स्वामीनाथन और जस्टिस के. राजशेखर की पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही थी.

दरअसल, घटना के समय मद्रास हाईकोर्ट में जस्टिस एसएम सुब्रमण्यम के सामने एक मामले की सुनवाई चल रही थी. बहस के दौरान एक वकील ने उन पर जाति के आधार पर पक्षपात करने का आरोप लगा दिया. इतना सुनना था कि कोर्ट में सन्नाटा छा गया, लेकिन जज साहब ने वकील से बेहद ठंडे और व्यंग्यात्मक लहजे में कहा, "You are a comedy piece, Sir!"

जातिवादी आरोप गंभीर, हम इसे हल्के में नहीं ले सकते

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक जज ने आगे यह भी कहा कि अगर ऐसे आरोपों को हल्के में लिया गया, तो पूरी न्यायपालिका पर सवाल उठेंगे.  उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि अदालत की गरिमा को बरकरार रखना जरूरी है और किसी भी जाति या व्यक्तिगत एजेंडा को न्याय प्रक्रिया में घुसने नहीं दिया जाएगा.

इसके बाद हाईकोर्ट के जज ने वकील को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि यह अदालत किसी जाति विशेष की नहीं बल्कि कानून और संविधान की है. उन्होंने स्पष्ट किया कि यदि इस तरह के अनुशासनहीन आरोपों पर रोक नहीं लगी, तो यह पूरे न्यायिक सिस्टम के लिए खतरनाक संकेत हो सकता है.

मौखिक जवाब न देने पर जज बोले...

इससे पहले सुनवाई के दौरान जब वंचिनाथन ने मौखिक रूप से जवाब देने से इनकार किया और कोर्ट से लिखित आदेश पारित करने को कहा, तब जस्टिस स्वामीनाथन ने तीखी टिप्पणी की- “यू आर ए कॉमेडी पीस… मुझे नहीं पता कि आप लोगों को किसने क्रांतिकारी कहा. आप सब कॉमेडी पीसेज हैं. “

जातिगत आरोप स्वीकार्य नहीं

जस्टिस स्वामीनाथन ने स्पष्ट किया कि किसी निर्णय की कठोर आलोचना स्वीकार्य है, लेकिन जातिगत पूर्वाग्रह जैसे आरोप एक गंभीर सीमा लांघते हैं. "श्रीमान वंचिनाथन, मुझे आपके द्वारा मेरे निर्णयों की कड़ी आलोचना से कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन जब आप जातिगत पक्षपात का आरोप लगाते हैं, तो मामला बिल्कुल अलग हो जाता है."

कोर्ट ने एक वीडियो इंटरव्यू का हवाला दिया जिसमें वंचिनाथन ने दावा किया था कि कोर्ट ने एक वरिष्ठ दलित वकील को निशाना बनाया जबकि एक ब्राह्मण वकील को बख्श दिया गया. इस पर न्यायमूर्ति ने कहा कि इस तरह के सामान्यीकृत और बिना आधार वाले बयान गंभीर चिंता का विषय हैं.

चीफ जस्टिस करेंगे इस मामले पर सुनवाई

चार साल से आप मेरी निंदा कर रहे हैं. मैंने कभी आपके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की. हम प्रक्रिया के नियमों को समझते हैं. हम मूर्ख नहीं हैं. हम इस मामले को मुख्य न्यायाधीश या उपयुक्त पीठ के समक्ष प्रस्तुत करेंगे.

पूरा इकोसिस्टम हमारे खिलाफ खड़ा हो गया है. हमें सब पता है, लेकिन हम डरने या झुकने वाले नहीं हैं. न्यायिक स्वतंत्रता सर्वोच्च है."

हाईकोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि यह कार्यवाही अवमानना की नहीं है, बल्कि केवल वंचिनाथन को यह स्पष्ट करने का अवसर देने के लिए है कि क्या वे अपने आरोपों पर अब भी कायम हैं. आदेश में दर्ज किया गया कि वकील 25 जुलाई और 28 जुलाई को व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में उपस्थित हुए. वंचिनाथन ने तर्क दिया कि यह कार्यवाही उनके द्वारा भारत के मुख्य न्यायाधीश को की गई शिकायत से जुड़ी है, जिसे कोर्ट ने सिरे से खारिज कर दिया.

अदालत ने कहा कि “हम समझ नहीं पा रहे कि किस आधार पर इस कोर्ट के खिलाफ ऐसे आरोप लगाए गए हैं. हम एक बार फिर स्पष्ट करते हैं यह कार्यवाही उस शिकायत से कोई संबंध नहीं रखती.”

अदालत ने कहा, "आपने दो बातें मान ली जिनका कोई आधार नहीं है. पहली यह कि कार्यवाही आपकी उस शिकायत से जुड़ी है जो अपने मुख्य न्यायाधीश को भेजी. दूसरी कि हमने शुक्रवार तक कोई अवमानना की कार्यवाही शुरू नहीं की थी. हम तो यह स्पष्ट करना चाहते हैं कि क्या आप जातिगत और सांप्रदायिक पूर्वाग्रह के आरोप पर कायम हैं."

8 पूर्व जजों ने की चीफ जस्टिस से हस्तक्षेप की मांग

इस बीच मद्रास हाईकोर्ट के आठ सेवानिवृत्त न्यायाधीशों- न्यायमूर्ति के. चंद्रू, न्यायमूर्ति डी. हरिपथ मन, न्यायमूर्ति एस.एस. सुंदर, न्यायमूर्ति एस. विमला आदि ने भारत के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर हस्तक्षेप की मांग की है. उनका कहना था कि न्यायिक आचरण से जुड़ी शिकायतों को संबंधित न्यायाधीश के बजाय संस्थागत रूप से मुख्य न्यायाधीश के माध्यम से निपटाया जाना चाहिए.

रिटायर जजों का हस्तक्षेप दुर्भाग्यपूर्ण

इस पर कोर्ट ने कहा, "जब मामला विचाराधीन है, उस दौरान कुछ सेवानिवृत्त न्यायाधीशों द्वारा सार्वजनिक रूप से राय देना अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है."  न्यायमूर्ति स्वामीनाथन ने विशेष रूप से न्यायमूर्ति एस. एस. सुंदर द्वारा पत्र पर हस्ताक्षर किए जाने पर निराशा जताई. उन्होंने अब इस मामले को सुनवाई के लिए पीठ ने हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के पास भेज दिया.

मेरी याचिका गोपनीय 

इस बीच, वंचिनाथन ने एक सार्वजनिक बयान में कहा कि मुख्य न्यायाधीश को भेजी गई उनकी याचिका गोपनीय थी और उन्होंने इसे लीक नहीं किया था. उन्होंने कथित लीक के बारे में पुलिस में शिकायत दर्ज कराई, जो उनके अनुसार भाजपा से जुड़े वकीलों द्वारा संचालित एक व्हाट्सएप ग्रुप के माध्यम से हुई थी.

सुनवाई समाप्त होते ही, न्यायमूर्ति स्वामीनाथन ने एक और तीखी टिप्पणी की, "मुझे आपको कायर कहने का पछतावा हुआ। अब मुझे बिल्कुल भी पछतावा नहीं है."

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