खालसा पंथ क्या है, इसकी स्थापना कब और किसने की? जानें इसका उद्देश्य और महत्व

13 अप्रैल 1699... यही वह दिन था, जब खालसा पंथ की स्थापना हुई. इस दिन को बैसाखी के पर्व के रूप में भी मनाया जाता है. इसी दिन सिखों के दसवें गुरु यानी गुरु गोविंद सिंह जी ने हजारों सिखों को श्री आनंदपुर साहिब बुलाकर सबके सामने एक नंगी तलवार लेकर पूछा था- कौन है, जो धर्म के लिए अपना सिर दे सकता है? इस सवाल पर पांच व्यक्ति सामने आए, जिन्हें हम आज पंच प्यारे के नाम से जानते हैं. पढ़ें यह खास रिपोर्ट...;

By :  अच्‍युत कुमार द्विवेदी
Updated On : 13 April 2025 7:00 AM IST

Khalsa Panth Foundation Day: खालसा पंथ की स्थापना 13 अप्रैल 1699 को श्री आनंदपुर साहिब (वर्तमान पंजाब, भारत) में दसवें सिख गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी ने की थी. इस दिन को बैसाखी के पर्व के रूप में भी मनाया जाता है. यह सिख धर्म के इतिहास का एक अत्यंत महत्वपूर्ण दिन है. इसी दिन गुरु गोबिंद सिंह जी ने पांच प्यारों (पहले पांच सिख, जिन्हें अमृत छकाकर खालसा में दीक्षित किया गया) की घोषणा की और सिखों को एक सैन्य व धार्मिक पहचान दी- 'खालसा', जिसका अर्थ है 'शुद्ध'.

खालसा पंथ क्या है, पंच प्यारे कौन हैं, खालसा की विशेषताएं क्या-क्या हैं और इसका उद्देश्य क्या है? आइए, इस बारे में आपको विस्तार से बताते हैं...

खालसा पंथ क्या है?

खालसा एक विशेष सिख समुदाय है, जिसे गुरु गोबिंद सिंह जी ने सिख धर्म की धार्मिक और सैनिक पहचान को सुदृढ़ करने के लिए स्थापित किया। इसका उद्देश्य था – अन्याय, अत्याचार और धार्मिक उत्पीड़न के विरुद्ध खड़ा होना, तथा सच्चाई, धर्म और सेवा के मार्ग पर चलना।

खालसा पंथ की स्थापना की ऐतिहासिक घटना (1699)

गुरु गोबिंद सिंह जी ने बैसाखी के दिन हजारों सिखों को श्री आनंदपुर साहिब बुलाया. वहां उन्होंने एक सभा में सबके सामने एक नंगी तलवार लेकर पूछा: "कौन है जो धर्म के लिए अपना सिर दे सकता है?" इस सवाल पर पांच व्यक्ति सामने आए, जिन्हें पंच प्यारे कहा गया.

पंच प्यारे (Panj Pyare):

  1. भाई दया सिंह (लाहौर से)
  2. भाई धर्म सिंह (हस्तिनापुर से)
  3. भाई मोहकम सिंह (द्वारका से)
  4. भाई साहिब सिंह (बिदर से)
  5. भाई हिम्मत सिंह (जगन्नाथपुरी से)

इन पांचों को गुरु जी ने अमृत छकाकर 'खालसा' बनाया और इसी के साथ 'खालसा पंथ' का जन्म हुआ. गुरु जी ने फिर खुद को भी पंच प्यारों से अमृत छकवाया, यह दिखाने के लिए कि गुरु और चेले में कोई भेद नहीं है.

खालसा की विशेषताएं (5 'ककार')

हर खालसा सिख को पांच ककार धारण करने होते हैं:

  1. केश – बिना कटे बाल
  2. कड़ा – लोहे का ब्रेसलेट
  3. कृपाण – एक छोटी तलवार
  4. कंघा – बालों में रखने वाली कंघी
  5. कच्छा – विशेष प्रकार का अंडरवियर (स्वच्छता और तैयारी का प्रतीक)

खालसा का उद्देश्य

  • धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा
  • पीड़ितों की सेवा
  • अत्याचार और अन्याय के विरुद्ध लड़ाई
  • जात-पात, ऊंच-नीच से ऊपर उठकर भाईचारे को बढ़ावा देना

गुरु गोबिंद सिंह जी का प्रसिद्ध उद्घोष

"चिड़ियों से मैं बाज लड़ाऊं,

सवा लाख से एक लड़ाऊं,

तबे गोबिंद सिंह नाम कहाऊं!"

इसका अर्थ है: कमज़ोर को इतना आत्मविश्वास देना कि वो ताकतवर से भी लड़ सके.

खालसा पंथ का महत्व

आज भी दुनिया भर में करोड़ों सिख खालसा की मर्यादा का पालन करते हैं. वे सेवा, साहस, और धर्म की रक्षा के लिए समर्पित रहते हैं. निशान साहिब, लंगर और सेवा भाव खालसा के प्रमुख प्रतीक बन चुके हैं.

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