Kargil Vijay Diwas: कारगिल पहाड़ियों पर लड़ रहे पाकिस्तानी फौजियों को मुशर्रफ ने खुद ही ‘जेहादी’ बताया था: ले. कर्नल सोढ़ी
कारगिल विजय दिवस पर पूर्व लेफ्टिनेंट कर्नल जेएस सोढ़ी ने खुलासा किया कि 1999 का युद्ध पाकिस्तान के तत्कालीन सेना प्रमुख परवेज मुशर्रफ की साजिश थी. लाहौर बस सेवा और भारत-पाक शांति प्रयासों से बौखलाए मुशर्रफ ने प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को बिना बताए ‘ऑपरेशन कोपायामा’ रचा. भारत ने पाकिस्तानी सेना को करारा जवाब दिया और जीत हासिल कर दी। इस युद्ध ने भारत को हमेशा दो मोर्चों—राजनीतिक और सैन्य—पर सतर्क रहने का सबक दिया.;
कारगिल युद्ध भारत के ऊपर जबरदस्ती अपनी चौधराहट जमाने के लिए थोपा गया था. साल 1999 में जिस तरह से भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और तब के पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के बीच दोस्ती बढ़ रही थी. उसे देखकर पाकिस्तानी फौज के चीफ मक्कार मास्टरमाइंड परवेज मुशर्रफ को अपना भविष्य गढ्ढे में जाता दिखाई देने लगा था. उसे लगा था कि अगर भारत और पाकिस्तान के बीच इसी तरह दोस्ती मजबूत होती रही तो उसे (परवेज मुशर्रफ) शर्तिया पाकिस्तान में तबाह कर डाला जाएगा. लिहाजा परवेज मुशर्रफ ने भारत के खिलाफ कारगिल युद्ध का षडयंत्र रचने की हवा कानो-कान अपने ही देश के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को नहीं लगने दी.
मतलब, एक तरफ जनवरी-फरवरी 1999 में भारत पाकिस्तान दोस्ती की नींव मजबूत करने के लिए लाहौर बस सेवा शुरू करवा रहे थे. तो उसी दौर में मक्कार मुशर्रफ अपने चार फौजी मातहत अफसरों के साथ बैठकर भारत के ऊपर जबरिया कारगिल युद्ध छेड़ने का कुचक्र रच रहा था. बेशक दो महीने से भी ज्यादा वक्त तक चले उस कारगिल युद्ध में भारत ने 26 जुलाई 1999 को फतेह हासिल कर ली हो. बेशक कारगिल युद्ध में पाकिस्तान को भारत ने बुरी तरह मारपीट कर भगा दिया हो. उस युद्ध ने मगर यह तय कर दिया था कि, भारत की हुकूमत को हमेशा पाकिस्तान से जूझने के लिए दो मोर्चों पर अलर्ट रहना होगा.
कारगिल युद्ध से मिला यह बड़ा सबक
यह तमाम बेबाक और अंदर की बातें बताईं हैं भारतीय सेना के रिटायर हो चुके लेफ्टिनेंट जसिंदर सिंह सोढ़ी ने. इन दिनों महाराष्ट्र में मौजूद पूर्व ले. कर्नल सोढ़ी 'कारगिल विजय दिवस' के अवसर पर नई दिल्ली में मौजूद 'स्टेट मिरर हिंदी' के एडिटर से एक्सक्लूसिव बात कर रहे थे. कारगिल युद्ध के नफा-नुकसान पर दो टूक बात करते हुए विशेष इंटरव्यू के दौरान उन्होंने कहा कि, “कारगिल युद्ध हमें एक सबक तो दे ही दिया है कि, पाकिस्तान से भारत को हमेशा एक नहीं दो-दो मोर्चों पर सतर्क रहना होगा. पहला मोर्चा राजनीतिक-कूटनीतिक स्तर का और दूसरा सैन्य-सुरक्षा के नजरिए से. क्योंकि पाकिस्तानी हुक्मरान भारत की ताकत के आगे नतमस्तक होकर जब-जब हमसे (भारत) दोस्ती का हाथ बढ़ाएंगे, तब-तब भाड़े की मक्कार पाकिस्तानी फौज और उसकी मास्टरमाइंड खुफिया एजेंसी भारत-पाकिस्तान के खिलाफ कोई न कोई ऐसा षडयंत्र रचेंगे जिससे, दोनों देशों के नेताओं की शांति पहल खटाई में पड़ जाए. कारगिल युद्ध में यही सब हुआ.
...तो दुनिया के नक्शे से मिट जाएगा पाकिस्तान
जैसे ही पाकिस्तानी फौज के खतरनाक इरादों वाले चीफ जनरल मुशर्रफ को लगा कि, लाहौर बस-सेवा के जरिए दोनों देशों के बीच दोस्ती के कदम गंभीरता से आगे बढ़ रहे हैं. वैसे ही उसने कारगिल युद्ध का न केवल षडयंत्र रच डाला. अपितु कारगिल युद्ध में बेवजह ही बुरी तरह से भारत को उलझा भी लिया. वह तो भला हो हमारी सेनाओं-सैनिकों और देश की हुकूमत का कि, जिन्होंने सामूहिक तरीके दिए जवाब में पाकिस्तान को बता दिया कि तुम इतिहास में देश तो कभी दुनिया के नक्शे पर थे ही नहीं. तुम कल भी हमारा ही हिस्सा थे और आज भी हमारा हिस्सा रहोगे. जिस दिन तुम (पाकिस्तान) यह साबित करने की जिद पर अड़ोगे कि तुम हमारा यानी भारत का हिस्सा नहीं रहना चाहते हो, उस दिन पर तुमको भारत दुनिया के मानचित्र से ही मिटा देगा.
दुश्मन की नजरों में जागते रहो...
कारगिल युद्ध की याद में कारगिल विजय दिवस के मौके पर भारतीय फौज के जांबांज रणबांकुरे वीर रिटायर्ड लेफ्टिनेंट कर्नल जेएस सोढ़ी आगे बोले, “कारगिल युद्ध ने भारत को कई पाठ भी दिए हैं. मसलन दुश्मन को कभी कमजोर या अपने से छोटा या सोया हुआ मत समझना. दूसरे, दुश्मन कभी भी तब तक हमारे ऊपर हमला नहीं बोलेगा जब तक उसे इसका पूरा यकीन नहीं हो जाएगा कि हम सोए हुए या सुस्त हैं. भले ही आप सोए हुए क्यों न हों मगर दुश्मन को हमेशा यही अहसास करवाना है कि हम जाग रहे हैं.
...तो पाकिसतानी फौज को डूब मरने की जगह भी नहीं
दरअसल कारगिल युद्ध शुरू होने के पीछे एक वजह यह भी थी कि जब भारत पाकिस्तान के बीच लाहौर बस शांति समझौते का ड्राफ्ट तैयार हुआ तो उसमें कहीं भी कश्मीर शब्द का इस्तेमाल ही नहीं था. यह बात मक्कार पाकिस्तानी फौज के तत्कालीन चीफ जनर्रल मुशर्रफ के जख्मों पर नमक-मिर्च छिड़कने का काम कर गई. क्योंकि वह ड्राफ्ट तो दोनों देशों की हुकूमतों के बीच तैयार हुआ था. उसमें भारत या पाकिस्तान की सेना की कोई भूमिका नहीं थी. ऐसे में भी पाकिस्तानी फौज के चीफ मुशर्रफ को लगा कि अगर यह लाहौर समझौता पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ और भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के बीच कामयाब हो गया, तब ऐसे में पाकिस्तानी फौज को कहीं डूब मरने को भी जगह नहीं मिलेगी. इससे भी जनरल मुशर्रफ का खून खौल उठा और उसने अपनी फौज अपने देश में खुद की इज्जत बचाए रखने के लिए उस लाहौर समझौते के समानान्तर ही एकदम विपरीत और भारत के लिए बेहद खतरनाक साबित होने वाले कारगिल युद्ध का घिनौना षडयंत्र रच डाला. ताकि किसी भी तरह से भारत और पाकिस्तान के नेता दोनों देशों के जनमानस में हीरो न बन सकें.”
पाकिस्तान ने साजिश का नाम रखा 'ऑपरेशन कोपायामा'
अगर मैं यह कहूं कि कारगिल युद्ध के षडयंत्र के पीछे 22 फरवरी 1999 को पाकिस्तान भारत (अटल बिहारी वाजपेयी और नवाज शरीफ) के बीच जो लाहौर समझौता लागू हुआ उसे देखकर पाकिस्तानी फौज का मास्टरमाइंड बॉस परवेज मुशर्रफ बौखला गया था. उस समझौते ने परवेज मुशर्रफ के दिमाग से सही-गलत सोचने की ताकत छीन ली थी या खो दी थी. तो भी मैं गलत नहीं होऊंगा. मुशर्रफ की इसी भारत विरोधी खतरनाक मैली-मंशा को पाकिस्तान ने नाम दिया था ऑपरेशन कोपायामा. जिसे आज भारत कारगिल विजय दिवस के रूप में मना रहा है. इस ऑपरेशन कोपायमा के आदेश पर जनरल परवेश मुशर्रफ ने 15 जनवरी 1999 को अपने हस्ताक्षर किए थे. उसके अगले ही दिन यानी 16 जनवरी 1999 से पाकिस्तानी फौज ने कारगिल की दुर्गम पहाड़ियों की ओर चलना-बढ़ना शुरू कर दिया. यह वह वक्त था जब कारगिल की पहाड़ियां चारों ओर से बर्फ से भरी-लदी पड़ी थीं. जहां इंसान का सुरक्षित पहुंच पाना तो बाद की बात है, वहां इंसान के जीवन का ही कोई भरोसा नहीं होता है कि वो कितने मिनट कितने घंटे जीवित रह सकेगा.
भारतीय फौज को कम आंकती रही पाकिस्तानी सेना
जनरल परवेज मुशर्रफ द्वारा भारत के खिलाफ रचे जा चुके इतने बड़े और खतरनाक षडयंत्र की भनक न तो पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को थी. न ही पाकिस्तानी वायुसेना और जलसेना को कानो-कान जनरल मुशर्रफ के इन खतरनाक इरादों की भनक लग सकी. परवेज मुशर्रफ के साथ ऑपरेशन कोयपामा में शामिल चार फौजी अफसरों और जो बटालियन पाकिस्तानी फौज की कारगिल पहाड़ियों की ओर मूव हो चुकी थी, उन्हीं को पता था कि वे कारगिल की ओर बढ़ रही हैं. मई 1999 में भारत को भनक लगी कि पाकिस्तानी सेना कारगिल पहाड़ियों पर आ चुकी है. तब खलबली मची. पाकिस्तानी सेना सोच रही थी कि भारतीय सैनिक कारगिल पहाड़ियों को दस पंद्रह दिन में छोड़कर भाग जाएंगे. मगर भारत की फौज डटी रही.
जनरल मुशर्रफ को काटो तो खून नहीं
भारतीय फौज के कारगिल की पहाड़ियों से जब न हटने की जिद का पता चला तब, जनरल मुशर्रफ को काटो तो खून नहीं था. वह हड़बड़ा उठा यह सोचकर कि अब उसके इरादों की तबाही तय है भारतीय फौज के हाथों से. लिहाजा 17 मई 1999 को अपनी खाल बचाने के इरादे से पाकिस्तान फौज के जनरल परवेज मुशर्रफ ने अपने गले मे मरा पड़ा सांप उतारकर, पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के गले में उतार कर फेंक दिया. ऐसे करीब 14 दिन बाद पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को पता चला कि उन्हीं का सेना प्रमुख घाघ परवेज मुशर्रफ, कारगिल की पहाडियों पर भारतीय फौज के छेड़े बैठा है. पाकिस्तान में हो रहे इस सब कोहरामी तमाशे के दौरान पाकिस्तानी वायुसेनाध्यक्ष, नौसेनाध्यक्ष, प्रधानमंत्री नवाज शरीफ भी बैठे हुए थे. उन सबके मुंह अचंभे से खुले रह गए थे.