CBI और ED मामले में भी पहले आ चुका है जस्टिस यशवंत वर्मा का नाम, जांच को सुप्रीम कोर्ट ने कर दिया था खारिज
सीबीआई की 2018 में दर्ज की गई FIR में जस्टिस यशवंत को 2012 में सिंभावली शुगर्स में गैर-कार्यकारी निदेशक बताया गया है और उन्हें आरोपी नंबर 10 के तौर पर लिस्टेड किया गया था. सभी आरोपियों के खिलाफ आपराधिक कदाचार, धोखाधड़ी और आपराधिक साजिश का आरोप है.;
Justice Yashwant Verma: दिल्ली हाई कोर्ट के जज यशवंत वर्मा का नाम CBI की FIR और ED की ECIR में पहले भी आया था. 2014 में इलाहाबाद हाई कोर्ट का जज बनाए जाने से पहले वह एक कंपनी के गैर-कार्यकारी निदेशक थे. CBI और ED के डॉक्यूमेंट के मुताबिक, जज यशवंत वर्मा को इस मामले में आरोपी के रूप में दिखाया गया है.
हालांकि, पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने सिंभावली शुगर्स मामले में केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) जांच का आदेश देने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया था. 2018 में दर्ज की गई CBI की FIR में जस्टिस वर्मा को 2012 में सिंभावली शुगर्स में एक गैर-कार्यकारी निदेशक के रूप में वर्णित किया गया था और उन्हें आरोपी नंबर 10 के तौर पर लिस्टेड किया गया था. इसमें सभी आरोपियों के खिलाफ आपराधिक कदाचार, धोखाधड़ी और आपराधिक साजिश का आरोप है.
2018 की एफआईआर में क्या कहा गया?
फरवरी 2018 में ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स ने सिंभावली शुगर मिल के खिलाफ CBI FIR दर्ज की थी. कंपनी ने कथित तौर पर किसानों को उनके कृषि उपकरणों और अन्य जरूरतों के लिए वितरित करने के लिए भारी ऋण लिया, लेकिन बाद में इसका दुरुपयोग किया और ऋण राशि को अपने अन्य खातों में ट्रांसफर कर दिया.
आरोप है कि धन का स्पष्ट रूप से दुरुपयोग किया गया. FIR में कहा गया है कि कंपनी के प्राप्त धन का उपयोग सहमति के अलावा अन्य उद्देश्यों के लिए किया गया है. बैंक ने सिंभोली शुगर्स लिमिटेड को गबन और आपराधिक विश्वासघात के कारण 97.85 करोड़ रुपये की राशि के लिए संदिग्ध धोखाधड़ी घोषित किया था और इसकी सूचना 13.05.2015 को भारतीय रिजर्व बैंक को दी गई थी.
पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इस मामले में CBI जांच का आदेश देकर हाईकोर्ट ने गलती की है, क्योंकि जांच की कोई जरूरत नहीं थी. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि अधिकारियों को कानून के मुताबिक धोखाधड़ी के लिए कार्रवाई करने से नहीं रोका गया है.