EXCLUSIVE: CM को गिरफ्तार कराने वाले IPS T.R. Kakkar ने PM की बेजा बात मानने के बजाए ‘पुलिस-कमिश्नरी’ को लात मारना मंजूर किया!
1964 बैच के आईपीएस और दिल्ली के पूर्व पुलिस कमिश्नर टी.आर. कक्कड़ ने देश की पुलिस सेवा में अपने अनुशासन और बेबाकी के लिए मिसाल कायम की. उन्होंने न केवल पोंडीचेरी के तत्कालीन मुख्यमंत्री को कानून के तहत गिरफ्तार करवाया, बल्कि प्रधानमंत्री की बेतुकी मांग को ठुकराकर अपनी ईमानदारी और साहस दिखाया. पाकिस्तान से आए शरणार्थी बालक से राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड और दिल्ली पुलिस कमिश्नर तक के सफर की कहानी संघर्ष, मेहनत और इमानदारी की प्रेरणा देती है. टी.आर. कक्कड़ ने दिखाया कि किसी भी राजनीतिक दबाव में कानून की प्राथमिकता हमेशा सर्वोपरि होनी चाहिए.;
‘देश का कोई सूबा हो या फिर केंद्र शासित राज्य. कहीं का भी पुलिस चीफ यानी पुलिस महानिदेशक या पुलिस कमिश्नर बनने को आज के आईपीएस लार टपकाए बैठे रहते हैं. आईपीएस की मौजूदा जमात की इस कमजोरी को केंद्र और राज्य की हुकूमतें बढ़िया से समझ या ताड़ चुकी हैं कि, देश का हर आईपीएस आखिर क्यों किसी भी सूबे का पुलिस प्रमुख बनने की जद्दोजहद से जूझता रहता है.
ब्यूरोक्रेट्स (आईपीएस) की इस कमजोरी को अपनी सफलता का मूलमंत्र बनाकर, देश की पुलिस सेवा के अधिकारियों को अपनी उंगलियों पर नचाने के लिए नेता-मंत्रियों ने भी रास्ता खोज लिया है. इस रास्ते के तहत ही नेताओं ने किसी भी सूबे का पुलिस चीफ बनने की बेतुकी लत को इस कदर हवा दे डाली है कि, हर आईपीएस का अपने सेवाकाल में किसी राज्य पुलिस का प्रमुख बनने की लालसा उसके दिल में सूनामी की सी तब तक उठती रहती है, जब तक वह किसी सूबा पुलिस का प्रमुख न बन जाए, या फिर उसे हुकूमत पुलिस चीफ बनाए बिना जब तक सेवा से रिटायर न कर डाले.
पीएम को कहा था दो टूक
अब आइए आज भारतीय पुलिस अफसरान की इस तूफानी तमन्ना के दौर में एक ऐसे आईपीएस का भी जिक्र कर लें, जिसने दबंगई-ईमानदारी से पुलिस की नौकरी करने के चलते, न केवल किसी केंद्र शासित राज्य के मुख्यमंत्री को गिरफ्तार करवाया. अपितु जब देश के प्रधानमंत्री ने इन्हीं आईपीएस से कोई बेजा-बेतुका, ऊल-जुलूल काम करवाने की कोशिश की. तो बेबाकी से इन आईपीएस ने न केवल प्रधानमंत्री को उनकी बात मानकर, उनके मन-मुताबिक काम करने से दो टूक इनकार कर डाला. अपितु प्रधानमंत्री को यह भी कह दिया कि जो बेतुका-बेहूदा नियम-विरुद्ध काम आप पुलिस कमिश्नर की कुर्सी पर रहते हुए मुझसे करवाना चाहते हैं, मैं वह काम नहीं कर सकता हूं. आप दिल्ली पुलिस कमिश्नर के पद के लिए भले ही क्यों न मेरी जगह अपनी पसंद के किसी भी दूसरे आईपीएस दिल्ली पुलिस कमिश्नरी के लिए चुन लें. मैं दिल्ली की पुलिस कप्तानी दो दिन के भीतर छोड़ दूंगा.’
6 साल की उम्र में आए थे भारत
यह बेबाक बातें बयान की हैं 1964 बैच के भारतीय पुलिस सेवा के रिटायर्ड अधिकारी और दिल्ली के पूर्व पुलिस कमिश्नर टीआर कक्कड़ (IPS Delhi Police Commissioner T R Kakkar) ने. तिलक राज कक्कड़ 15 सितंबर 2025 को स्टेट मिरर हिंदी के एडिटर क्राइम इनवेस्टीगेशन से ‘पॉडकास्ट’ के लिए एक्सक्लूसिव बात कर रहे थे. भारत-पाकिस्तान बंटवारे के दौरान महज 6 साल की उम्र में माता-पिता भाई-बहन के साथ भारत पहुंचे, तिलक राज कक्कड़ ने किन संघर्षों और भागीरथ प्रयासों के बाद भारत जैसे बड़े लोकतांत्रिक देश की भीड़ में अपनी अलग पहचान बनाई, उनकी यह कहानी किसी भी संवेदनशील और संघर्षशील इंसान की आंखों में आंसू ला देने के लिए काफी है. बंटवारे के दौरान हो रहे खून खराबे में जब 6 साल के टीआर कक्कड़ परिवार के साथ जैसे-तैसे भारत की सीमा में मौजूद शरणार्थी शिविर में रहने पहुंचे, तो वह रुह कंपा देने वाली यात्रा भी उन्होंने अपने बड़े भाई के कंधों पर बैठकर, मारे गए भारतीयों के खून से सनी पड़ी लाशों के ढेर के ऊपर से पार की थी.
चार-चार फोर्स की पहनी वर्दियां
जीवन के शुरूआती दौर की डरा देने वाली यादें साझा करते हुए दिल्ली के पूर्व पुलिस कमिश्नर तिलक राज कक्कड़ भारत के वह बिरला इकलौते ब्यूरोक्रेट हैं जिन्होंने, चार-चार फोर्स की वर्दियां बदन पर पहनकर अपनी और भारत की इज्जत को चार-चांद लगाए. पहली बार उन्होंने भारतीय वायुसेना की वर्दी पहनी. उसके बाद थलसेना, फिर राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड यानी एनएसीजी महानिदेशक (Director General of NSG) और अंत में आईपीएस टीआर कक्कड़ दिल्ली पुलिस आयुक्त के पद से सेवानिवृत्त हुए. विशेष लंबी बातचीत के दौरान तिलक राज कक्कड़ बोले, “ पाकिस्तान में पिता फॉरेस्ट रेंजर थे. हम भाई-बहनों को घऱ से स्कूल और स्कूल से घर लाने ले जाने को दो-दो घोड़े हर वक्त मौजूद रहते थे.
शरणार्थी शिविर में चल बसे थे पिता
भारत पाकिस्तान बंटवारे की त्रासदी ने बाकी लाखों परिवारों की तरह ही हमारे परिवार के ऊपर भी मुसीबतों का पहाड़ डाल दिया. पाकिस्तान से जान बचाकर जैसे ही भारत की हद में पहुंचे तो एक दिन वहीं शरणार्थी शिविर में पिता की हार्ट अटैक से मौत हो गई. जिस मां ने कभी अपने हाथों से घर का कोई काम नहीं किया, बुरे वक्त के हाथों में फंसी उसी मां को पांच-छह बच्चों के पेट पालने के लिए शरणार्थी शिविर में चूल्हा जलाने के लिए लकड़ियां बीननीं पड़ीं. दो जून की रोटी की बात तो दूर की कौड़ी थी. एक वक्त की रोटी तक के लाले पड़े हुए थे. पिता की मौत जिस दिन हुई उस रात घर में रोटी नहीं बनी और हम छोटे-छोटे सब भाई बहन रात को भूखे पेट सो गए. समझ नहीं आ रहा था कि पिता की असमय मौत का दुख हम मनाते या फिर मां के आंसू पोंछते, या दो जून की रोटी का जुगाड़ करते. मेरे सबसे बड़े भाई की ही उम्र 15-16 साल थी. बाकी तो हम सब भाई बहन बहुत ही छोटी उम्र के थे.”
“उस शरणार्थी शिविर में मात्र 6 साल की उम्र में पिता का साया सिर से उठा. तो उसके बाद विधवा मां 6 बच्चों के साथ दिल्ली आ गई. बदकिस्मती और दुर्दिनों ने दिल्ली पहुंचने के बाद भी मगर पीछा नहीं छोड़ा. दिल्ली आए तो कुछ दिन बाद ही टीवी जैसी घातक बीमारी से मां की मौत हो गई. पिता पहले ही स्वर्ग सिधार चुके थे. दिल्ली में मां खतम हुई तो हम सब भाई बहन अनाथ हो गए. उस हद तक के अनाथ कि हमें पेट भरने के लिए गरीबों-भिखारियों की लाइन में बैठकर मंगलवार को हनुमान मंदिर में मिलने वाले प्रसाद से अपने पेट भरने पड़े. सप्ताह के कुछ दिनो में हम गुरुद्वारे में प्रसाद और लंगर से अपना पेट भरने लगे थे. अनाथ के रूप में सरकारी स्कूल में दाखिला हुआ. जैसे तैसे हाई-स्कूल, इंटर की पढ़ाई कर ली. पहली बार दिल्ली में जूता पहनने को मिला वह भी पुराना जिसे मोची ने सिलाई करके ठीक कर दिया था.”
झाड़ू लगाया और कुली का काम भी किया
कालांतर की जानलेवा मुसीबतों से “अनाथ” बालक के रूप में जूझते हुए भी आगे बढ़ते रहने वाले ऐसे तिलक राज कक्कड़ को धनाभाव में कभी भी डिग्री कॉलेज या विवि में नियमित पढ़ने जाने का मौका नहीं मिला. यह अलग बात है कि भागीरथ प्रयासों के आगे बेबस हुए वक्त ने जब पलटा मारा तो बाद में, यही तिलक राज कक्कड़ न केवल भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी, भारतीय वायुसेना, भारतीय थलसेना में मेजर बने, अपितु देश की तमाम यूनिवर्सिटीज में लेक्चर देने भी जाने लगे. बचपन में मां-बाप के साये के बिना ही जिंदगी को यादगार मुकाम पर ले आने वाले तिलक राज कक्कड़ बताते हैं, “जब माता-पिता दोनो का साया बचपन में सिर से उठा. उसके बाद 30 रुपए महीना पर दिल्ली में झाड़ू-पोंछा की मजदूरी और सब्जीमंडी रेलवे स्टेशन पर कुली का काम किया. तभी समझ आ गया था कि बिना मेहनत के अब जीवन को सुरक्षित रखने वाला दुनिया में कोई बाकी नहीं बचा है. तब फिर मेहनत करने की ही ठानी. और जब ईमानदारी से संघर्ष किया तो परमात्मा ने हम सब भाई बहनों का साथ भी खूब दिया. आज उस मेहनत, ईमानदारी, संघर्ष का नतीजा जमाने के सामने है.”
“दुर्दिनों-भुखमरी के वक्त में जो समाज मुझे ‘तिलक्कया’ कहकर बुलाता था. परमात्मा ने जैसे ही फौज, वायुसेना की नौकरी दी और आईपीएस बनाया, वैसे ही मेरे प्रति समाज का संबोधन बदलता चला गया और मैं बचपन के अनाथ तिलक्कया से तिलक राज यानी टीआर कक्कड़ बुलाया जाने लगा. सब कुछ संघर्ष के साथ बदलते वक्त की कहानी के किस्से हैं यह सब मेरी जिंदगी के. वह जिंदगी जो बचपन और किशोरावस्था में गरीबी-गुरबत के दिनो में मुझे ही खुद पर बोझ लगने लगी थी. बाद में उप-प्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी का जम्मू कश्मीर मामलों का इंटर सिक्योरिटी एडवाइजर बना. प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, आई के गुजराल जी के साथ भी काम करने का मौका मिला. दिल्ली पुलिस कमिश्नर और डीजी राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड यानी एनएसजी चीफ भी बना.”
देवगौड़ा की नहीं मानी थी बात
प्रधानमंत्री एच डी देव गौड़ा (Ex PM H. D. Deve Gowda) से जुड़ा एक किस्सा बेबाकी से टी आर कक्कड़ बयान करते हैं, “मैं उन दिनों दिल्ली का पुलिस कमिश्नर था. प्राइम मिनिस्टर एच डी देव गौड़ा ने मुझे एक दिन बुलाया. उन्होंने जो काम मुझसे करने को कहा वह काम मेरे वश का नहीं था. लिहाजा मैंने न केवल उनसे वह काम करने को मना कर दिया. अपितु उनके आगे कोई धर्म-संकट मेरे चलते खड़ा न हो इसलिए उनसे यह भी कह दिया कि, आप चाहें तो मैं दिल्ली पुलिस कमिश्नर (Delhi Police Commissioner) का पद दो दिन के भीतर छोड़ने को तैयार हूं. आप किसी अपनी पसंद के और आईपीएस को दिल्ली पुलिस कमिश्नर बनाकर, उससे अपनी मर्जी का काम करवा लीजिए. उसके बाद न तो प्रधानमंत्री देव गौड़ा ने मुझसे वह काम करने को दुबारा कभी कहा और न ही उन्होंने मुझे दिल्ली पुलिस कमिश्नर के पद से ही हटाया.”
सीएम को किया था गिरफ्तार
भारतीय पुलिस सेवा यानी आईपीएस के रूप में टी आर कक्कड़ (T R Kakkar IPS) ने किस तरह का जीवन जीया, इसकी एक बानगी पेश करते हुए बताते हैं, “मैं उन दिनों पोंडीचेरी (Pondicherry अब पुदुचेरी Puducherry) का पुलिस चीफ (पुलिस महानिरीक्षक) था. मैंने राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर दिया था. तब देश के प्रधानमंत्री थे मोरारजी देसाई (Ex PM Morarji Desai). पुद्दुचेरी (तब पोंडीचेरी) के चीफ मिनिस्टर के खिलाफ मैंने केस दर्ज करवाया तो बवाल मच गया. मामला प्रधानमंत्री कार्यालय पहुंचा. मुझे प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के सामने पेश होना पड़ा. जब मैंने केस फाइल पीएम को दिखाई तो उन्होंने साफ कहा कि आईजी साहब आप वापिस पोंडीचेरी पहुंचकर वही कार्यवाही करें जो कानून कहता है. मतलब, पीएम मोरारजी देसाई भी मेरे द्वारा सीएम के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराए जाने से पूरी तरह मुतमईन थे. मैं वापिस पोंडीचेरी पहुंचा और एसएचओ को बुलाकर उस वक्त के चीफ मिनिस्टर को गिरफ्तार करवा लिया. मैंने एसएचओ से यह भी कहलवाया था कि अगर गिरफ्तारी के बाद चीफ मिनिस्टर अपनी जमानत लेना चाहें तो उन्हें 500 रुपए का मुचलका भरकर जमानत पर रिहा भी कर दिया जाए.
मेरे द्वारा चीफ मिनिस्टर को गिरफ्तार कराए जाने के अगले दिन ही तब की पोंडिचेरी की सरकार गिर गई. उस दिन के बाद वह नेता जीवन की अंतिम सांस तक फिर दुबारा कभी राज्य के मुख्यमंत्री नहीं बन सके. उनका नाम था सुब्रमण्यन रामास्वामी (Subramanyan Ramaswamy) और वे डीएमके पार्टी (All India Anna Dravida Munnetra Kazhagam) के तब के कद्दावर नेता हुआ करते थे. मुख्यमंत्री सुब्रमण्यन रामास्वामी के खिलाफ मुकदमा इसलिए दर्ज करके उन्हें अरेस्ट करना पड़ा था, क्योंकि उनकी सरकार राज्य विधानसभा में विश्वास-मत प्रस्ताव के दौरान अल्पमत में जा रही थी. लिहाजा तत्कालीन चीफ मिनिस्टर सुब्रमण्यन रामास्वामी (Puducherry Ex Chief Minister Subramanyan Ramaswamy) ने सदन में अपनी सरकार का बहुमत साबित करने के लिए विपक्षी दल के एक विधायक का अपहरण करा लिया. ताकि, सदन में उसकी मदद से वे अपनी बल-संख्या का बहुमत साबित करके अपनी सरकार को गिरने से बचा सकें. जबकि, जो विधायक अपहरण किया गया था उसकी पत्नी ने मुख्यमंत्री के खिलाफ पति के अपहरण का मुकदमा दर्ज करवा रखा था.”