Exclusive: कैसे सीबीआई की जांच ने संजय दत्त को 1993 मुंबई ब्लास्ट केस में TADA से बचाया?
CBI के पूर्व जॉइंट डायरेक्टर शांतनु सेन ने स्टेट मिरर के एडिटर क्राइम संजीव चौहान के साथ पॉडकास्ट में खुलासा किया कि 1993 मुंबई धमाकों में संजय दत्त पर टाडा नहीं बनता था. उन्होंने कहा, "सिर्फ हथियार रखने से कोई आतंकवादी नहीं हो जाता." सेन के मुताबिक, संजय दत्त ने दाऊद गैंग से आर्म्स लिए थे, पर आतंकवाद में शामिल नहीं थे. कोर्ट ने बाद में सिर्फ आर्म्स एक्ट में सज़ा दी.;
1993 के मुंबई बम धमाकों में अभिनेता संजय दत्त की गिरफ्तारी और उन पर लगे टाडा कानून को लेकर बड़ा खुलासा हुआ है. केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) के रिटायर्ड जॉइंट डायरेक्टर शांतनु सेन ने स्टेट मिरर हिंदी के पॉडकास्ट में, एडिटर क्राइम संजीव चौहान के एक सवाल के जवाब में बताया कि "संजय दत्त कभी आतंकवादी थे ही नहीं. उनके ऊपर टाडा तो लगना ही नहीं चाहिए था."
शांतनु सेन ने 1993 के उन मुंबई सीरियल बम धमाकों को लेकर जो दूसरा सनसनीखेज खुलासा किया वो यह है कि, उस दौरान मुंबई में बम-धमाके तो 12 ही हुए थे. जबकि कागज पर एक और धमाका यानी, जो 13वां बम-विस्फोट भी दिखाया गया था! आखिर क्यों ? सवाल का जवाब पढ़िए. सुनिए-देखिए पॉडकास्ट की इस खास कड़ी में....
शांतनु सेन उस दौर में सीबीआई के सबसे तेजतर्रार अफसरों में गिने जाते थे. 1993 बम धमाकों की जांच के लिए जब स्पेशल टास्क फोर्स (STF) बनाई गई, तो सेन ही उसके प्रमुख थे. इस टीम की जांच से ही साफ हुआ कि अभिनेता संजय दत्त आतंकवादी साजिश का हिस्सा नहीं थे.
संजय दत्त दोषी थे ही नहीं
पॉडकास्ट के दौरान शांतनु सेन ने साफ कहा, "सवाल ही नहीं उठता कि संजय दत्त किसी तरह बच गए. बचने की नौबत तब आती जब वो दोषी होते." उन्होंने बताया कि संजय पर टाडा इसलिए लगाया गया क्योंकि उन्होंने कुछ हथियार रखे थे, जो अबू सलेम जैसे लोगों के ज़रिए आए थे. लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि वो किसी बम धमाके की साजिश में शामिल थे.
'13वां' धमाका क्यों जोड़ा गया?
एक और चौंकाने वाला खुलासा करते हुए सेन ने बताया कि उस समय मुंबई में 12 ही धमाके हुए थे. सभी हिंदू बहुल इलाकों में थे. लेकिन तत्कालीन मुख्यमंत्री ने सुझाव दिया कि एक धमाका मुस्लिम इलाके में भी दिखाया जाए, ताकि दंगा-फसाद की आग न भड़के. सेन ने कहा, "यह कानून व्यवस्था का फैसला था, न कि आपराधिक साजिश."
संजय दत्त की 'गलती' क्या थी?
शांतनु सेन ने बताया कि बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद हुए दंगों में संजय और उनके पिता सुनील दत्त मुस्लिमों की मदद कर रहे थे, जिससे कुछ कट्टरपंथी उनसे नाराज़ हो गए थे. ऐसे में संजय को अपनी सुरक्षा का डर सताने लगा. फिरोज़ ख़ान के ज़रिए उनकी बातचीत अनीस और दाऊद इब्राहिम से हुई, जिन्होंने उन्हें सुरक्षा के लिए हथियार रखने का सुझाव दिया. ये हथियार अबू सलेम के ज़रिए पहुंचे थे.
हथियार लौटाए लेकिन केस बन गया
जब सुनील दत्त ने खुद ये बात स्वीकार की कि उनके बेटे ने कुछ हथियार लिए थे, जो बाद में लौटा दिए गए. तब बॉम्बे पुलिस ने उन्हें बम धमाकों से जोड़ते हुए टाडा के तहत बुक कर लिया. चार्जशीट बॉम्बे पुलिस ने दाखिल की, लेकिन तब तक ये तय हो चुका था कि केस सीबीआई को सौंपा जाएगा.
हथियार रखने से कोई आतंकवादी नहीं बनता
सीबीआई को केस मिलने के बाद सेन की टीम ने दोबारा पड़ताल शुरू की. उन्होंने पाया कि सिर्फ हथियार रखना किसी को आतंकवादी नहीं बनाता. सेन ने कहा, "अगर कोई व्यक्ति अपराधी है, तो उसके पीछे इतिहास होता है, साजिश होती है. संजय के पास ऐसा कुछ नहीं था."
संजय पर बना रहा टाडा
सीबीआई ने अदालत में दलील दी कि संजय दत्त और 28 अन्य आरोपियों पर टाडा लागू नहीं होता. हालांकि ट्रायल कोर्ट ने बाकी 26 आरोपियों को टाडा से मुक्त कर बरी कर दिया, लेकिन संजय दत्त पर टाडा इसलिए बना रहा क्योंकि बॉम्बे पुलिस की ओर से दाखिल की गई चार्जशीट में वो शामिल था. नतीजतन, संजय को ज़मानत नहीं मिली और उन्हें जेल में रहना पड़ा.
सीबीआई की वजह से मिली जमानत
जब मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, तो सीबीआई ने स्पष्ट कर दिया कि वह संजय पर टाडा नहीं लागू करना चाहती. कोर्ट ने इसे गंभीरता से लिया और संजय दत्त को ज़मानत मिली. ट्रायल के दौरान जज ने भी सीबीआई की सिफारिश को मानते हुए सिर्फ आर्म्स एक्ट के तहत केस चलाने की मंजूरी दी. अंत में संजय दत्त को आर्म्स एक्ट के तहत दोषी करार दिया गया और छह साल की सज़ा सुनाई गई, जो उन्होंने पूरी की. पर उन्हें टाडा से राहत सीबीआई की निष्पक्ष जांच और शांतनु सेन की ईमानदार रिपोर्ट के चलते मिली.
सच्चाई लाना है जांच एजेंसी का काम
बातचीत के अंत में सेन ने कहा, "जांच एजेंसी का काम किसी को फंसाना नहीं, बल्कि सच्चाई लाना है. अगर कोई निर्दोष है, तो उसे साफ बचाना भी हमारा कर्तव्य है." यह मामला न सिर्फ जांच एजेंसियों की जवाबदेही का उदाहरण बना, बल्कि यह भी दिखाता है कि सही दिशा में की गई जांच कानून के जाल में उलझे व्यक्ति को इंसाफ दिला सकती है.