EXCLUSIVE: अफजल गुरु के पास वकील के लिए नहीं थे पैसे, संसद को खून के आंसू रुलाने वालों का कैसे हुआ चैप्टर Close? जस्टिस ढींगरा अनफिल्टर्ड
13 दिसंबर 2001 को हुए संसद हमले की 24वीं बरसी पर दिल्ली हाईकोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस एस.एन. ढींगरा ने स्टेट मिरर हिंदी को दिए एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में उस ऐतिहासिक केस के कई अनसुने पहलुओं का खुलासा किया. उन्होंने बताया कि जब देश के नामी वकीलों ने संसद पर हमला करने वाले आतंकवादियों का मुकदमा लड़ने से इनकार कर दिया था, तब भी बतौर पोटा कोर्ट के विशेष जज उन्होंने कानून के तहत निष्पक्ष सुनवाई की और अफजल गुरु को सजा-ए-मौत सुनाई.;
“मैं उस दिन सपरिवार गर्मियों की छुट्टियां मनाने गोवा गया हुआ था. वहीं मुझे विशेष संदेश वाहक के जरिए बताया गया कि मैं दिल्ली की विशेष पोटा कोर्ट का प्रमुख नियुक्त कर दिया गया हूं. और मैं गोवा से तुरंत वापिस आकर 13 दिसंबर 2001 को भारत की संसद पर हुए आतंकवादी हमले के मुकदमे की सुनवाई शुरू करूं. बात जब उन आतंकवादियों की ओर से मुकदमा लड़ने के लिए वकील नियुक्त करने की आई तो, देश के न केवल तमाम नामी-गिरामी डिफेंस वकीलों ने अपितु, एक आईयू खान जैसे मंझे हुए मुस्लिम वकील ने भी आतंकवादियों की तरफ से मुकदमा लड़ने से मना कर दिया था.”
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यह बेबाक बातें देश के मशहूर और दिल्ली उच्च न्यायालय (Delhi High Court) के रिटायर्ड जस्टिस एस एन ढ़ींगरा (Justice SN Dhingra) ने बेबाकी से बयान की हैं. दिल्ली के पोटा और टाडा जैसी महत्वपूर्ण अदालतों के प्रमुख रह चुके पूर्व न्यायाधीश जस्टिस शिव नारायण ढींगरा (Justice Shiv Narayan Dhingra) 24 साल पहले 13 दिसंबर 2001 को यानी अब से 24 साल पहले भारत की संसद पर हुए आतंकवादी हमले (Parliament Attack) की बरसी पर स्टेट मिरर हिंदी के एडिटर क्राइम इनवेस्टीगेशन से नई दिल्ली में एक्सक्लूसिव बात कर रहे थे.
कोर्ट में पांव रखने की जगह नहीं थी
“दिल्ली से गोवा जैसे ही मेरे पास मुझे पोटा कोर्ट प्रमुख बनाकर संसद हुए आतंकवादी के मुकदमे की सुनवाई करने का संदेश मिला, मैं ट्रेन से दिन में दो बजे दिल्ली के निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन पहुंच गया. स्टेशन से मैंने अपने परिजनों को घर भेज दिया और मैं वहां से सीधा पटियाला हाउस कोर्ट (जहां पोटा की विशेष अदालत लगनी थी) पहुंच गया. चूंकि मुझे पोटा कोर्ट पहुंचने में कुछ देर हो गई थी. इसलिए जब तक मैं पहुंचा तब तक अदालत वकीलों, सुनवाई देखने-सुनने वालों और दिल्ली पुलिस से खचाखच भर चुकी थी. कह सकता हूं कि कोर्ट में तिल रखने की जगह नहीं बची थी.
पहले दिन आतंकवादियों को जेल भेज दिया
चूंकि दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल उस मामले की तफ्तीश हमले के बाद से ही कर रही थी. इसलिए मैंने उस हमले में शामिल आतंकवादियों को लेकर अपने सामने हुई (पोटा कोर्ट में) पहले दिन की पेशी पर कोई ज्यादा बातचीत करना मुनासिब नहीं समझा. क्योंकि मैं पहले दिन अदालत को कुछ ज्यादा हासिल होने वाला भी नहीं था. और मुझे भी मुकदमे से संबंधित वे तमाम फाइलें-तफ्तीश पढ़नी थीं, जो दिल्ली पुलिस ने मेरी पोटा कोर्ट में दाखिल की थीं. लिहाजा मैंने सभी चार मुलजिमों/आतंकवादियों (दिल्ली विवि के प्रोफेसर/लेक्चरर एस ए आर गिलानी, कश्मीरी आतंकवादी अफजल गुरु, आतंकवादी दंपत्ति अफशां गुरु और उसका पति शौकत हुसैन गुरु) को उस दिन न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया.”
ISI और पाकिस्तान ने कराया था हमला
यहां जिक्र करना जरूरी है कि अब से 24 साल पहले संसद पर हुए उस आतंकवादी हमले को पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के इशारे पर, वहीं के आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा ने साझा तरीके से अंजाम दिया था. उस दिल दहलाने वाली लोमहर्षक आतंकी हमले में जो पांच आतंकवादी विस्फोटक और हथियारों के साथ संसद भवन के भीतर पहुंच चुके थे. उनका इरादा उस दिन संसद में मौजूद भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, उप-प्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी सहित तमाम मंत्री और सांसदों को, संसद पर कब्जा करके बंधक बनाने का था. जिसे तब संसद की सुरक्षा में तैनात केंद्रीय सुरक्षा बल (सीआरपीएफ) और संसद की आंतरिक सुरक्षा में जुटी ‘वॉच एंड वार्ड’ ने विफल कर दिया था.
कौन हैं जस्टिस एस एन ढींगरा
संसद पर अब से 24 साल पहले हुए उस आतंकवादी हमले में शामिल आतंकवादियों में से एक अफजल गुरु को फांसी की सजा सुनाने वाले तब के दिल्ली की पोटा कोर्ट के विशेष न्यायाधीश और दिल्ली हाईकोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस एस एन ढींगरा ‘स्टेट मिरर हिंदी’ के साथ विशेष-लंबी बातचीत में कहते हैं, “संसद पर हमले का वह मुकदमा देश में बने विशेष पोटा कानून के तहत विशेष-पोटा कोर्ट में सुना जा रहा दिल्ली का वह पहला मुकदमा था. तब से पहले तक देश में पोटा जैसा ही टाडा कानून हुआ करता था. मैंने आतंकवादियों से पूछा कि वे अपना वकील खुद करेंगे या उन्हें सरकार की ओर से वकील मुहैया कराया जाए.
मुस्लिम वकील ने आतंकवादियों का मुकदमा नहीं लड़ा
मेरे इस सवाल के जवाब में प्रोफेसर एस ए आर गिलानी ने सरकारी वकील लेने की बजाए अपने खर्चे पर निजी वकील करने की बात कही. जबकि बाकी तीनों आतंकवादी शौकत हुसैन गुरु और उसकी पत्नी अफशां हुसैन गुरु व तीसरे कश्मीरी आतंकवादी अफजल गुरु ने पोटा कोर्ट से कहा कि वे अपने बलबूते वकील कर पाने में असमर्थ हैं. उन्हें सरकारी वकील कोर्ट में उनकी ओर से मुकदमे की पैरवी के लिए मुहैया करा दिया जाए. मैंने देश के कई जाने माने मशहूर वकीलों से बात की. उन सभी 8-10 वकीलों ने देश की संसद पर हुए हमले के उन आतंकवादियों का मुकदमा लड़ने से साफ मना कर दिया. आतंकवादियों का मुकदमा लड़ने से मना करने वालों में तब देश के गिने चुने डिफेंस-फौजदारी वकीलों में शुमार एडवोकेट आई यू खान भी शामिल थे.”
दिल्ली में सूत्रधार प्रो. गिलानी ही था
भारत की संसद पर हुए उस हमले के 24वें साल पर खास बातचीत करने के दौरान जस्टिस एस एन ढींगरा बोले, “संसद पर हमले से जुड़ी पड़ताल और फाइलें दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल ने जब मेरे सामने पेश कीं और मैंने उन्हें पढ़ा तो पता चला कि, दिल्ली में उस खौफनाक आतंकवादी हमले का दिल्ली में असल प्रमुख सूत्रधार प्रो. एस ए आर गिलानी ही था. हालांकि बाद में उसे सर्वोच्च न्यायालय से संदेह का लाभ देकर बरी कर दिया गया. लेकिन जो कुछ दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल की फाइलों में मौजूद था उसके मुताबिक, प्रो. एस ए आर गिलानी और अफजल गुरु लगातार आपस में टेलीफोन पर संपर्क में बने हुए थे. उनकी कई बार बात हुई थी. इसके सबूत जांच एजेंसी ने दाखिल किए थे.”
बीवी ने आतंकवादी शौहर तक पहुंचाई पुलिस
जस्टिस एस एन ढींगरा आगे कहते हैं, “दिल्ली पुलिस ने तफ्तीश के आधार पर बताया था कि संसद पर हमले से पहले और बाद में दिल्ली में छिपने के लिए आतंकवादियों ने मुखर्जी नगर के गांधी विहार आदि इलाके में छिपने के लिए किराए का मकान लिया था. इसी किराए के मकान में कश्मीर से फलों के ट्रक में छिपाकर लाए गए गोला-बारूद हथियारों का जखीरा रखा गया था. एक आतंकवादी शौकत गुरु की पत्नी अफशां गुरु इसी किराए के मकान में रहकर लगातार कश्मीर में मौजूद अपने पति से संपर्क में बनी हुई थी. उसे दिल्ली से ही गिरफ्तार कर लिया गया. जब बात आई उसके पति शौकत गुरु और दूसरे आतंकवादी अफजल गुरु को गिरफ्तार करने की, तो वे दोनों कश्मीर घाटी में छिपे हुए थे. दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल की टीमें जब उन दोनों को गिरफ्तार करने कश्मीर घाटी पहुंचीं तो वहां देखा कि वे दोनों भीड़भाड़ वाली मंडी में थे.
आतंकवादियों को भीड़ में पुलिस ने इसलिए नहीं पकड़ा
दिल्ली पुलिस को कश्मीर पुलिस ने इशारा किया था कि अगर भीड़ भरे बाजार में शौकत गुरु और आतंकवादी अफजल गुरु को पकड़ने की कोशिश की जाएगी तो भीड़ हमला करके पुलिस पार्टी के कब्जे से दोनों आतंकवादियों को छुड़ा ले जाने में कामयाब हो जाएगी. संभव था कि भीड़ कश्मीर और दिल्ली पुलिस की टीमों को भी हमला करके नुकसान पहुंचा दे. लिहाजा तय हुआ कि जैसे ही दोनों आतंकवादी बाजार की भीड़ से दूर होंगे उन्हें चुपचाप दबोच कर दिल्ली ले आया जाएगा. हुआ भी वैसा ही. जैसे ही अफजल गुरु और शौकत गुरु बाजार से दूर पहुंचे उन्हें दबोच कर दिल्ली पुलिस ले आई.”
मैंने उसे ‘फांसी’ की सही सजा सुनाई
स्टेट मिरर हिंदी के साथ बातचीत में दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश और संसद पर हमले में आतंकवादी अफजल गुरु को फांसी की सजा सुनाने वाले दिल्ली की पोटा कोर्ट के प्रमुख एस एन ढींगरा कहते हैं, “मैंने दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल की मजबूत तफ्तीश के आधार पर चारों आतंकवादियों को जो सजाएं मुकर्रर की थीं, वे सही थीं. दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल ने उस लोहमर्षक-शर्मनाक आतंकवादी हमले की पड़ताल ही इतनी मजबूत की थी जिसमें, आरोपियों का सजा से बच पाना मेरी नजर में असंभव था. बाद में हालांकि मेरे द्वारा अफजल गुरु को सुनाई गई सजा पर सुप्रीम कोर्ट -राष्ट्रपति भवन तक से भी मुहर लगाई गई. उसे तिहाड़ जेल में फांसी भी दे दी गई. मगर उस आतंकवादी हमले में जिस तरह से और जिन मुजरिम को बरी किया गया सुप्रीम कोर्ट से, वह फैसला सुप्रीम कोर्ट का था. सुप्रीम कोर्ट ने क्यों और किसे संसद पर आतंकवादी हमले में रिहा-बरी किया, इसकी जवाबदेही सुप्रीम कोर्ट की है, एस एन ढींगरा इस पर कुछ नहीं कहना चाहते हैं.”
सुप्रीम कोर्ट के फैसलों पर हैरान मत होइए
बातचीत के अंत में पूर्व न्यायाधीश ने कहा, “हां, जब मेरे द्वारा सजायाफ्ता सभी आतंकवादियों में से कुछ को उसमें कांड में सुप्रीम कोर्ट ने ब-इज्जत बरी कर दिया तो भी मैं हैरत में नहीं था, क्योंकि यह भारत की सुप्रीम कोर्ट है जो कोई भी, कुछ भी फैसला दे सकती है. भारत की सुप्रीम कोर्ट कब क्या कैसा फैसला सुना दे...सब सुनने के लिए तैयार रहिए. सुप्रीम कोर्ट के फैसलों पर हैरान होने की जरूरत नहीं है. क्योंकि सुप्रीम कोर्ट हाईकोर्ट के फैसलों को पलटते वक्त जानता है कि उसके (सुप्रीम कोर्ट) फैसलों को पलटने के लिए भारत के पास उससे बड़ी (सुप्रीम कोर्ट से बड़ी) कोई दूसरी और अदालत नहीं है. जो सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को भी पटलने का दम-अधिकार रखती हो. अगर भारत के पास मौजूदा सुप्रीम कोर्ट से भी ऊंची और ताकतवर उच्चतम कोर्ट होती, तो मुझे उम्मीद है कि इसी सुप्रीम कोर्ट के सैकड़ों फैसलों को सुप्रीम कोर्ट से भी ऊंची कोर्ट फटाफट पलट देती.
आतंकवादी को मेरे द्वारा दी गई ‘फांसी’ सही
जहां तक सवाल देश की संसद के ऊपर हुए आतंकवादी हमले में मुजरिमों को सजा देने संबंधी मुझे अपने फैसले से संतुष्टि की बात है. तो मैंने उस लोमहर्षक कांड में आतंकवादी अफजल गुरु को फांसी और बाकी आतंकवादियों को जो भी सजा मुकर्रर की थी, वे उसी के काबिल थे. यह बात मैं दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल की मजबूत तफ्तीश के आधार पर, अपने द्वारा लिखे जा चुके फैसले पर पूर्ण संतुष्टि के साथ कह सकता हूं.”