नाबालिग के प्राइवेट पार्ट में मामूली प्रवेश भी रेप, सहमति का कोई मतलब नहीं; बॉम्बे हाईकोर्ट ने आरोपी को नहीं दी राहत
नागपुर बेंच ऑफ बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा कि नाबालिग के मामलों में सहमति का कोई कानूनी महत्व नहीं है और मामूली प्रवेश भी बलात्कार माना जाएगा. जस्टिस निवेदिता मेहता ने वर्धा जिले के एक ड्राइवर की अपील खारिज कर उसकी 10 साल की सजा को बरकरार रखा. कोर्ट ने कहा कि POCSO एक्ट बच्चों की सुरक्षा के लिए सख्त कानून है और इसमें किसी तरह की ढिलाई की गुंजाइश नहीं.;
नागपुर स्थित बॉम्बे हाईकोर्ट की खंडपीठ ने हाल ही में POCSO एक्ट के तहत एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि नाबालिग पीड़िताओं के मामलों में ‘सहमति’ का कोई कानूनी अर्थ नहीं होता. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि किसी नाबालिग के प्राइवेट पार्ट में ‘मामूली प्रवेश’ (Slightest Penetration) भी होता है, तो वह बलात्कार की श्रेणी में आता है.
जस्टिस निवेदिता मेहता ने वर्धा जिले के हिंगनघाट निवासी 38 वर्षीय आरोपी ड्राइवर की अपील खारिज करते हुए उसकी 10 साल की सजा को बरकरार रखा.
कब का है ये मामला?
यह मामला 19 फरवरी 2014 का है, जब आरोपी ने दो नाबालिग बच्चियों (उम्र 5 और 6 वर्ष) को अमरूद देने का लालच देकर अपने जाल में फंसा लिया. आरोपी ने अश्लील वीडियो दिखाकर उनके साथ यौन उत्पीड़न का प्रयास किया. निचली अदालत ने उसे POCSO एक्ट की धारा 6 (गंभीर यौन हमला) और IPC की धारा 376(2)(i) व 511 (बलात्कार का प्रयास) के तहत दोषी ठहराया था. अब हाईकोर्ट ने इस फैसले को साक्ष्यों के आधार पर सही ठहराया है.
‘मामूली प्रवेश’ भी रेप: कोर्ट
जस्टिस मेहता ने कहा कि जब किसी आरोपी द्वारा पीड़िता के निजी अंगों में किसी भी प्रकार के अंगों को प्रवेश कराया जाता है, तो बलात्कार का अपराध पूरा माना जाता है. प्रवेश की गहराई या सीमा का कोई महत्व नहीं है. कोर्ट ने यह भी जोड़ा कि नाबालिग की सहमति या विरोध इस कानून में अप्रासंगिक है क्योंकि बच्चे कानूनी रूप से अपनी इच्छा व्यक्त करने की स्थिति में नहीं होते.
झूठे फंसाने के दावे को कोर्ट ने ठुकराया
आरोपी ने बचाव में कहा कि उसे पारिवारिक विवाद के चलते झूठा फंसाया गया है, लेकिन कोर्ट ने यह तर्क अस्वीकार कर दिया. जज ने कहा कि पीड़िताओं और उनकी मां के बयानों में कोई विरोधाभास नहीं है और मेडिकल रिपोर्ट भी घटनाक्रम की पुष्टि करती है. FIR दर्ज करने में हुई देरी को भी अदालत ने स्वाभाविक माना, क्योंकि पीड़ित बच्चियों को आरोपी ने धमकी दी थी.
सजा को सही ठहराया
निचली अदालत ने अगस्त 2019 में संशोधित POCSO एक्ट की धारा 6 लागू कर दी थी, जिसमें न्यूनतम 20 साल की सजा का प्रावधान है. हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि अपराध 2014 का है, इसलिए पुराने कानून के तहत सजा दी जानी चाहिए थी यानी न्यूनतम 10 साल की. इस आधार पर अदालत ने निचली अदालत की सजा को बरकरार रखते हुए सुधार की आवश्यकता नहीं मानी.
POCSO एक्ट के सख्त प्रावधानों की फिर पुष्टि
यह फैसला एक बार फिर बताता है कि POCSO एक्ट बच्चों की सुरक्षा के लिए ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति पर आधारित है. कोर्ट ने कहा कि बच्चों के खिलाफ किसी भी प्रकार का यौन अपराध, चाहे प्रयास ही क्यों न हो, गंभीर अपराध की श्रेणी में आता है. न्यायमूर्ति मेहता ने कहा कि यह फैसला समाज को यह संदेश देता है कि मासूमों के साथ किसी भी स्तर पर अपराध करने वालों को किसी भी सूरत में राहत नहीं मिलेगी.