भारत में आसान नहीं होगी Starlink की राह, कीमत बन सकती है सबसे बड़ा रोड़ा
टेलीकॉम इंडस्ट्री से जुड़े लोगों का मानना है कि स्टारलिंक को सरकारी स्वामित्व वाली बीएसएनएल सहित मौजूदा कंपनियों के साथ कंपीट करने के लिए भारत के हिसाब से प्लान लेकर आना होगा. भारत के पड़ोसी भूटान में स्टारलिंक सेवाएं पहले से ही मौजूद हैं. यहां इसके लिए करीब 4,200 भूटानी नगुलट्रम की कीमत तय है.;
एयरटेल और जियो से करार के बाद भारत में एलन मस्क के स्टारलिंक के आने का रास्ता साफ होता दिख रहा है. दुनिया के सबसे अमीर आदमी एलन मस्क की कंपनी स्पेसएक्स स्टारलिंक के जरिए हाई-स्पीड इंटरनेट सेवा देने का दावा करती है जो दुनिया के कई देशों में काम कर रही है. हालांकि भारत में 2021 में भी कंपनी ने अपनी मौजूदगी दर्ज करानी चाही थी, लेकिन तब सरकारी नियमों की वजह से उसे अपने कदम वापस खींचने पड़े थे. लेकिन एक बार फिर एयरटेल और जियो के साथ करार कर कंपनी भारत में अपनी सेवा देने को तैयार दिख रही है. लेकिन केवल भारतीय कंपनियों से करार भर कर लेने से स्टारलिंक की राहें आसान नहीं होने जा रहीं. उसके सामने सरकारी मंजूरी से लेकर कम कीमत पर हाई-स्पीड इंटरनेट उपलब्ध कराने जैसी चुनौतियां खड़ी हैं.
भारत में एवरेज रेवेन्यू पर यूजर यानी ARPU लगभग 3 डॉलर या 250 रुपये है और ब्रॉडबैंड सेवाओं की लागत लगभग 5 डॉलर प्रति माह है, जो दुनिया में सबसे कम है. हालांकि स्टारलिंक के सर्विस किस कीमत पर उपलब्ध होगी, इसे लेकर कोई आधिकारिक जानकारी सामने नहीं आई है, लेकिन एक्सपर्ट भारतीय यूजर्स को लेकर इसपर बात करने लगे हैं.
कितनी रह सकती है कीमत?
भारत के पड़ोसी भूटान में स्टारलिंक सेवाएं पहले से ही मौजूद हैं. यहां इसके लिए करीब 4,200 भूटानी नगुलट्रम की कीमत तय है. भूटानी नगुलट्रम की कीमत लगभग भारतीय रुपये के बराबर है, जिससे यह माना जा सकता है कि भारत में भी इसकी कीमत 4000 रुपये प्रति माह के आस-पास रह सकती है. नाइजीरिया जैसे देशों में इसकी कीमत 38,000 नाइजीरियाई नायरा यानी 24.36 डॉलर प्रति माह है जो भारतीय मुद्रा में करीब 2100 रुपये होते हैं. वर्तमान में भारत में करीब 350 रुपये हर महीने देकर आप अच्छी स्पीड वाले इंटरनेट का इस्तेमाल कर सकते हैं, ऐसे में स्टारलिंक के लिए कीमत बड़ी चुनौती हो सकती है.
टेलीकॉम इंडस्ट्री से जुड़े लोगों का मानना है कि स्टारलिंक को सरकारी स्वामित्व वाली बीएसएनएल सहित मौजूदा कंपनियों के साथ कंपीट करने के लिए भारत के हिसाब से प्लान लेकर आना होगा. हालांकि उसे इस बात का फायदा जरूर मिल सकता है कि उसे फाइबर केबल बिछाने जैसा महंगा काम करने की जरूरत नहीं पड़ेगी.
सरकारी मंज़ूरी और रेगुलेटरी बाधाएं
भारत सरकार ने अभी तक स्टारलिंक को व्यावसायिक रूप से काम करने की पूरी मंज़ूरी नहीं दी है. 2021 में, जब स्टारलिंक ने बिना लाइसेंस के प्री-बुकिंग शुरू कर दी थी, तो भारतीय दूरसंचार विभाग (DoT) ने इसे अनधिकृत गतिविधि घोषित कर दिया. सरकार ने कंपनी को लाइसेंस प्राप्त करने से पहले किसी भी तरह की सेवा बेचने से मना कर दिया था.
लेनी होगी कई तरह की मंज़ूरी
- ग्लोबल मोबाइल पर्सनल कम्युनिकेशन बाय सैटेलाइट (GMPCS) लाइसेंस
- राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा मानकों का पालन
- भारतीय दूरसंचार अधिनियम के तहत स्पेक्ट्रम की अनुमति
स्पेक्ट्रम आवंटन को लेकर विवाद
भारत में 5G और ब्रॉडबैंड सेवाओं के लिए पहले से ही कई कंपनियां स्पेक्ट्रम आवंटन को लेकर प्रतिस्पर्धा कर रही हैं. स्टारलिंक को भारत में सेवाएं प्रदान करने के लिए सैटेलाइट स्पेक्ट्रम की जरूरत होगी. हालांकि, भारतीय दूरसंचार कंपनियां जैसे जियो, एयरटेल और वीआई (Vi) चाहती हैं कि यह स्पेक्ट्रम नीलामी के ज़रिए बेचा जाए, जबकि स्टारलिंक चाहती है कि उसे सरकार सीधे लाइसेंस दे.
राष्ट्रीय सुरक्षा और साइबर सुरक्षा चिंताएं
- स्टारलिंक एक अमेरिकी कंपनी स्पेसएक्स के स्वामित्व में है, और सरकार को चिंता है कि भारत में सैटेलाइट नेटवर्क के ज़रिए संवेदनशील डेटा अमेरिका तक पहुंच सकता है.
- सैटेलाइट इंटरनेट को हैकर्स और दुश्मन देशों द्वारा निशाना बनाए जाने का खतरा है. इससे भारतीय संचार प्रणाली, सैन्य संचार और महत्वपूर्ण इंफ्रास्ट्रक्चर प्रभावित हो सकते हैं.
- इसलिए, सरकार स्टारलिंक को भारत में काम करने से पहले डेटा सुरक्षा से जुड़े कड़े नियमों का पालन करने के लिए कह रही है.