Consent for Sex पर केंद्र ने SC में रखी राय, किन खतरों के कारण सहमति से 'उम्र' कम करने को लेकर किया आगाह?

Consent for Sex की उम्र को 18 से घटाकर 16 साल करने की बहस पर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को अपनी राय दे दी है. सरकार ने आगाह किया है कि ऐसा कदम गंभीर सामाजिक और कानूनी खतरों को जन्म दे सकता है. आइए जानते हैं सरकार की दलीलें और इसके पीछे उनकी की चिंता क्या है?;

( Image Source:  ANI )
Edited By :  धीरेंद्र कुमार मिश्रा
Updated On : 25 July 2025 11:02 AM IST

क्या 16 साल के बच्चे अपनी मर्जी से सेक्स के लिए तैयार हो सकते हैं या नहीं, जैसे गंभीर विषय पर सुप्रीम कोर्ट में बहस जारी है. इस बात पर भी बहस जारी है कि क्या देश में यौन गतिविधि के लिए सहमति की उम्र घटाकर 18 से 16 कर देनी चाहिए? फिलहाल, सुप्रीम कोर्ट में चल रही इसी बहस पर केंद्र सरकार ने कड़ा रुख अपनाया है. सरकार का साफ शब्दों में कहना है कि नाबालिगों को 'सहमति' की आजादी देना उनकी सुरक्षा के लिए खतरा बन सकता है.

दरअसल, भारत सरकार ने यौन गतिविधि के लिए सहमति की आयु का सुप्रीम कोर्ट में बचाव किया है. साथ ही नाबालिगों को दुर्व्यवहार से बचाने के लिए उसकी उम्र 18 वर्ष बरकरार रखा है. सरकार का तर्क है कि इसमें कोई भी कमी बाल संरक्षण कानूनों को कमजोर कर सकती है और शोषण को बढ़ा सकती है.

यौन सहमति की उम्र 18 से कम करने पर केंद्र की 'नो'

केंद्र ने सर्वोच्च न्यायालय को बताया है कि यौन संबंध के लिए सहमति की आयु 18 वर्ष से कम नहीं की जा सकती, लेकिन यह भी स्वीकार किया कि किशोरों के बीच प्रेम और शारीरिक संबंधों के मामलों में न्यायिक विवेकाधिकार का प्रयोग "मामला-दर-मामला" आधार पर किया जा सकता है. केंद्र सरकार ने कहा कि नाबालिगों को यौन शोषण से बचाने के लिए सहमति की वैधानिक आयु का सख्ती और समान रूप से पालन किया जाना चाहिए.

केंद्र सरकार ने कहा, "सहमति की वैधानिक आयु 18 वर्ष निर्धारित की गई है और इसे सख्ती से और समान रूप से लागू किया जाना चाहिए. इस मानक से कोई भी समझौता किशोर स्वायत्तता के नाम पर बाल संरक्षण कानून में दशकों की प्रगति को पीछे धकेलने के समान होगा. पोक्सो अधिनियम 2012 और बीएनएस जैसे कानूनों के निवारक चरित्र को कमजोर करेगा."

सरकार ने कहा कि आयु-आधारित सुरक्षा को कम करने से सहमति (यौन) गतिविधि की आड़ में दुर्व्यवहार (बलात्कार) के रास्ते खुल सकते हैं. इस पर अदालत को गंभीरता से विचार करने की जरूरत है.

18 साल है सहमति से सेक्स की आयु

केंद्र की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने बताया कि कैसे सहमति की आयु भारतीय दंड संहिता 1860 में 10 वर्ष से बढ़कर, सहमति की आयु अधिनियम 1891 के तहत 12 वर्ष, 1925 में आईपीसी में संशोधन और 1929 के शारदा अधिनियम (बाल विवाह निरोधक कानून) में 14 वर्ष हो गई. 1940 में भारतीय दंड संहिता में संशोधन के माध्यम से इसे 16 वर्ष और 1978 में बाल विवाह निरोधक अधिनियम में संशोधन के माध्यम से 18 वर्ष कर दिया गया, जो आज तक लागू है.

सरकार ने कहा, "भारतीय कानून के तहत सहमति की आयु 18 वर्ष निर्धारित की गई है, जो बच्चों के लिए एक अटूट सुरक्षात्मक ढांचा बनाने के उद्देश्य से सही है. यह भारत के संविधान के तहत बच्चों को प्रदान की गई अंतर्निहित सुरक्षा से प्रेरित है."

केंद्र का इस मसले पर तर्क क्या है?

न्यायपालिका, मामले-दर-मामला आधार पर, विवेकाधिकार का प्रयोग कर सकती है, जिसमें 18 वर्ष के करीब पहुंच चुके और किशोरावस्था में प्रेम संबंध बनाने वालों के लिए निकट-आयु अपवाद भी शामिल है. रिपोर्ट में केंद्र के हवाले से कहा गया है, "बाल यौन अपराधों, विशेष रूप से पोक्सो अधिनियम 2012  को नियंत्रित करने वाला विधायी ढांचा न केवल उम्र के कारण बच्चे की संवेदनशीलता पर आधारित है बल्कि इस मान्यता पर भी आधारित है कि ऐसे अधिकांश अपराध बच्चे के विश्वासपात्र परिवेश में रहने वाले व्यक्तियों द्वारा किए जाते हैं, जिनमें परिवार के सदस्य, पड़ोसी, देखभाल करने वाले और शिक्षक शामिल हैं। ऐसे अपराधियों का नाबालिगों के अधिकार और एजेंसी पर गहरा प्रभाव होता है."

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) और सेव द चिल्ड्रन तथा एचएक्यू सेंटर फॉर चाइल्ड राइट्स जैसे गैर-सरकारी संगठनों द्वारा एकत्रित आंकड़ों का हवाला देते हुए केंद्र ने संकेत दिया कि बच्चों के खिलाफ 50% से अधिक यौन अपराध बच्चे के परिचित व्यक्तियों या नाबालिगों के भरोसेमंद व्यक्तियों द्वारा किए गए थे.

मोदी सरकार को किस खतरे की है आशंका?

केंद्र ने चेतावनी दी है कि किशोरावस्था में प्रेम संबंधों की आड़ में सहमति की आयु 18 वर्ष से कम करना कानूनी रूप से अनुचित होगा और दुर्व्यवहार करने वालों को बचाव का एक मौका प्रदान करेगा. इसमें कहा गया है, "जब अपराधी माता-पिता या परिवार का कोई करीबी सदस्य हो, तो बच्चे की शिकायत करने या विरोध करने की अक्षमता और भी बढ़ जाती है। ऐसे मामलों में, बचाव के तौर पर 'सहमति' पेश करने से केवल बच्चे को ही पीड़ित बनाया जाता है, दोष उन पर मढ़ दिया जाता है और बच्चों को शोषण से बचाने के पोक्सो अधिनियम के मूल उद्देश्य को कमजोर किया जाता है, चाहे वे 'इच्छुक' हों या नहीं."

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