बॉम्बे हाईकोर्ट की सख्ती, अल्पसंख्यक संस्थानों में नहीं चलेगा आरक्षण, सरकार को 4 हफ्ते के अंदर देना होगा जवाब

बॉम्बे हाईकोर्ट ने फिलहाल महाराष्ट्र सरकार अल्पसंख्यक एफवाईजेसी (FYJC) कॉलेजों में SC, ST और OBC के लिए आरक्षण लागू करने पर रोक लगा दी है. यह फैसला कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं की उन बातों को ध्यान में रखते हुए दिया है, जिनमें उन्होंने संविधान से जुड़ी चिंताएं जताई थीं.;

( Image Source:  Freepik )
Edited By :  हेमा पंत
Updated On : 13 Jun 2025 12:00 PM IST

गुरुवार 12 जून 2025 को बॉम्बे हाईकोर्ट में एक ऐसा फैसला आया जिसने शिक्षा और आरक्षण से जुड़े एक संवेदनशील मसले को फिर से बहस के केंद्र में ला दिया. महाराष्ट्र सरकार के उस निर्णय पर अस्थायी रोक लगा दी गई, जिसके तहत अल्पसंख्यक संस्थानों में FYJC (कक्षा 11वीं) में एससी, एसटी और ओबीसी वर्ग के लिए आरक्षण की योजना थी.

जस्टिस एम.एस. कार्णिक और एन.आर. बोरकर की पीठ ने सरकार के फैसले को लेकर कड़ा रुख अपनाते हुए कहा कि 'हमें याचिकाकर्ताओं के वकीलों द्वारा रखे गए तर्कों में दम नजर आता है.' इस टिप्पणी के साथ ही कोर्ट ने साफ कर दिया कि अल्पसंख्यक संस्थानों की किसी भी सीट पर सामाजिक आरक्षण लागू नहीं होगा कम से कम फिलहाल तो नहीं.

क्या संवैधानिक दायरे से बाहर है प्रस्ताव?

6 मई 2025 को महाराष्ट्र सरकार ने एक सरकारी प्रस्ताव (GR) जारी किया था, जिसमें कहा गया था कि अल्पसंख्यक संस्थानों में खाली रह जाने वाली सीटों को आरक्षित श्रेणियों के लिए खोल दिया जाएगा. सरकारी वकील नेहा भिड़े ने दलील दी कि यह आरक्षण केवल सरेंडर की गई सीटों पर लागू होगा. अल्पसंख्यकों के अधिकार प्रभावित नहीं होंगे. लेकिन अदालत इससे संतुष्ट नहीं दिखी.

संविधान की शरण में पहुंचे याचिकाकर्ता

एपीडी जैन पाठशाला और महाराष्ट्र एसोसिएशन ऑफ माइनॉरिटी एजुकेशनल इंस्टीट्यूशंस जैसे याचिकाकर्ताओं ने अपने अधिकारों की रक्षा के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया. वरिष्ठ अधिवक्ता मिलिंद साठे ने अनुच्छेद 15(5) का हवाला दिया, जिसमें साफ है कि सामाजिक आरक्षण अल्पसंख्यक संस्थानों पर लागू नहीं होता है. अधिवक्ता एससी नायडू ने अनुच्छेद 30 का ज़िक्र किया, जो अल्पसंख्यकों को अपनी संस्थाएं स्थापित करने और चलाने का अधिकार देता है. याचिकाकर्ताओं का कहना था कि यह प्रस्ताव संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करता है और अल्पसंख्यक शिक्षा की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप है.

सरकार को जवाब दाखिल करने के निर्देश

कोर्ट ने राज्य सरकार को 4 हफ्ते के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है और याचिकाकर्ताओं को अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए 2 सप्ताह का समय दिया है. अब सबकी निगाहें 6 अगस्त 2025 की सुनवाई पर टिकी होंगी, जहां यह तय होगा कि क्या यह अंतरिम रोक स्थायी रूप लेगी या नहीं.

सामाजिक न्याय बनाम संस्थागत स्वतंत्रता?

यह मामला सिर्फ आरक्षण का नहीं है, बल्कि एक बड़े सवाल का प्रतीक बन चुका है. क्या सामाजिक न्याय की कोशिशें अल्पसंख्यकों के संवैधानिक अधिकारों के खिलाफ जा सकती हैं? अब जवाब सिर्फ कानून की किताबों में नहीं, बल्कि अदालत की अगली टिप्पणी में छुपा है.

Similar News