क्या हो रहा है दहेज कानून का दुरुपयोग, कितना है असरदार- बीएनएस की धारा 85 और 86 क्या है?

Misuse Of Anti Dowry Laws: दहेज विरोधी कानून दहेज प्रथा को खत्म करने के लिए बनाए गए थे, लेकिन हाल ही में कई ऐसे में मामले सामने आए हैं, जिनमें इनका दुरुपयोग होता दिखाई दे रहा है. ताजा मामला बेंगलुरु का है, जहां यूपी के एक इंजीनियर ने पत्नी के झूठे आरोपों से तंग आकर सुसाइड कर लिया.;

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By :  अच्‍युत कुमार द्विवेदी
Updated On : 12 Dec 2024 7:26 PM IST

Misuse Of Anti-dowry Law :  दहेज प्रथा को रोकने के लिए केंद्र सरकार ने कई कानून बनाए हैं, लेकिन इन कानूनों के दुरुपयोग (Misuse) के मामले भी लगातार सामने आ रहे हैं. ताजा मामला बेंगलुरु का है, जहां उत्तर प्रदेश के रहने वाले इंजीनियर अतुल सुभाष ने फांसी लगाकर सुसाइड कर लिया. अतुल ने सुसाइड नोट में लिखा कि पत्नी ने उनके खिलाफ 9 फर्जी मामले दर्ज कराए हैं. इसके अलावा, वह उनसे तीन करोड़ रुपये भी मांगे हैं.

अतुल सुभाष ही नहीं, देशभर से कई ऐसे मामले सामने आए हैं, जहां दहेज विरोधी कानून का दुरुपयोग किया गया. कई मामलों में कोर्ट ने आरोपी को रिहा करते हुए इसके दुरुपयोग पर चिंता व्यक्त की थी.

सुप्रीम कोर्ट ने जताई चिंता

सुप्रीम कोर्ट ने 10 दिसंबर को दहेज विरोधी कानून के दुरुपयोग पर चिंता व्यक्त की. जस्टिस वीवी नागरत्ना और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि ऐसे में बिना किसी विशेष आरोप के किसी भी शिकायत को जड़ से खत्म कर देना चाहिए. कानून का दुरुपयोग पत्नी या उसके परिवार द्वारा दबाव बनाने के लिए नहीं होने देना चाहिए.

पीठ ने कहा कि संशोधन के जरिए आईपीसी की धारा 498 ए को शामिल करने का मकसद पति और उसके परिवार द्वारा महिला पर की जाने वाली क्रूरता को रोकना था. हालांकि, हाल के वर्षों में वैवाहिक विवादों में उल्लेखनीय इजाफा हुआ है. साथ ही, 498 ए के दुरुपयोग के मामले बढ़े हैं.

इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि नए कानून में जरूरी बदलाव करना चाहिए.  धारा 85 और 86 में बदलाव की जरूरत है. अदालत ने कहा कि नए कानून में दहेज विरोधी कानून की परिभाषा ज्यों की त्यों रखी गई है. बस अलग से धारा 86 में दहेज प्रताड़ना से संबधित प्रावधान किए गए हैं.

शादी की बुनियाद को हिला रही धारा 498 ए

सुप्रीम कोर्ट ने 8 फरवरी 2022 को एक फैसले में कहा था कि दहेज प्रताड़ना कानून 498 ए में पति के रिश्तेदारों के खिलाफ स्पष्ट आरोप के बिना केस चलाना कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग है. दिल्ली हाईकोर्ट ने 2003 में कहा था कि धारा 498 ए शादी की बुनियाद को हिला रही है.

उच्चतम न्यायालय ने 22 अप्रैल 2023 को एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि अगर मौत का कारण नहीं पता है तो शादी के 7 साल के अंदर ससुराल में होने वाली सभी अस्वाभाविक मौत को दहेज हत्या नहीं माना जा सकता. जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस राजेश बिंदल की पीठ ने हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए आरोपी को बरी कर दिया.

हाईकोर्ट ने आरोपी को धारा 304 बी यानी दहेज हत्या और धारा 498 ए यानी क्रूरता के मामले में दोषी ठहराते हुए 7 साल की सजा सुनाई थी. 2019 में एक केस की सुनवाई करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने भी कहा था कि शादी के 7 साल के अंदर विवाहिता के द्वारा आत्महत्या करने को दहेज हत्या का सबूत नहीं माना जा सकता है.

दहेज के झूठे मामले क्या होते हैं?

कई बार महिलाओं के द्वारा पति या ससुराल वालों पर दहेज मांगने, प्रताड़ित करने या उत्पीड़न करने का झूठा आरोप लगाया जाता है. इन मामलों में महिला या उसका परिवार जानबूझकर लड़के और उसके परिवार पर गलत आरोप लगाते हैं, ताकि उन पर कानूनी और मानसिक दबाव बनाया जा सके.

बीएनएसएस की धारा 528 के तहत दहेज का झूठा आरोप लगाने पर भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 528 के तहत हाईकोर्ट में याचिका दाखिल करके झूठे मामले को रद्द करवाया जा सकता है. इसके अलावा भारतीय न्याय संहिता की धारा 356 के तहत पति महिला के खिलाफ मानहानि का केस भी दर्ज कर सकते हैं. दहेज के झूठे मामलों से बचने के लिए अग्रिम जमानत लेने का प्रावधान है. अगर किसी व्यक्ति की पत्नी उस पर झूठे आरोप लगाती है तो भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 528 के तहत हाईकोर्ट में याचिका दाखिल करके झूठे मामले को रद्द कराया जा सकता है.

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