टेकऑफ के समय क्यों खुले थे फ्लैप्स, लैंडिंग गियर भी था बाहर; तकनीक बनी 265 लोगों की जान की दुश्मन?
अहमदाबाद में एयर इंडिया की फ्लाइट क्रैश हो गई. इसके कारण 241 लोगों ने अपनी जान गवाई. विजुअल एविडेंस से पता चलता है कि जब बोइंग 787-8 ड्रीमलाइनर फ्लाइट ने उड़ान भरी, तो उसका लैंडिंग गियर फैले हुए थे और उसके विंग के फ्लैप पूरी तरह से पीछे हटे हुए थे.;
12 जून 2025 की सुबह, अहमदाबाद एयरपोर्ट से उड़ान भरने वाली एयर इंडिया की फ्लाइट AI171 एक बोइंग 787-8 ड्रीमलाइनर, जो लंदन के लिए रवाना हुई थी. कुछ ही मिनटों में एक भयानक दुर्घटना में बदल गई. हालांकि, अब जांचकर्ता फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर और कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डिंग का बारीकी से विश्लेषण करेंगे, ताकि ये समझा जा सके कि तकनीकी खराबी, मानवीय प्रतिक्रिया या सिस्टमिक गड़बड़ी में से कौन इस दुर्घटना का असली कारण बना.
लेकिन हादसे के बाद सामने आए विजुअल एनालिसिस और शुरुआती तकनीकी संकेतों ने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है. क्या यह केवल एक दुर्घटना थी, या फिर एक तकनीकी त्रासदी जो वक्त से पहले पहचान नहीं सकी?
गियर और फ्लैप्स का अजीब कॉन्फिग्युरेशन
टेकऑफ के ठीक बाद उड़ान के वीडियो फुटेज और एनालिसिस से एक बेहद असामान्य स्थिति सामने आई. लैंडिंग गियर फैले हुए थे, जबकि उन्हें टेकऑफ के कुछ सेकंड बाद ही मोड़ा जाना चाहिए था. वहीं, विंग फ्लैप्स पूरी तरह पीछे हटा लिए गए थे, जबकि इन्हें टेकऑफ के समय 5 डिग्री या अधिक पर सेट किया जाता है और धीरे-धीरे हटा लिया जाता है. यह तरीका फ्लैप्स अप और गियर डाउन 787 ड्रीमलाइनर जैसी फ्लाइट के लिए जनरल ऑपरेटिंग प्रोसीजर के खिलाफ था और संकेत देता है कि कुछ तो गड़बड़ था.
स्पीड, ड्रैग और कंट्रोल के बीच स्ट्रगल
संभावना यह जताई जा रही है कि जैसे ही फ्लाइट ने टेकऑफ किया, थ्रस्ट या पावर में कमी महसूस हुई और पायलट ने लैंडिंग गियर को ऊपर करने की प्रक्रिया शुरू करके जल्दी से दोबारा फैला दिया. एक अन्य परिदृश्य यह भी हो सकता है कि लैंडिंग गियर मैकेनिकल या हाइड्रोलिक फेल्योर के कारण नीचे फंसा रह गया हो. ऐसी कंडीशन में फ्लैप्स को वापस लेना एक इमरजेंसी स्ट्रैटजी हो सकती है ताकि ड्रैग कम हो और फ्लाइट स्पीड पकड़ सके.
मगर यहां आई असली चुनौती
कम ऊंचाई और कम स्पीड पर फ्लैप्स को वापस लेना बेहद खतरनाक होता है. इससे लिफ्ट कम होती है और फ्लाइट स्टॉल (उड़ान से बाहर की स्थिति) में जा सकता है. फ्लाइट पाथ से पता चलता है कि फ्लाइट में ना के बराबर याइंग (yawing) या रोलिंग थी. यानी पायलटों के पास कुछ हद तक कंट्रोल था. हालांकि कुछ एनालिस्ट बाएं इंजन की खराबी की अटकलें भी लगा रहे हैं, लेकिन अकेले इससे गियर और फ्लैप्स की गड़बड़ी के बारे में बताया नहीं जा सकता है.
जब लिफ्ट खत्म हो गई
आख़िरकार, जब फ्लाइट लगभग 600 फीट की ऊंचाई पर था, तब एक्सटेंडेड गियर और पीछे हटे फ्लैप्स का अजीब कॉम्बिनेशन ज्यादा ड्रैग और कम लिफ्ट का कारण बना. इसके कारण फ्लाइट ऊंचाई बनाए नहीं रख पाया और अंतिम ठहराव (stall) के बाद तेजी से नीचे गिर पड़ा. पायलटों ने आखिरी कोशिश जरूर की, लेकिन वक्त और हवा, दोनों उनके खिलाफ थे.
क्या हादसा टाला जा सकता था?
क्या यह दुर्घटना रोकी जा सकती थी? क्या किसी चेतावनी संकेत को नजरअंदाज़ कर दिया गया? या फिर, क्या यह एक ऐसी तकनीकी गलती थी जो इंसानी सीमाओं से परे थी? AI 171 का आखिरी सफर अब इतिहास बन चुका है, लेकिन इसके पीछे की असल वजहें सामने आना अभी बाकी हैं.