Ahmedabad Riots 2002: मुकर गए गवाह, ठोस वीडियोग्राफी सबूत गायब, फिर सबूतों के अभाव में अदालत ने तीनों आरोपियों को किया बरी
अहमदाबाद दंगा 2002 मामले में अदालत ने सबूतों और गवाहों के अभाव में तीन आरोपियों को बरी कर दिया. 23 साल पुराने इस केस में मुख्य वीडियोग्राफी साक्ष्य गायब पाए गए और कई गवाह अपने पहले के बयान से मुकर गए. ऐसे में अदालत ने कहा कि दोष साबित करने लायक ठोस प्रमाण नहीं हैं.;
गुजरात के अहमदाबाद में 2002 में हुए दंगे से जुड़े एक पुराने मामले में अदालत ने तीन आरोपियों को बरी कर दिया. अभियोजन पक्ष के मुताबिक इस केस में दर्ज किए गए वीडियोग्राफी सबूत अब मौजूद नहीं हैं. ज्यादातर गवाह अपने बयानों से मुकर गए. अदालत ने कहा कि उपलब्ध सामग्री के आधार पर आरोपियों दोषी करार देना संभव नहीं है.
अहमदाबाद दंगे के 2002 के इस केस में अदालत ने 5 नवंबर को फैसला सुनाते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष आरोप साबित करने में विफल रहा है. केस में तीन लोगों पर दंगे के दौरान हिंसा फैलाने, आगजनी और संपत्ति को नुकसान पहुंचाने और एके-47 इस्तेमाल करने के आरोप लगे थे.
अभियोजन पक्ष सबूत पेश करने में रहा विफल
अभियोजन पक्ष ने अपने पक्ष में वीडियोग्राफी सबूतों और चश्मदीद गवाहों पर भरोसा जताया था, लेकिन जांच के दौरान कई महत्वपूर्ण वीडियो क्लिप्स गायब पाए गए. वहीं, जिन गवाहों के बयानों पर केस टिका था, उनमें से अधिकांश ने कोर्ट में बयान बदल दिए.
अदालत ने कहा कि सबूतों और गवाहों की कमी के चलते आरोपियों को दोषी नहीं ठहराया जा सकता. इस फैसले के बाद दंगा मामलों में सबूतों के संरक्षण और गवाह सुरक्षा पर फिर से सवाल खड़े हो गए हैं.
आरोपियों ने अदालत के फैसले पर जताई खुशी
दूसरी तरफ बचाव पक्ष ने अदालत के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि उनके मुवक्किलों को झूठे आरोपों में फंसाया गया था और अब न्याय मिला है. अभियोजन पक्ष ने संकेत दिए हैं कि वह फैसले के खिलाफ अपील पर विचार करेगा.
वीडियोग्राफर भी बयान से पलटा
इस मामले में वीडियोग्राफर सतीश दलवाड़ी ने दावा किया था कि उसने आरोपियों को एके-47 सहित आग्नेयास्त्रों के साथ कैद किया था, लेकिन वह अपने बयान से पलट गया. वीडियो टेप अदालत में कभी पेश नहीं किया गया और वीडियोग्राफर ने अभियोजन पक्ष के मामले का समर्थन नहीं किया. उसे पक्षद्रोही गवाह घोषित कर दिया गया. साथ ही इससे जुड़े महत्वपूर्ण टेप गायब हो गए. 23 साल तक चली सुनवाई के दौरान कई गवाह भी मुकर गए, जिसके बाद आरोपियों को बरी कर दिया गया.
इन पर लगे थे हिंसा में शामिल होने के आरोप
यह मामला 14 अप्रैल, 2002 को हुए दंगों के संबंध में दरियापुर पुलिस स्टेशन में दर्ज दो प्राथमिकियां से संबंधित था. ये प्राथमिकियां सतीश द्वारा एक वीएचएस कैसेट जमा करने के बाद दर्ज की गईं, जिसमें कथित तौर पर आलमगिरी शेख, हनीफ शेख, इम्तियाज शेख, रऊफ मियां सैयद और हिंसा में शामिल अन्य लोगों को दिखाया गया था. क्षेत्र शांति समिति के सदस्य सतीश को तत्कालीन दरियापुर पुलिस निरीक्षक आर.एच. राठौड़ ने सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं, यदि कोई हो, को रिकॉर्ड करने के लिए कहा था.
23 साल बाद आया फैसला
23 वर्षों के दौरान एक आरोपी हनीफ शेख और कुछ गवाहों, जिनमें एक जांच अधिकारी भी शामिल था, की मृत्यु हो गई. कई गवाह पक्षद्रोही हो गए. गवाहों में एक ने अदालत को बताया कि एक रेस्टोरेंट में चाय पीते समय उसके हस्ताक्षर लिए गए थे. शिकायतकर्ता और वीडियोग्राफर सतीश ने कहा कि उन्हें ठीक से नहीं पता कि उन्होंने क्या रिकॉर्ड किया था. एक पुलिस सब-इंस्पेक्टर, एच एच चौहान भी अपने बयान से मुकर गए.