OBC क्रीमीलेयर पर नई तलवार! प्राइवेट से लेकर यूनिवर्सिटी तक कई पद होंगे आरक्षण से बाहर; ये मंत्रालय बना रहे प्लान
केंद्र सरकार OBC क्रीमीलेयर नियम में बड़ा बदलाव करने जा रही है. अब सिर्फ सरकारी अफसर ही नहीं, बल्कि निजी कंपनियों और विश्वविद्यालयों के उच्च पदस्थ कर्मचारी भी इस दायरे में आ सकते हैं. इससे उनके बच्चों का आरक्षण खत्म होगा. मकसद आरक्षण का लाभ असली जरूरतमंदों तक पहुंचाना. लेकिन इस कदम से नया राजनीतिक संग्राम भी तय है.;
केंद्र सरकार ओबीसी आरक्षण के "क्रीमीलेयर" नियम में बड़े बदलाव की तैयारी कर रही है. इसका उद्देश्य यह है कि आरक्षण का फायदा केवल उन वर्गों तक पहुंचे जो वास्तव में सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े हैं. उच्च पदों पर कार्यरत और आर्थिक रूप से मजबूत ओबीसी परिवारों को इस दायरे से बाहर किया जाएगा.
अभी तक अलग-अलग सेक्टर जैसे केंद्र सरकार, राज्य सरकार, सार्वजनिक उपक्रम, विश्वविद्यालय और निजी कंपनियों में क्रीमीलेयर तय करने के मानक अलग-अलग रहे हैं. इसके कारण प्रमाणपत्र जारी करने और लाभ निर्धारण में असमानता रही है. प्रस्ताव में इन सभी के लिए एक समान समतुल्यता पैमाना बनाने की बात है, जिसमें पद और वेतनमान के आधार पर वर्गीकरण होगा.
मंथन में कौन कौन से मंत्रालय शामिल?
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, यह प्रस्ताव एक साधारण प्रशासनिक बदलाव नहीं, बल्कि एक मल्टी-स्टेकहोल्डर पॉलिसी प्रोजेक्ट है. सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने इसे शिक्षा मंत्रालय, कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (DoPT), विधि मंत्रालय, श्रम मंत्रालय, सार्वजनिक उद्यम मंत्रालय, नीति आयोग और राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (NCBC) के साथ मिलकर तैयार किया है. इससे हर सेक्टर की सेवाओं और पदों की तुलना संभव होगी.
क्रीमीलेयर नियम की पृष्ठभूमि
1992 के सुप्रीम कोर्ट के इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ मामले में पहली बार 'क्रीमीलेयर' की अवधारणा को आरक्षण नीति में शामिल किया गया. इसका मकसद था आरक्षण का लाभ उस समुदाय के संपन्न वर्ग तक सीमित न रह जाए. 1993 में पहली सीमा 1 लाख रुपये सालाना तय हुई, जिसे 2004, 2008, 2013 और 2017 में संशोधित कर अब 8 लाख रुपये प्रतिवर्ष किया गया है.
किन्हें क्रीमीलेयर माना जाता है?
क्रीमीलेयर में वे लोग आते हैं जो
- ग्रुप-ए / क्लास-I या ग्रुप-बी / क्लास-II सेवाओं में कार्यरत हैं
- सार्वजनिक क्षेत्र के उच्च पदों पर हैं
- सशस्त्र बलों के उच्च अधिकारी हैं
- पेशेवर और उद्योगपति हैं
- बड़ी संपत्ति या उच्च आय वाले हैं
इन सभी का सामाजिक और आर्थिक आधार मजबूत माना जाता है.
विश्वविद्यालयों और निजी कंपनियों का नया वर्गीकरण
प्रस्ताव के मुताबिक विश्वविद्यालयों में सहायक प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और प्रोफेसर जैसे शिक्षण पद, जिनका वेतनमान लेवल 10 या उससे ऊपर है, उन्हें सीधे क्रीमीलेयर में रखा जाएगा. यही तर्क निजी कंपनियों पर भी लागू होगा- अगर किसी का वेतन और सुविधाएं लेवल 10 के समकक्ष हैं तो वे भी आरक्षण से बाहर होंगे.
स्वायत्त संस्थाएं और राज्य उपक्रम भी राडार पर
केंद्रीय और राज्य स्वायत्त निकाय, वैधानिक संगठन, सरकारी सहायता प्राप्त संस्थान और राज्य के सार्वजनिक उपक्रमों के उच्च पदस्थ कर्मचारियों को भी उनके वेतनमान और ग्रेड के आधार पर क्रीमीलेयर में लाने की योजना है. 2017 में केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों के लिए जो समतुल्यता तय हुई थी, अब वही मॉडल राज्यों पर भी लागू करने की तैयारी है.
क्या है नफा-नुकसान?
अगर यह प्रस्ताव लागू होता है, तो हजारों शिक्षण और गैर-शिक्षण पदों पर कार्यरत, निजी क्षेत्र के उच्च आय वर्ग और राज्य/केंद्रीय उपक्रमों के वरिष्ठ अधिकारी सीधे क्रीमीलेयर में आ जाएंगे. इससे उनके बच्चों के लिए आरक्षण का रास्ता बंद हो जाएगा. समर्थकों का कहना है कि इससे आरक्षण अपने असली हकदारों तक पहुंचेगा, जबकि विरोधियों के अनुसार यह सामाजिक-राजनीतिक तनाव और कानूनी चुनौतियां खड़ा कर सकता है.