26 लाख संदिग्ध खाते, 164 करोड़ की गलत पेमेंट... सरकार की महिला स्कीम में मर्दों की एंट्री, 12 हजार पुरुषों ने ऐसे लगाया चूना
महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के मकसद से शुरू की गई महाराष्ट्र सरकार की महत्वाकांक्षी मुख्यमंत्री माझी लाडकी बहीण योजना अब सवालों के घेरे में है. हाल ही में सामने आए आंकड़ों ने सरकारी सिस्टम की पोल खोल दी है. योजना के तहत जहां 26 लाख खातों को संदिग्ध पाया गया है.;
महाराष्ट्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना मुख्यमंत्री माझी लड़की बहीण योजना महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता को मजबूत करने के मकसद से शुरू की गई थी. योजना के तहत राज्य की 21 से 65 साल की उम्र की उन महिलाओं को हर महीने 1,500 रुपये दिए जा रहे थे, जिनके परिवार की वार्षिक आय 2.5 लाख रुपये से कम है.
लेकिन हाल ही में सामने आई जानकारी ने पूरे सिस्टम की पारदर्शिता पर सवाल खड़े कर दिए हैं. दरअसल, इस योजना का फायदा सिर्फ महिलाओं ने नहीं, बल्कि हजारों पुरुषों ने भी उठाया और वो भी पूरे एक साल तक! सूचना के अधिकार के तहत द इंडियन एक्सप्रेस को मिली जानकारी के अनुसार, कम से कम 12,431 पुरुषों को इस महिला-केंद्रित योजना के तहत हर महीने 1,500 की राशि दी गई. अब सरकार ने इन सभी को गलत लाभार्थी मानते हुए सूची से हटा दिया है.
कब हुई योजना की शुरुआत?
जून 2024 में विधानसभा चुनावों से महज चार महीने पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना-भाजपा महायुति सरकार ने यह योजना शुरू की थी. इसका मकसद महिलाओं को वित्तीय सहारा देना और लाडकी बहन के रूप में सरकार की छवि को मजबूत करना था. अगस्त 2024 में सरकार ने इस योजना के प्रचार-प्रसार के लिए 199.81 करोड़ रुपये का बजट भी दिया गया था. विपक्ष ने इसे चुनाव से पहले की लुभावनी राजनीति बताते हुए इसकी आलोचना की थी. आज की स्थिति में करीब 2.41 करोड़ महिलाएं इस योजना से लाभ उठा रही हैं, जिससे राज्य सरकार पर हर महीने लगभग 3,700 करोड़ रुपये का खर्च आता है.
‘लाडकी बहन’ बन गए 12,000 से ज्यादा पुरुष
महिला एवं बाल विकास विभाग ने आरटीआई के जवाब में बताया कि अब तक 12,431 पुरुषों को इस योजना के तहत लाभ दिया गया. इन पुरुषों को जुलाई 2024 से जुलाई 2025 तक 1,500 रुपये हर महीने के हिसाब से रकम दी गई. यानी केवल इन पुरुष लाभार्थियों को करीब 24.24 करोड़ रुपये की गलत राशि दी गई. इसके अलावा, 77,980 महिलाएं भी ऐसी पाई गईं जो पात्रता मानकों पर खरी नहीं उतरीं. यानी उनके पास आय, संपत्ति या सरकारी नौकरी जैसी वजहों से योजना के तहत लाभ पाने का अधिकार नहीं था. इन महिलाओं को करीब 140.28 करोड़ रुपये का भुगतान हुआ. कुल मिलाकर, 164.52 करोड़ रुपये से अधिक की रकम उन लोगों के खातों में गई जिन्हें यह नहीं मिलनी चाहिए थी.
‘गलती या गड़बड़ी?’-जब सिस्टम ने जवाब देना शुरू किया
डब्लूसीडी विभाग के अनुसार, जैसे-जैसे योजना आगे बढ़ी, विभाग ने लाभार्थियों के डाटा की दोबारा जांच शुरू की. इस प्रक्रिया में यह पता चला कि कई लाभार्थियों ने गलत जानकारी, आय छिपाना या फर्जी दस्तावेज़ देकर योजना का फायदा उठाया था. कई मामलों में एक ही परिवार की दो या उससे अधिक सदस्याओं को एक साथ लाभ दिया गया. सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि 2,400 सरकारी कर्मचारी, जिनमें पुरुष और महिलाएं दोनों शामिल थे, इस योजना का लाभ उठा रहे थे, जबकि वे साफ तौर से पात्र नहीं थे.
कहां-कहां के कर्मचारी निकले लाभार्थी
आरटीआई से यह भी सामने आया कि यह गड़बड़ी लगभग हर विभाग में फैली हुई थी. इन 2,400 कर्मचारियों में से 6 कृषि, पशुपालन, दुग्ध विकास और मत्स्य विभाग में कार्यरत थे, 219 समाज कल्याण आयुक्तालय, 47 आदिवासी विकास विभाग,128 कृषि आयुक्तालय, 817 आयुर्वेद संचालनालय, और सबसे ज्यादा 1,183 कर्मचारी जिला परिषदों में काम कर रहे थे. इन सभी पर अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू कर दी गई है, हालांकि अभी तक किसी के खिलाफ वसूली की प्रक्रिया नहीं शुरू की गई है.
26 लाख संदिग्ध खातों पर रोक
महिला एवं बाल विकास मंत्री अदिती तटकरे ने अगस्त 2025 में एक्स पर लिखा था कि 'राज्यभर में प्रारंभिक डाटा के अनुसार लगभग 26 लाख लाभार्थी ऐसे हैं जो पात्रता मानकों पर खरे नहीं उतरते.' इन सभी के डाटा को जिला अधिकारियों को भेजा गया है ताकि फिजिकल वेरिफिकेशन के बाद उनकी पात्रता तय की जा सके. अदिती ने साफ किया कि 'जो लाभार्थी अयोग्य पाए जाएंगे, उनके खिलाफ उचित कार्रवाई की जाएगी. वहीं, योग्य महिलाओं को योजना का लाभ नियमित रूप से मिलता रहेगा.' इसके बाद, जून-जुलाई 2025 में सरकार ने 26.34 लाख संदिग्ध खातों में भुगतान अस्थायी रूप से रोक दिया, जब तक सत्यापन पूरा नहीं हो जाता.
लापरवाही या जल्दबाजी?-लॉन्चिंग में हुई चूकें
अधिकारियों के मुताबिक, योजना की शुरुआत के वक्त डेटा फिल्टरिंग और वेरिफिकेशन सिस्टम पर्याप्त मजबूत नहीं था. सरकार ने इसे बड़े पैमाने पर लागू तो कर दिया, लेकिन पात्रता जांच के कई स्तरों को पूरी तरह ऑटोमेटेड नहीं किया गया था. इस वजह से पुरुषों के नाम भी लाभार्थियों की सूची में जुड़ गए और ई-केवाईसी न होने के बावजूद भुगतान होता रहा. एक अधिकारी ने बताया कि 'योजना को बहुत तेजी से शुरू किया गया था. उस समय फील्ड लेवल पर दस्तावेज़ों की क्रॉस-चेकिंग नहीं हो पाई. कई जिलों से डाटा एंट्री में भी गलतियाँ हुईं, जिससे पुरुषों और गैर-पात्र महिलाओं के नाम सिस्टम में चले गए.'
पैसे की वसूली पर अब भी सस्पेंस
सरकार ने हालांकि इन गलत लाभार्थियों को सूची से हटा दिया है, लेकिन अब तक एक भी रुपये की वसूली नहीं हुई है. डब्लूसीडी विभाग के आरटीआई जवाब के अनुसार 'अयोग्य पाए गए पुरुषों और महिलाओं से राशि की रिकवरी को लेकर अभी कोई अंतिम निर्णय नहीं हुआ है.' यानी 164 करोड़ रुपये से ज्यादा की सरकारी राशि फिलहाल डूबे पैसे की तरह ही पड़ी है. विभाग के अधिकारियों का कहना है कि जब तक प्रत्येक जिले का सत्यापन पूरा नहीं हो जाता, तब तक वसूली प्रक्रिया पर निर्णय नहीं लिया जाएगा.
जनता के पैसे की कीमत
यह पूरा मामला इस बात का प्रतीक है कि किसी भी जनकल्याणकारी योजना में पारदर्शिता और टेक्नोलॉजिकल सत्यापन कितना जरूरी है. सरकारी खजाने से 164 करोड़ रुपये से ज्यादा की राशि ऐसे खातों में चली गई जिनका न तो मकसद से कोई संबंध था और न ही पात्रता से.जबकि दूसरी ओर, कई गरीब और योग्य महिलाएं ऐसी भी हैं जिन्हें अब तक योजना का लाभ नहीं मिल पाया है.