कोलकाता के पुराने डिब्बे से निकला इतिहास का खजाना, 150 साल पुरानी रेगिस्तानी छिपकली को मिला असली नाम

वैज्ञानिकों ने 150 साल पुरानी रेगिस्तानी छिपकली का रहस्य सुलझा दिया है. इस छिपकली को पहले एरेमियास वाटसनाना कहा जाता था, लेकिन अब सैंपल्स को स्टडी कर इसे पहचान दे दी गई है.;

( Image Source:  pexel )
Edited By :  हेमा पंत
Updated On : 25 May 2025 12:44 PM IST

150 साल पहले एक फेमस नैचुरलिस्ट फर्डिनेंड स्टोलिकज़्का ने फारस (आज के ईरान) की यात्रा की थी. इस दौरान उन्होंने कई अनोखे जीव-जंतुओं के नमूने इकट्ठा किए और उन्हें भारत लाकर कोलकाता के म्यूजियम में जमा किया. उन्हीं सैंपल में से एक छोटी सी लंबी पूंछ वाली रेगिस्तानी छिपकली थी. 

उस समय उन्होंने इस छिपकली का नाम रखा एरेमियास वाटसनाना, लेकिन समय के साथ इसके नाम और पहचान को लेकर वैज्ञानिकों के बीच भ्रम पैदा हो गया.

ZSI ने सुलझाई वैज्ञानिक पहेली

जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के दो साइंटिस्ट सुमिध रे और डॉ. प्रत्युष पी. मोहपात्रा ने इस रहस्य को सुलझाया. उन्होंने कोलकाता में संग्रहित एक पुराने सैंपल ZSI-R-5050 की गहराई से जांच की. यह नमूना वही था, जो स्टोलिकज़्का 1872 में फारस से लाए थे. अब वैज्ञानिकों ने इसे 'लेक्टोटाइप' घोषित कर दिया है. यानी इस प्रजाति का ऑफिशियिल और स्टैंडर्ड उदाहरण.

छिपकली का नया नाम 

पहले जिसे एरेमियास वाटसनाना कहा जाता था. अब उसका नया और सही नाम मेसलीना वाटसनाना है. यह छिपकली दक्षिण और मध्य एशिया के सूखे और रेगिस्तानी इलाकों में पाई जाती है. इस नई पहचान से वैज्ञानिक अब इस प्रजाति का सही अध्ययन कर सकेंगे और रेगिस्तानी जीव-जंतुओं की जैव विविधता को बेहतर समझ पाएंगे.

पुराने संग्रह की नई अहमियत

ZSI की निदेशक डॉ. धृति बनर्जी ने बताया कि 'स्टोलिकज़्का का किया गया काम आज भी उतना ही जरूरी है. जब हम पुराने नमूनों को सही नाम और पहचान देते हैं, तो हम न सिर्फ विज्ञान को आगे बढ़ाते हैं, बल्कि अपने पूर्ववर्ती वैज्ञानिकों की विरासत को भी सम्मान देते हैं.'

सरीसृप विज्ञान की दुनिया में नया कदम

कोलकाता, लंदन और वियना जैसे शहरों के म्यूजियम में रखे गए बिखरे और अधूरे रिकॉर्ड अब एकजुट होकर वैज्ञानिकों को सही दिशा में गाइडेंस दे सकते हैं. मेसलीना वाटसनाना की पहचान से अब शोधकर्ताओं को छिपकलियों के विकास और इकोलॉजी पर गहराई से स्टडी करने में मदद मिलेगी और साथ ही, दशकों पुराना भ्रम भी आखिरकार खत्म हो गया है.

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