क्या ‘पूर्ण साक्षरता’ का मतलब 100% होता है? कुछ और कहती है मिजोरम की कहानी

ULLAS कार्यक्रम के तहत मिजोरम ने 98.2% साक्षरता दर हासिल कर ‘पूर्ण साक्षर राज्य’ का गौरव प्राप्त किया है. यह उपलब्धि सिर्फ आंकड़ों का खेल नहीं, बल्कि सामाजिक बदलाव की मिसाल है. सरकार, समाज और स्वयंसेवकों की साझेदारी से शिक्षा ने विकास का नया रास्ता दिखाया है, जो अन्य राज्यों के लिए भी प्रेरणास्रोत बन सकता है.;

Curated By :  नवनीत कुमार
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देश के विकास और समाज के सशक्तिकरण में शिक्षा की भूमिका सदैव महत्वपूर्ण रही है. इसी कड़ी में मिजोरम ने एक बार फिर अपनी अलग पहचान बनाते हुए देश का पहला पूर्ण साक्षर राज्य बनने का गौरव हासिल किया है. यह उपलब्धि केवल एक संख्या नहीं, बल्कि समाज के हर वर्ग में शिक्षा के महत्व को समझने और अपनाने का प्रमाण है. इस सफलता ने यह दिखाया है कि जब एक राज्य की सरकार, समाज और आम जनता मिलकर शिक्षा के लक्ष्य को अपने जीवन का अहम हिस्सा बना लें, तो असंभव भी संभव हो जाता है.

मिजोरम की यह सफलता नॉर्थ-ईस्ट क्षेत्र के लिए एक प्रेरणा स्रोत है, जहां अक्सर विकास और शिक्षा को लेकर कई चुनौतियां सामने आती रही हैं. केरल जैसे शिक्षित राज्यों को पीछे छोड़ते हुए मिजोरम ने यह मुकाम हासिल किया है, जो इस क्षेत्र के लिए गर्व की बात है. खास बात यह है कि यह उपलब्धि सिर्फ सतही नहीं, बल्कि गहरे सामाजिक परिवर्तन का सूचक है. यहां शिक्षा ने सामाजिक असमानताओं को कम करने, महिलाओं और पिछड़े वर्गों को आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई है.

क्या है 'पूर्ण साक्षरता' की परिभाषा?

केंद्र सरकार द्वारा चलाए जा रहे ULLAS - नव भारत साक्षरता कार्यक्रम के अंतर्गत किसी भी राज्य को तब ‘पूर्ण साक्षर’ माना जाता है जब उसकी साक्षरता दर 97 प्रतिशत या उससे अधिक हो जाती है. इसका मतलब यह है कि राज्य के 15 वर्ष से अधिक आयु के कम से कम 97 प्रतिशत नागरिक पढ़ने, लिखने और सरल गणना करने में सक्षम हों. यानी अभी भी 3 प्रतिशत आबादी ऐसी हो सकती है जो निरक्षर है, लेकिन सरकारी मानकों के मुताबिक यह स्तर ‘पूर्ण साक्षरता’ की श्रेणी में आता है.

मिजोरम की साक्षरता दर क्या है?

ULLAS योजना के अंतर्गत वर्ष 2023-2024 में मिजोरम में किए गए व्यापक सर्वे के अनुसार राज्य की साक्षरता दर 98.2% तक पहुंच गई. यानी यह तय सीमा से ऊपर है और इसलिए इसे 'पूर्ण साक्षर राज्य' घोषित किया गया. लेकिन आंकड़ों से स्पष्ट है कि मिजोरम में भी अभी 100% लोग साक्षर नहीं हैं. लगभग 1.8% आबादी अब भी ऐसी है जिसे साक्षरता की बुनियादी जरूरत है.

यह आंकड़ा कैसे हासिल हुआ?

ULLAS कार्यक्रम के तहत 292 स्वयंसेवकों, शिक्षकों और छात्रों की मदद से मिजोरम में 3026 निरक्षर लोगों की पहचान की गई, जिनमें से बड़ी संख्या में लोगों को पढ़ना-लिखना सिखाया गया. यह प्रक्रिया सरकारी मानकों के अनुसार पूरी पारदर्शिता के साथ संचालित हुई, और तभी जाकर 98.2% साक्षरता दर दर्ज की गई. इसका मूल्यांकन केवल नामांकन नहीं, बल्कि वास्तविक शिक्षण परिणामों के आधार पर किया गया.

तो फिर 'पूर्ण साक्षरता' की घोषणा क्यों?

यह घोषणा उस मील के पत्थर को चिह्नित करती है जहां राज्य ने शेष निरक्षरता को सामाजिक और संस्थागत प्रयासों से काफी हद तक नियंत्रित कर लिया है. शिक्षा मंत्रालय का मानना है कि जब साक्षरता एक निश्चित सीमा (97%) पार कर जाती है, तो राज्य इस स्थिति में होता है कि वह बाकी बचे प्रतिशत पर भी लगातार काम करता रहे और समावेशी विकास की दिशा में आगे बढ़े.

केंद्र और राज्य ने मिलकर की क्रांति

शिक्षा राज्य मंत्री जयंत चौधरी के नेतृत्व में मिजोरम में शिक्षा क्षेत्र में व्यापक बदलाव हुए हैं. मुख्यमंत्री लालदुहोमा के सहयोग से राज्य सरकार ने शिक्षा को प्राथमिकता दी और नीतिगत सुधारों के जरिए साक्षरता दर को बढ़ाने पर फोकस किया. यह कदम सिर्फ पढ़ाई-लिखाई तक सीमित नहीं रहा, बल्कि सामाजिक जागरूकता और सामूहिक प्रयासों से निरक्षरता को समाप्त करने का अभियान चला. इसका असर दिख रहा है कि आज मिजोरम के हर नागरिक के पास पढ़ने-लिखने का अधिकार है, जिससे वे अपने जीवन को बेहतर बना सकते हैं.

दूसरे राज्य भी सेट करें एग्जांपल

मिजोरम की इस उपलब्धि ने देश के अन्य राज्यों के लिए एक नजीर पेश की है. शिक्षा केवल कागजों में आंकड़ों तक सीमित नहीं रहनी चाहिए, बल्कि इसे समाज के हर हिस्से में व्यावहारिक रूप में उतारना जरूरी है. ‘ULLAS’ जैसे नवाचारों के साथ राज्य सरकारों को निरक्षरता को जड़ से खत्म करने और सामाजिक विकास की नई राह बनाने की आवश्यकता है. मिजोरम का यह कदम दिखाता है कि अगर नीति, जनसमर्थन और समर्पित कार्यकर्ता साथ मिलें, तो देश के कोने-कोने में शिक्षा का उजियाला फैलाया जा सकता है.

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