सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन ने रेटिंग में किया बदलाव, अब फिल्मों को मिलेंगी U7+, 13+, 16+ कैटेगरी
सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन जिसे आम तौर पर सेंसर बोर्ड के नाम से जाना जाता है. यह भारत में फिल्मों के सीन का रिव्यू कर सर्टिफिकेशन देने का काम करता है. साथ ही, फिल्मों को यू और ए जैसी फिल्म रेटिंग कैटेगरी देता है.;
सेंट्रल फिल्म सर्टिफिकेशन बोर्ड पिछले 40 साल से एक फिल्म रेटिंग सिस्टम के तहत काम कर रहा है. अब इस नियम में बदलाव लाया गया है, जिसमें पेरेंट्स यह तय कर पाएंगे कि क्या फिल्म उनके बच्चे के लिए सही है या नहीं.
हाल ही में लिए गए एक फैसले में नई रेटिंग कैटेगरी शुरू की गई हैं. सीबीएफसी बोर्ड के सदस्यों का कहना है कि यह चर्चा पिछले कई सालों से चल रही थी. अब यह क्लासिफिकेशन सर्टिफिकेशन बोर्ड को सभी फिल्मों को सिर्फ एक कैटेगरी में रखने से बचने में मदद करेगा.
समझें काम करने का तरीका
इस मामले में एक सोर्स ने कहा कि इस क्लासिफिकेशन को फाइनल करने से पहले बहुत सारी चीजों पर चर्चा की गई थी. कभी-कभी हिंसा खूनी और ग्राफिक होती है, लेकिन इस पर कभी कहा जाता है कि यह 16+ साल के बच्चों के लिए सही है, लेकिन 7+ साल के बच्चों के लिए नहीं. कई बार ऐसा भी होता है, जब वॉयलेंस नहीं होता है, लेकिन टॉपिक मैच्योर होता है, जो 7+ या 13+ साल के बच्चों के लिए सही नहीं होता है.
शिकायतें होगी कम
इसके आगे उन्होंने कहा कि फिल्म मेकर अक्सर शिकायत करते हैं कि उनकी फिल्मों को गलत तरीके से आंका जा रहा है. ऐसा इसलिए क्योंकि भारत में हमारे पास फिल्मों की कैटेगरी में कोई बारीकियां नहीं हैं. अब ये नई कैटेगरी उन शिकायतों को रोकने में मदद करेंगी.
कैटेगरी में आए बदलाव
सिनेमैटोग्राफ एक्ट 1952 (1952 का एक्ट 37), जो फिल्मों को प्रमाणित करते समय पालन किए जाने वाले दिशा-निर्देश निर्धारित करता है. शुरुआत में सर्टिफिकेशन की यू और ए केवल दो कैटेगरे थीं. यू का मतलब है अंडर रिस्ट्रिक्टेड पब्लिक एग्जीबिशन और ए रिस्ट्रिक्टेड टू अडल्ट ऑडियंस.
जून 1983 में दो अन्य कैटेगरी एड की गई, जिसमें यूए और 5 शामिल है. यूए यानी बारह वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए पेरेंट्स के गाइडेंस के अंडर रिस्ट्रिक्टेड पब्लिक एग्जीबिशन. वहीं, रेटिंग यानी डॉक्टर या साइंटिस्ट जैसे स्पेशल ऑडियंस तक सीमित है.