US Presidential Election: दो बड़े अखबारों ने क्यों लिया उम्मीदवारों का सपोर्ट न करने का फैसला?
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक अमेरिका के दो प्रमुख समाचार-पत्र द वाशिंगटन पोस्ट और द लॉस एंजेलिस टाइम्स ने आगामी राष्ट्रपति चुनाव के लिए किसी भी उम्मीदवार का समर्थन नहीं करने का फैसला लिया है. कई विशेषज्ञ इसे लोकतंत्र के लिए दुर्भाग्यपूर्ण मान रहे हैं.

US Election 2024: अमेरिका में आगामी राष्ट्रपति चुनाव को लेकर सियासी पारा हाई नजर आ रहा है. सभी राजनीतिक दल चुनाव प्रचार में जुटे हुए हैं. इस बीच एक बड़ी खबर सामने आई है जिससे चुनाव पर काफी असर देखने को मिल सकता है.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक अमेरिका के दो प्रमुख समाचार-पत्र द वाशिंगटन पोस्ट और द लॉस एंजेलिस टाइम्स ने आगामी राष्ट्रपति चुनाव प्रचार के बॉयकॉट करने का फैसला किया है. यानी दोनों अखबार किसी भी उम्मीदवार का समर्थन नहीं करेंगे.
चुनाव प्रचार का बॉयकॉट
द वाशिंगटन पोस्ट और द लॉस एंजेलिस टाइम्स के इस फैसले से सभी हैरान हैं. कई विशेषज्ञ इसे लोकतंत्र के लिए दुर्भाग्यपूर्ण मान रहे हैं. मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया कि इस साल की 80 मीडिया हाउस डेमोक्रेटिक उम्मीदवार कमला हैरिस और 10 से भी कम रिपब्लिकन उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रम्प का समर्थन कर रहे हैं.
36 सालों में पहली बार लिया ऐसा फैसला
वाशिंगटन पोस्ट की वेबसाइट पर एक कॉलम में सीईओ विलियम लुईस ने घोषणा की कि अखबार 36 साल में पहली बार राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार का समर्थन नहीं करेगा. लुईस ने कहा कि इस निर्णय का उद्देश्य पाठकों की "अपने मन बनाने की क्षमता" का सम्मान करना है और यह अखबार के मूल मूल्यों के अनुरूप है.
उन्होंने स्पष्ट किया, "हम मानते हैं कि इसे कई तरह से देखा जाएगा, जिसमें एक उम्मीदवार का मौन समर्थन, दूसरे की निंदा या जिम्मेदारी से मुंह मोड़ना शामिल है. "हम इसे उस तरह से नहीं देखते. हम इसे उन मूल्यों के अनुरूप देखते हैं, जिनके लिए पोस्ट हमेशा खड़ा रहा है और जो हम एक नेता से उम्मीद करते हैं."
इस कारण जरूरी है मीडिया का समर्थन
अमेरिका के चुनाव में मीडिया का समर्थम काफी महत्वपूर्ण माना जाता है. यह 1860 में शिकागो ट्रिब्यून द्वारा अब्राहम लिंकन के समर्थन से चली आ रही है. फिर न्यूयॉर्क टाइम्स ने 1932 में फ्रैंकलिन डी रूजवेल्ट का समर्थन किया. विशेषज्ञों का कहना है कि अखबार उम्मीदवारों के सावधानीपूर्वक विश्लेषण के आधार पर समर्थन को सही बताते हैं. इससे चुनाव नतीजों पर काफी असर देखने को मिल सकता है. चिंता जताई गई है कि इस फैसले से प्रमुख मीडिया आउटलेट्स का स्वामित्व प्रभावशाली अरबपतियों के बीच मजबूत होता जाएगा. संपादकीय स्वतंत्रता के सवाल बने रहने की संभावना है, खासकर उच्च-दांव वाले राजनीतिक संदर्भों में.