चीन का यह हथियार कैसे कर सकता है पूरे देश की बिजली गुल? ड्रैगन के Graphite Bomb से सकते में दुनिया
चीन की सरकारी मीडिया ने हाल ही में एक ऐसे रहस्यमयी हथियार की पहली झलक साझा की है जो युद्ध की दिशा ही बदल सकता है. इसे आम भाषा में 'ग्रेफाइट बम' कहा जाता है, जो दुश्मन देश के इलेक्ट्रिकल ग्रिड को बिना विस्फोट से नुकसान पहुंचाए पूरी तरह से ठप कर सकता है. यह बम प्रत्यक्ष रूप से जानलेवा नहीं होता, लेकिन इसकी रणनीतिक मारक क्षमता दुश्मन के संपूर्ण बुनियादी ढांचे को घुटनों पर ला सकती है.

चीन ने हाल ही में एक बेहद खतरनाक और रणनीतिक रूप से अहम हथियार - ग्रेफाइट बम - का वीडियो सार्वजनिक कर वैश्विक सुरक्षा हलकों में हलचल मचा दी है. यह बम दुश्मन की विद्युत व्यवस्था को बिना विस्फोट या भौतिक विनाश के पूरी तरह पंगु बना सकता है. चीन के सरकारी चैनल सीसीटीवी द्वारा जारी एनीमेशन में इस बम को जमीन से लॉन्च होते हुए दिखाया गया है, जो हवा में 90 से ज्यादा सिलेंडरनुमा सबम्यूनिशन छोड़ता है. ये कार्बन फाइबर फिलामेंट्स छोड़ते हैं जो हाई-वोल्टेज पावर सिस्टम में शॉर्ट सर्किट कर देते हैं और बड़े पैमाने पर ब्लैकआउट का कारण बनते हैं.
1991 के खाड़ी युद्ध और 1999 के कोसोवो संघर्ष में अमेरिका पहले ही ऐसे हथियारों का इस्तेमाल कर चुका है. चीन के इस बम को ताइवान जैसे लक्ष्यों के लिए तैयार माना जा रहा है. यह आधुनिक युद्ध में 'साइबर+इलेक्ट्रिकल' रणनीति की नई मिसाल बन रहा है.
क्या है ग्रेफाइट बम?
ग्रेफाइट बम को 'सॉफ्ट किल वेपन' भी कहा जाता है. इसका मुख्य उद्देश्य बिजली आपूर्ति प्रणाली को निष्क्रिय करना होता है, न कि भवनों या मानव जीवन को सीधे नुकसान पहुंचाना. यह बम छोटे-छोटे ग्रेफाइट फाइबर (कार्बन आधारित रेशे) फैलाता है, जो बिजली की लाइनों और सबस्टेशनों में शॉर्ट सर्किट उत्पन्न कर देते हैं.
कैसे काम करता है यह बम?
ग्रेफाइट बम एक मिसाइल या बम के ज़रिये निर्धारित लक्ष्य पर गिराया जाता है. इसके अंदर सैकड़ों सिलेंडरनुमा सबम्यूनिशन होते हैं जो हवा में विस्फोटित होकर ग्रेफाइट फाइबर छोड़ते हैं. ये फाइबर हवा में फैलकर उच्च वोल्टेज पावर सिस्टम्स पर गिरते हैं और वहां की इंसुलेटेड सतहों को पार करके शॉर्ट सर्किट पैदा कर देते हैं. इससे बिजली ग्रिड फेल हो जाती है और पूरे शहर या इलाके में ब्लैकआउट हो सकता है.
चीन की नई तकनीक कितनी उन्नत है?
CCTV द्वारा साझा की गई एनिमेटेड वीडियो में एक लैंड-बेस्ड मिसाइल लॉन्चर दिखाया गया, जो करीब 90 सबम्यूनिशन छोड़ता है. रिपोर्ट के अनुसार, यह ग्रेफाइट बम लगभग 10,000 वर्ग मीटर क्षेत्र में प्रभाव डाल सकता है. इसकी रेंज 290 किलोमीटर और वॉरहेड का वजन 490 किलोग्राम बताया गया है. चीन की इस नई प्रणाली में BeiDou सैटेलाइट सिस्टम का संभावित उपयोग भी बताया जा रहा है, जिससे यह हथियार बेहद सटीक और रणनीतिक बन जाता है.
किन देशों के पास है ग्रेफाइट बम?
ग्रेफाइट बम की शुरुआत संयुक्त राज्य अमेरिका ने की थी. 1991 खाड़ी युद्ध में अमेरिका ने BLU-114/B ग्रेफाइट बम का उपयोग कर इराक का 85% बिजली तंत्र ठप कर दिया था. 1999 कोसोवो युद्ध में अमेरिकी F-117 स्टेल्थ विमान द्वारा इस बम का उपयोग करके सर्बिया के 70% इलेक्ट्रिकल ग्रिड को निष्क्रिय कर दिया गया था.
दक्षिण कोरिया ने भी आधिकारिक रूप से ग्रेफाइट बम का विकास किया है, जिसे वह उत्तर कोरिया के खिलाफ उपयोग में ला सकता है. अब चीन का इस तकनीक में उतरना दर्शाता है कि वह भी आधुनिक साइबर और पावर ग्रिड युद्ध नीति को अपनाने की दिशा में गंभीर है.
रणनीतिक दृष्टिकोण से क्यों खतरनाक है यह हथियार?
- ग्रेफाइट बम सीधे लोगों को नुकसान नहीं पहुंचाता, लेकिन बिजली बंद होते ही अस्पताल, परिवहन, संचार, जल आपूर्ति, इंटरनेट जैसी सारी व्यवस्था ठप हो सकती है.
- यह बम दुश्मन के Command, Control, Communications, Computers, Intelligence, Surveillance और Reconnaissance यानी C4ISR सिस्टम को जड़ से काट सकता है.
- परंपरागत बमों की तुलना में इसकी लागत कम है और इसके प्रभाव ज्यादा व्यापक हो सकते हैं.
भारत के लिए क्या है इसका महत्व?
भारत को इस घटनाक्रम को रणनीतिक चेतावनी के रूप में देखना चाहिए. भारत की बड़ी जनसंख्या और तेजी से डिजिटल होते बुनियादी ढांचे के कारण पावर ग्रिड की सुरक्षा अब राष्ट्रीय सुरक्षा का अहम पहलू बन गया है. DRDO और अन्य रक्षा एजेंसियों को EMF और ग्रेफाइट आधारित हमलों से निपटने के लिए सुरक्षा प्रणालियों को विकसित करना चाहिए. भारत को अपने सिविलियन और मिलिट्री ग्रिड्स को सेगमेंटेड और इमरजेंसी बैकअप सिस्टम से लैस करना चाहिए.
चीन का ग्रेफाइट बम केवल एक नया हथियार नहीं, बल्कि एक नई रणनीति की घोषणा है - जिसमें दुश्मन को मारने के बजाय उसकी प्रणाली को पंगु बना दिया जाए. यह तकनीक 'युद्ध' की परिभाषा को बदल रही है, और दुनिया के शक्तिशाली देशों को 'ब्लडलेस वारफेयर' की दिशा में मोड़ रही है. ऐसे में भारत और बाकी देशों को भी अपने क्रिटिकल इंफ्रास्ट्रक्चर को ऐसे हमलों से बचाने की ठोस योजना बनानी होगी.