जिसे पीएम बनाया उसे... नेपाल में तीन दिन में बदली सियासत, PM सुशीला कार्की के खिलाफ हुए Gen-Z; क्यों खफा हुए सुदन गुरुंग?
नेपाल की राजनीति में तीन दिन में ही बड़ा बदलाव देखने को मिला. प्रधानमंत्री बनीं सुशीला कार्की अब उन्हीं Gen-Z युवाओं के निशाने पर हैं जिन्होंने उन्हें सत्ता दिलाई थी. सुदन गुरुंग और 'हामी नेपाल' संगठन ने पीएम आवास के बाहर जोरदार विरोध प्रदर्शन किया और मंत्रिमंडल गठन पर सवाल उठाए. शहीद परिवारों से मुलाकात न होने और मंत्रियों के चयन को लेकर नाराज़गी बढ़ती जा रही है. नेपाल की सियासत फिर अस्थिरता की ओर बढ़ रही है.

नेपाल की राजनीति हमेशा से ही अस्थिरता और अचानक होने वाले बदलावों के लिए जानी जाती है. लेकिन इस बार घटनाक्रम इतना तेज़ रहा कि सुशीला कार्की के प्रधानमंत्री पद की शपथ के सिर्फ तीन दिन बाद ही हालात बदल गए. राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल के कहने पर अंतरिम प्रधानमंत्री बनीं कार्की को लाने में जिस Gen-Z आंदोलन का सबसे बड़ा हाथ था, वही अब उनके खिलाफ विरोध में उतर आया है. काठमांडू की सड़कों पर उठी नाराज़गी ने साफ संकेत दे दिया कि नेपाल में सत्ता परिवर्तन का यह अध्याय अभी और लंबा खिंच सकता है.
‘हम नेपाली’ नाम के एनजीओ और इसके नेता सुडान गुरुंग हालिया राजनीतिक घटनाक्रम के मुख्य चेहरे रहे. लेकिन अब वही लोग कार्की के खिलाफ मोर्चा खोल चुके हैं. बलुवाटार स्थित प्रधानमंत्री आवास के बाहर सैकड़ों युवाओं ने विरोध प्रदर्शन किया और कार्की को आंदोलन की मूल बातों से भटकने का आरोप लगाया. ये वही लोग हैं जिन्होंने संसद भंग करवाने और अंतरिम सरकार बनाने की पैरवी की थी.
क्यों नाराज़ हुए प्रदर्शनकारी?
आंदोलनकारियों का कहना है कि कार्की जैसे ही सत्ता में आईं, उन्होंने जनता से किए वादे भुला दिए. शहीद परिवारों को प्राथमिकता देने और मंत्रिमंडल में युवाओं को जगह देने का वादा धरे का धरा रह गया. इससे गुस्सा और बढ़ा क्योंकि कार्की ने अपने अंतरिम मंत्रिमंडल में सिर्फ तीन चेहरों को जगह दी और इन नामों का चयन भी पूरी तरह से Gen-Z की राय के बिना हुआ.
सुदान गुरुंग का दबदबा और नाराज़गी
सुदान गुरुंग आंदोलन के नायक रहे हैं. उनकी अगुवाई में ‘हामी नेपाल’ ने तख्तापलट जैसे हालात में अहम भूमिका निभाई थी. लेकिन अब वे पीएम कार्की से खुलकर नाराज़ हैं. गुरुंग का साफ कहना है, “जिसे मैं प्रधानमंत्री की कुर्सी तक लाया हूँ, उसे हटाने में देर नहीं लगेगी.” उनका यह बयान केवल गुस्से का नहीं, बल्कि आगे की सियासत के संकेत भी देता है.
किसे मिला मंत्रालय?
राष्ट्रपति कार्यालय की ओर से जारी सूची में कुलमान घिसिंग को ऊर्जा मंत्रालय, रामेश्वर खनाल को वित्त और ओमप्रकाश आर्यल को गृह व कानून मंत्रालय का जिम्मा सौंपा गया. खासकर ओमप्रकाश आर्यल की नियुक्ति ने विवाद खड़ा कर दिया. आरोप है कि वे पहले आंदोलनकारियों से सहानुभूति जताते थे, लेकिन बाद में सत्ता के दबाव में आकर मंत्री पद ले लिया. इससे प्रदर्शनकारियों ने उन्हें भी ‘जन-आंदोलन के साथ गद्दारी’ करने वाला कहा.
शहीद परिवारों की नाराज़गी
प्रदर्शन का सबसे भावनात्मक पहलू शहीद परिवारों की पीड़ा रही. अप्रैल में हुए प्रदर्शनों और हिंसा में 72 से अधिक लोगों की मौत हुई. जिनके परिवार के सदस्य गोलीकांड या आगजनी में मारे गए, वे चाहते थे कि नई प्रधानमंत्री उनसे सीधे मिलें और न्याय की गारंटी दें. लेकिन अब तक न तो मुलाकात हुई और न ही मुआवजा या पुनर्वास को लेकर कोई ठोस घोषणा. इसी कारण शहीद परिवार Gen-Z के साथ मिलकर विरोध दर्ज करा रहे हैं.
अंतरिम सरकार की चुनौती
राष्ट्रपति पौडेल ने संसद भंग कर छह महीने के भीतर आम चुनाव कराने का ऐलान किया है. कार्की को मुख्य रूप से निष्पक्ष चुनाव कराना है, लेकिन इस राजनीतिक अस्थिरता में उनके लिए चुनौती दोगुनी हो गई है. यदि युवाओं का आंदोलन और तेज़ हुआ तो चुनावी प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है और सुरक्षा-प्रशासन पर भी भारी दबाव आएगा.
अब आगे समझौता या टकराव?
नेपाल की सियासत फिलहाल चौराहे पर खड़ी है. या तो पीएम कार्की शहीद परिवारों और Gen-Z से संवाद कर समझौता करेंगी, या फिर यह टकराव उनके पद की स्थिरता को हिला सकता है. सुदान गुरुंग जैसे युवा नेता साफ कर चुके हैं कि वे पीछे नहीं हटेंगे. आने वाले दिनों में यह तय होगा कि नेपाल स्थिरता की ओर बढ़ेगा या फिर एक और सियासी संकट खड़ा होगा.