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Pakistan: कुर्रम में ही कोहराम क्‍यों? इतिहास में छुपी है हिंसा की जड़ें, पिछले तीन दशकों का खूनी खेल

Shia vs Sunni, Pakistan Kurram: 21 नवंबर से शिया और सुन्नी जनजातीय समूहों के बीच तीन दिनों तक चले संघर्ष में कम से कम 64 लोग मारे गए हैं. इस शीत युद्ध के दौरान तीन घटनाओं ने कुर्रम में तनाव काफी बढ़ा दिया है.

Pakistan: कुर्रम में ही कोहराम क्‍यों? इतिहास में छुपी है हिंसा की जड़ें, पिछले तीन दशकों का खूनी खेल
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Shia vs Sunni, Pakistan Kurram
सचिन सिंह
Edited By: सचिन सिंह

Updated on: 25 Nov 2024 2:46 PM IST

Shia vs Sunni, Pakistan Kurram: पाकिस्तान के उत्तर-पश्चिमी खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के कुर्रम जिले में हिंसा में 64 लोगों की मौत हो चुकी है. कुर्रम जिले में 21 नवंबर को बागान शहर में आतंकवादी हमले में 45 से अधिक शिया की हत्या के बाद सांप्रदायिक हिंसा फैल गई. पाकिस्तान में सांप्रदायिक हत्याएं काफी आम हैं और कुर्रम में हिंसा का इतिहास रहा है

पाकिस्तानी न्यूज वेबसाइट डॉन के मुताबिक, तब से शिया और सुन्नी आदिवासी समूहों के बीच तीन दिनों तक चली झड़पों में कम से कम 64 लोग मारे गए हैं, जिनमें शनिवार रात को मारे गए 21 लोग भी शामिल हैं.

लगातार झड़पें और हिंसा

इन सभी कारणों ने कुर्रम में रुक-रुक कर सांप्रदायिक हिंसा को बढ़ावा दिया, खासकर पिछले तीन दशकों में अफगान तालिबान के उदय के बाद तक. टीटीपी ने शासन और विकास की कमी के कारण मौजूदा सांप्रदायिक विभाजन का फायदा उठाया है.

पाकिस्तान सरकार के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, 2007 और 2011 के बीच शिया और सुन्नी दोनों ओर से 2,000 से अधिक लोग मारे गए, वहीं 5,000 से अधिक घायल हुए. झड़प और हिंसा हजारों लोग विस्थापित हुए.

इस साल जुलाई के आखिर से ही खून-खराबा देखने को मिल रहा है, जब शिया तुरी की एक उप-जनजाति माली खेल और मुख्य रूप से सुन्नी मडगी कलाय जनजाति के बीच पाराचिनार के दक्षिण में एक इलाके में जमीन विवाद के कारण लगभग 50 लोगों की हत्या हो गई थी. इन सब पर सुरक्षा उपायों और यात्रा पर बैन के बाद भी कोई असर नहीं दिख रहा है.

कुर्रम में शिया और सुन्नी

कुर्रम काबुल के दक्षिण और पूर्व में अफगान प्रांत लोगर, पक्तिया, खोस्त और नंगरहार से सटा हुआ है. इसके पश्चिम में 192 किलोमीटर लंबी डूरंड रेखा के साथ कई सीमा क्रॉसिंग हैं, जिसमें ऐतिहासिक पेइवार कोटल दर्रा भी शामिल है. इसके माध्यम से अफगान राजधानी तक पहुंचने का सबसे कम दूरी का रास्ता गुजरता है.

कुर्रम की 7.85 लाख आबादी (2023 की जनगणना) में से 99% से ज़्यादा पश्तून हैं जो तुरी, बंगश, ज़ैमुश्त, मंगल, मुक़बल, मसुज़ाई और परचमकानी जनजातियों के हैं. तुरी और कुछ बंगश शिया हैं, बाकी में सुन्नी हैं.

2018 में पाकिस्तान के चुनाव आयोग के मुताबिक, कुर्रम जिले की आबादी का लगभग 45% हिस्सा शिया समुदाय का है, जो कुल मिलाकर पाकिस्तान की आबादी में उनके 10-15% हिस्से से तीन गुना ज़्यादा है.

जमीन और संसाधनों को लेकर लड़ाई

ज़्यादातर शिया समुदाय ऊपरी कुर्रम तहसील में रहते हैं. निचले और मध्य कुर्रम में सुन्नियों का वर्चस्व है. अनुमान है कि तहसील की 83% आबादी शिया (तुरी और कुछ बंगाश) है.सांप्रदायिक तनाव अक्सर लगातार जनजातीय प्रतिद्वंद्विता और संसाधनों से होती है. यहां जमीन को लेकर विवाद बड़े स्तर पर देखने को मिलता है.

80 के दशक की घटनाएं

पिछले तीन दशकों में शिया विरोधी पाकिस्तानी तालिबान (TTP) और इस्लामिक स्टेट सहित कई आतंकवादी समूहों ने कुर्रम को अपना आधार बनाया है, जो अफगानिस्तान की सीमा पर आते-जाते रहते हैं और अपने लाभ के लिए सुदूर पहाड़ी इलाकों का उपयोग करते हैं.

1977 से 1988 तक पाकिस्तान के सैन्य शासक जनरल जिया-उल-हक की सुन्नी इस्लामीकरण की राजनीतिक परियोजना ने पूरे पाकिस्तान में सांप्रदायिक तनाव को जन्म दिया. कुर्रम में जिया ने शिया तुरी को कमजोर करने के लिए सुन्नी अफगान शरणार्थियों की कमाई का इस्तेमाल किया.

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