निकाह या जेल! अब पाकिस्तान में बाल विवाह को लेकर नया बवाल क्या? समझें पूरा मामला
पाकिस्तान ने 30 मई 2025 को "इस्लामाबाद कैपिटल टेरिटरी चाइल्ड मैरिज रेस्ट्रेंट बिल 2025" को कानून के रूप में लागू किया. इस कानून के तहत, 18 साल से कम उम्र की किसी भी लड़की की शादी अब गैरकानूनी मानी जाएगी. यदि कोई बालिग व्यक्ति किसी नाबालिग लड़की से शादी करता है, तो उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी. अब इसको लेकर पाकिस्तान में नया बवाल शुरु हो गया तो आइए जानते हैं क्या मजरा है?

Pakistan Child Marriage New Law: पाकिस्तान ने आखिरकार बाल विवाह पर कड़ा कानून पास कर दिया है, जो कि किसी धमाके से कम नहीं था. संसद के दोनों सदनों ने इस कानून को मंजूरी दी और राष्ट्रपति ने भी इसे स्वीकार कर दिया. इस नए कानून के तहत 18 साल से कम उम्र की किसी भी लड़की की शादी अब गैरकानूनी मानी जाएगी. यानी जो भी इस उम्र से कम लड़की से शादी करेगा, उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई होगी. अगर दोनों पक्ष नाबालिग होंगे, तो उनके माता-पिता को जिम्मेदार ठहराया जाएगा.
लेकिन इस कानून के लागू होते ही पाकिस्तान में भूचाल आ गया. पूरे देश में इस मुद्दे पर तीखा विवाद छिड़ गया है. खासकर धार्मिक कट्टरपंथी और इस्लामिक समूहों ने इसे अपने धार्मिक अधिकारों पर हमला बताया और शरिया कानून के खिलाफ करार दिया. उनका कहना है कि इस्लाम में शादी की कोई न्यूनतम आयु निर्धारित नहीं है, बल्कि शादी की योग्यता ‘यौवन’ यानी शारीरिक परिपक्वता पर निर्भर करती है.
यह याचिका लेकर मामला सीधे इस्लामाबाद की शरिया अदालत पहुंचा, जहां इस कानून को चुनौती दी गई. याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि कुरान और हदीस में कहीं भी न्यूनतम उम्र का जिक्र नहीं है, बल्कि शादी के लिए जब लड़का या लड़की शारीरिक रूप से परिपक्व हो जाते हैं, तभी वे शादी के योग्य होते हैं. उन्होंने इस कानून को नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन बताया क्योंकि यह लोगों को अपनी मर्जी से शादी करने का अधिकार नहीं देता.
काउंसिल ऑफ इस्लामिक आइडियोलॉजी का विरोध
पाकिस्तान की प्रमुख धार्मिक संस्था, काउंसिल ऑफ इस्लामिक आइडियोलॉजी ने इस कानून पर कड़ा विरोध जताया है. इस काउंसिल का काम ही देश में बनने वाले कानूनों को इस्लामिक नजरिए से परखना होता है. काउंसिल ने इस कानून को ‘शरिया कानून की अवहेलना’ करार दिया और कहा कि 18 साल से कम उम्र की शादी को ‘बलात्कार’ के बराबर मानना इस्लाम की teachings के खिलाफ है. उनके अनुसार, यह कानून धार्मिक स्वतंत्रता और परंपराओं का अपमान है.
सामाजिक और कानूनी लड़ाई का नया दौर
यह मामला पाकिस्तान में बाल विवाह को लेकर चल रही लंबी लड़ाई में एक नया मोड़ लेकर आया है. पाकिस्तान में बाल विवाह आज भी एक बड़ा सामाजिक समस्या है, खासकर ग्रामीण और पिछड़े इलाकों में, गरीब और कमजोर परिवारों में लड़कियों की कम उम्र में शादी करवा देना आम बात है, जिसे रोकना आसान नहीं.
नए कानून को समर्थक इसे बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए जरूरी कदम मान रहे हैं, जो नाबालिग लड़कियों को बचाने और उनकी शिक्षा, स्वास्थ्य और स्वतंत्रता को बढ़ावा देने में मदद करेगा. वहीं, विरोधी इसे धार्मिक और सांस्कृतिक हस्तक्षेप बता रहे हैं. उनका कहना है कि कानून देश के धार्मिक और सामाजिक ताने-बाने को बिगाड़ सकता है.
पाकिस्तान की राजनीति और धार्मिक राजनीति का खेल
पाकिस्तान में धर्म और राजनीति का गहरा नाता है. इसीलिए जैसे ही बाल विवाह पर यह कानून बना, कट्टरपंथी और धार्मिक पार्टियां सामने आ गईं. उन्होंने इसे “धार्मिक आज़ादी पर हमला” और “पश्चिमी संस्कृति का दबाव” बताया। कई मौलवियों ने इसे इस्लाम के खिलाफ करार दिया और सोशल मीडिया पर भी तेज़ विरोध-प्रदर्शन हुए.
इसके अलावा, कई छोटे-छोटे राजनीतिक दल और सामाजिक संगठन भी इस कानून के खिलाफ खड़े हो गए हैं, जो इसे अपने राजनीतिक हितों के लिए भुनाना चाहते हैं. वहीं दूसरी तरफ़, महिलाओं के अधिकारों के लिए काम करने वाले संगठन, मानवाधिकार एक्टिविस्ट और कुछ प्रगतिशील राजनीतिक पार्टियां इस कानून को लेकर पूरी तरह सपोर्ट कर रही हैं.
अदालत में क्या होगा?
अब इस पूरे मामले की गोरखधंधा अदालत में तय होगी. शरिया अदालत में इस कानून को चुनौती दी गई है, और सबकी नजरें अब कोर्ट के फैसले पर टिकी हैं. अगर कोर्ट धार्मिक पक्ष के साथ गया तो यह कानून कमजोर पड़ सकता है या उसे पूरी तरह से रद्द किया जा सकता है. वहीं अगर अदालत इस कानून को बरकरार रखती है तो यह पाकिस्तान में बाल विवाह के खिलाफ एक बड़ी जीत मानी जाएगी.