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प्यार हो तो ऐसा! 2014 में बिछड़े बाघ 200 किलोमीटर के सफर के बाद फिर से मिले

बोरिस और स्वेतलाया, दोनों 2014 में उन छह बाघ में से थे जिन्हें एक स्पेशल कंजर्वेशन प्रोग्राम के तहत जंगल में फिर से भेजा गया था. बोरिस ने स्वेतलाया से मिलने के लिए 200 किलोमीटर की लंबी यात्रा तय की. बोरिस और स्वेतलाया की यह कहानी केवल दोस्ती तक सीमित नहीं रही, बल्कि यह साइबेरियाई बाघों के संरक्षण के प्रयासों में एक जरूरी कदम साबित हुई.

प्यार हो तो ऐसा! 2014 में बिछड़े बाघ 200 किलोमीटर के सफर के बाद फिर से मिले
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( Image Source:  Social Media- X )

कहा जाता है कि जब दिल में इच्छा हो, तो रास्ते अपने आप बन जाते हैं. बोरिस, जो एक साइबेरियाई बाघ है और जिसे अमूर बाघ के नाम से भी जाना जाता है, ने इसे साबित कर दिखाया. उसने अपने बचपन के दोस्त/प्यार स्वेतलाया से फिर से मिलने के लिए रूस के घने जंगलों में यात्रा की. बोरिस और स्वेतलाया, दोनों 2014 में उन छह बिन मां के बाघ में से थे जिन्हें एक स्पेशल कंजर्वेशन प्रोग्राम के तहत जंगल में फिर से भेजा गया था.

समय के साथ यह बात सामने आई कि बोरिस, जो पहले जंगल में छोड़ दिया गया था, कुछ अजीब हरकते कर रहा था. वह अक्सर जंगल में सीधी लाइन में घूमता हुआ दिखाई देता था, जो नार्मल नहीं था. लगभग तीन साल बाद, बोरिस ने स्वेतलाया से मिलने के लिए 200 किलोमीटर की लंबी यात्रा तय की. इस पुनर्मिलन ने इस बात को साबित कर दिया कि बाघ अपने पुराने साथियों को पहचान लेते हैं.

बाघों के लिए एक नई उम्मीद

बोरिस और स्वेतलाया की यह कहानी केवल प्यार तक सीमित नहीं रही, बल्कि यह साइबेरियाई बाघों के संरक्षण के प्रयासों में एक जरूरी कदम साबित हआ. उनके पुनर्मिलन के छह महीने बाद, स्वेतलाया ने अपने पहले बच्चे को जन्म दिया, जिससे साइबेरियाई बाघों की प्रजाति के संरक्षण में एक और बड़ी सफलता प्राप्त हुई. यह घटना इस प्रजाति की दिशा में एक सकारात्मक कदम थी.

डब्ल्यूसीएस की सफलता की कहानी

डब्ल्यूसीएस (वाइल्डलाइफ कंजर्वेशन सोसाइटी) ने इस दिल छूने वाली सफलता की कहानी को एक स्टडी के रूप में पब्लिश किया. इसमें रूस के एक ऐसे क्षेत्र में बाघों की संख्या बढ़ाने के कोशिश की तारीफ की गई, जहां पिछले 50 वर्षों से इन बाघों को देखा नहीं गया था.

डॉ. डेल मिकेल का कहना है कि, आंकड़ों से पता चला है कि कैद में पाले गए और छोड़े गए बिन मां के बाघ शिकार करने में जंगली बाघों की तरह ही अच्छे थे, वे उसी प्रकार के जंगली शिकार को निशाना बनाते थे और बहुत कम ही पशुओं को मारते थे.

इस सफलता से यह स्पष्ट होता है कि अगर बाघों को मनुष्यों से उचित दूरी दी जाए और शिकार करने का सही अवसर दिया जाए, तो उन्हें जंगल में पूरी तरह से छोड़ना संभव है और वे प्राकृतिक जीवन में वापस लौट सकते हैं.

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