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दारफुर में कहर: लैंडस्‍लाइड ने दबा दिया पूरा गांव, 1000 से ज्यादा लोग हुए दफन, बस एक बचा ज़िंदा

सूडान के पश्चिमी दारफुर क्षेत्र में भीषण भूस्खलन ने तरासिन गांव को पूरी तरह दफना दिया. इस त्रासदी में हज़ार से अधिक लोगों की मौत हो गई और गांव से केवल एक ही शख्स जीवित निकला. दारफुर के गवर्नर मिनावी ने इसे 'सीमा से परे मानवीय त्रासदी' बताते हुए अंतरराष्ट्रीय मदद की अपील की है. लेकिन चल रहे गृहयुद्ध के कारण यह इलाका राहत एजेंसियों की पहुंच से लगभग बाहर है, जिससे पीड़ितों तक सहायता पहुंचाना बेहद कठिन हो गया है.

दारफुर में कहर: लैंडस्‍लाइड ने दबा दिया पूरा गांव, 1000 से ज्यादा लोग हुए दफन, बस एक बचा ज़िंदा
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( Image Source:  X/@RomanDa45878579 )
प्रवीण सिंह
Edited By: प्रवीण सिंह

Published on: 2 Sept 2025 10:25 AM

सूडान के पश्चिमी दारफुर क्षेत्र से दिल को दहला देने वाली खबर आई है. मार्रा पर्वत की तलहटी में बसे तरासिन गांव पर अचानक आए भीषण भूस्खलन ने पूरा गांव मिट्टी में दफना दिया. जानकारी के अनुसार, इस त्रासदी में हज़ार से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है, और पूरे गांव से सिर्फ एक ही व्यक्ति जीवित बच पाया है.

सूडान लिबरेशन मूवमेंट/आर्मी (SLM/A) ने बताया कि रविवार देर रात हुए इस भीषण भूस्खलन ने पूरे तरासिन गांव को मिट्टी और पत्थरों के ढेर में बदल दिया. गांव की आबादी का अनुमान एक हज़ार से ज्यादा था, लेकिन हादसे के बाद पूरा इलाका खामोश हो गया. जीवित बचा केवल एक शख्स, जो अब इस त्रासदी का अकेला गवाह है.

"सीमा से परे मानवीय त्रासदी"

दारफुर के आर्मी-समर्थित गवर्नर मिन्नी मिनावी ने इस आपदा को “सीमा से परे मानवीय त्रासदी” करार दिया. उन्होंने बयान जारी कर कहा, “हम अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार और राहत संगठनों से अपील करते हैं कि तत्काल हस्तक्षेप करें और इस भयावह स्थिति में मदद पहुंचाएं. यह त्रासदी इतनी बड़ी है कि हमारे लोग अकेले इसका बोझ नहीं उठा सकते.”

युद्ध और तबाही से घिरा सूडान

सूडान पहले से ही 2023 से जारी खूनी गृहयुद्ध की मार झेल रहा है. सेना और अर्धसैनिक बल रैपिड सपोर्ट फोर्सेज़ (RSF) के बीच संघर्ष ने देश को टुकड़ों में बांट दिया है. इसी वजह से दारफुर का इलाका अंतरराष्ट्रीय सहायता एजेंसियों के लिए लगभग पहुंच से बाहर है. अब भूस्खलन की इस त्रासदी ने वहां की स्थिति को और भी विकट बना दिया है.

दर्द और खामोशी का मंजर

तरासिन गांव के बारे में बताया जा रहा है कि यहां परिवार पीढ़ियों से रह रहे थे. खेती-बाड़ी और पशुपालन उनकी रोज़ी-रोटी थी. लेकिन अब न घर बचे, न लोग. जहां कभी बच्चों की आवाज़ें और चूल्हों का धुआं उठता था, वहां अब केवल मलबा और खामोशी है.

एक अकेला गवाह

गांव से जिंदा निकला एकमात्र शख्स अब इस पूरी त्रासदी का जीवित प्रमाण है. उसके बारे में स्थानीय लोग कह रहे हैं कि उसने अपनी आंखों के सामने परिवार और पड़ोसियों को मिट्टी में दबते देखा. उसकी व्यथा सुनकर लोग सिहर उठे हैं.

वैश्विक मदद की पुकार

दारफुर की इस त्रासदी ने पूरी दुनिया का ध्यान खींचा है. लेकिन सवाल यह है कि क्या युद्ध से तबाह इस देश में मदद पहुंच भी पाएगी? अगर अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं और पड़ोसी देश त्वरित कदम नहीं उठाते, तो यह आपदा केवल सूडान ही नहीं, बल्कि पूरे अफ्रीका की मानवता के लिए एक गहरी चोट बन सकती है.

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