'हमारी लड़ाई मौत की सजा तक जारी रहेगी', CJI बोले- जज से भी हो सकती है गलती; उन्नाव रेप केस में SC ने क्या कहा?
उन्नाव रेप केस में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी है, जिसमें दोषी पूर्व बीजेपी विधायक कुलदीप सिंह सेंगर की सजा निलंबित कर उसे जमानत दी गई थी. अदालत ने सेंगर को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. पीड़िता ने फैसले पर संतोष जताते हुए कहा, “मुझे सुप्रीम कोर्ट पर भरोसा था… हमारी लड़ाई तब तक चलेगी जब तक उसे मौत की सजा नहीं मिल जाती.”
उन्नाव रेप मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा कदम उठाते हुए दिल्ली हाईकोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी है, जिसमें सजायाफ्ता पूर्व बीजेपी विधायक कुलदीप सिंह सेंगर की उम्रकैद की सजा निलंबित कर दी गई थी. शीर्ष अदालत के हस्तक्षेप के बाद पीड़िता और उसके परिवार ने राहत की सांस ली है. पीड़िता ने कहा कि उसे सुप्रीम कोर्ट पर पूरा भरोसा था और वही भरोसा अब कायम हुआ है.
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पीड़िता ने साफ शब्दों में कहा कि यह लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है. उसका संघर्ष तब तक जारी रहेगा, जब तक उसे और उसके पिता को पूरा न्याय नहीं मिल जाता. इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई की याचिका पर संज्ञान लेते हुए सेंगर को नोटिस जारी किया है और चार हफ्ते में जवाब मांगा है. पीड़िता ने समाचार एजेंसी IANS से कहा कि मुझे सुप्रीम कोर्ट पर भरोसा था कि न्याय मिलेगा… मेरा संघर्ष जारी है और तब तक चलता रहेगा, जब तक उसे मौत की सजा नहीं मिल जाती. उसने आगे कहा कि तभी मुझे न्याय मिलेगा… तभी मेरे पिता को न्याय मिलेगा.”
मां ने जताया आभार, सुरक्षा की मांग
पीड़िता की मां ने भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया. उन्होंने कहा कि 'मैं सुप्रीम कोर्ट का धन्यवाद करना चाहती हूं. अदालत ने हमारे साथ न्याय किया है. मेरे परिवार को सुरक्षा चाहिए, हमारे वकीलों को भी सुरक्षा चाहिए. मैं सरकार से अपील करती हूं कि हम सबको सुरक्षित रखा जाए. उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले पर नाराजगी जताते हुए कहा कि 'हाईकोर्ट के दो जजों ने हमारे साथ अन्याय किया. उन्होंने हाईकोर्ट पर से मेरा भरोसा तोड़ दिया.”
हाईकोर्ट के आदेश पर सवाल
पीड़िता ने उस जज पर भी सवाल उठाए, जिनकी पीठ ने सजा निलंबित की थी. उसने कहा कि “मुझे नहीं पता उस जज के दिमाग में क्या चल रहा था… वही जानते होंगे कि सेंगर के प्रति उनके मन में कितनी ‘ममता’ थी, जो उस पर रहम दिखाया गया.” दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले के बाद जांच एजेंसी सीबीआई की भूमिका भी सवालों के घेरे में आ गई. आलोचकों ने पूछा कि जिस तरह प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने अरविंद केजरीवाल के मामले में सख्ती दिखाई, वैसी तत्परता सीबीआई इस केस में क्यों नहीं दिखा पाई.
सुप्रीम कोर्ट का सख्त रुख
सुप्रीम कोर्ट की वेकेशन बेंच ने साफ किया कि पीड़िता के प्रति अदालत की जिम्मेदारी है. कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि यहां “व्यक्तिगत स्वतंत्रता से समझौते” का कोई सवाल नहीं उठता. फिलहाल कुलदीप सेंगर जेल में ही रहेगा, क्योंकि वह पीड़िता के पिता की हिरासत में मौत के मामले में भी सजा काट रहा है.
दिल्ली में हंगामा और डरावने दृश्य
हाईकोर्ट से रिहाई के आदेश के बाद दिल्ली में हालात तनावपूर्ण हो गए थे. पीड़िता और उसकी मां जब विरोध दर्ज कराने निकलीं तो केंद्रीय सुरक्षा बलों के साथ झड़पें हुईं. वायरल वीडियो में पीड़िता की मां को चलती बस से कूदते देखा गया, जबकि बस उनकी बेटी को लेकर आगे बढ़ गई. मां ने रोते हुए कहा कि हमें न्याय नहीं मिला. मेरी बेटी को बंधक बना लिया गया है. ऐसा लगता है कि वे हमें मार देना चाहते हैं.”
क्या था हाईकोर्ट का विवादित तर्क
दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि विधायक होना अपने आप में ‘लोक सेवक’ होने का आधार नहीं है. कोर्ट ने यह भी कहा कि इस मामले में POCSO कानून लागू नहीं होता और सेंगर अब तक न्यूनतम सजा से ज्यादा समय जेल में बिता चुका है. इसी आधार पर उसे सशर्त जमानत दी गई थी, जिसे अब सुप्रीम कोर्ट ने रोक दिया है.
सोमवार को चीफ जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस जेके माहेश्वरी और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने करीब 40 मिनट तक दोनों पक्षों की दलीलें सुनीं. सुनवाई के दौरान CJI सूर्यकांत ने साफ कहा कि इस केस में एक गंभीर कानूनी सवाल है, जिस पर गहराई से विचार किया जाना जरूरी है. उन्होंने टिप्पणी करते हुए कहा कि जिन जजों ने हाईकोर्ट में सजा निलंबन का आदेश दिया, वे देश के बेहतरीन जजों में गिने जाते हैं, लेकिन “गलती किसी से भी हो सकती है.”
CJI ने एक अहम सवाल उठाते हुए कहा कि यह कैसे संभव है कि POCSO कानून के तहत एक पुलिस कॉन्स्टेबल को लोक सेवक माना जाए, लेकिन किसी निर्वाचित जनप्रतिनिधि- जैसे विधायक या सांसद को उस दायरे से बाहर कर दिया जाए. अदालत ने कहा कि ऐसे मुद्दों पर स्पष्टता जरूरी है. कोर्ट ने यह भी माना कि सामान्य परिस्थितियों में किसी रिहा किए गए दोषी की सुनवाई के बिना उसके आदेश पर रोक नहीं लगाई जाती, लेकिन इस मामले में हालात अलग हैं, क्योंकि आरोपी पहले से ही दूसरे केस में दोषी है. इसी आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने सेंगर की जमानत पर रोक लगाई.





