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'पत्नी पी सकती है शराब', तलाक के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सुनाया ये फैसला

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने तलाक के मामले में कहा कि पत्नी का शराब पीना क्रूरता नहीं है. साथ ही, पत्नी द्वारा परित्याग की दलील के संबंध में हाईकोर्ट ने कहा कि पत्नी ने पति की पूरी तरह से और जानबूझकर उपेक्षा की है, जिससे हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 13 के तहत परित्याग माना जाता है.

पत्नी पी सकती है शराब, तलाक के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सुनाया ये फैसला
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( Image Source:  freepik )
हेमा पंत
Edited By: हेमा पंत

Updated on: 16 Jan 2025 9:06 AM IST

इलाहाबाद हाई कोर्ट में एक पति ने तलाक के लिए अर्जी डाली, जहां इस मामले में पति द्वारा दी गई दलीलों में से एक यह थी कि उसकी पत्नी उसे बताए बिना अपने दोस्तों के साथ बाहर जाकर शराब पीती थी. इस पर कोर्ट के जस्टिस विवेक चौधरी और ओम प्रकाश शुक्ला की डिविजन बेंच ने एक व्यक्ति की अपनी पत्नी से तलाक की मांग वाली अपील पर फैसला सुनाया.

कोर्ट ने कहा कि पत्नी द्वारा पति को छोड़ देने के आधार पर तलाक का आदेश देते हुए कहा है कि केवल इसलिए कि पत्नी शराब पीती है. इसे क्रूरता नहीं माना जाएगा, जब तक कि उसके साथ असभ्य व्यवहार न किया जाए. हालांकि, अभी भी मिडल क्लास में शराब पीना मना है. साथ ही, यह क्लचर का भी हिस्सा नहीं है. फिर भी रिकॉर्ड में ऐसे कोई सबूत या दलील नहीं है कि शराब पीने से पति/अपीलकर्ता के साथ क्रूरता कैसे हुई है.

क्या है मामला?

साल 2015 में कपल की शादी हुई. जहां धीरे-धीरे पत्नी के बिहेवियर में बदलाव आया. इतना ही नहीं, पति ने आरोप लगाया है कि उसकी पत्नी ने माता-पिता को छोड़कर कोलकाता जाने के लिए मजबूर करने की कोशिश की, जिस पर वह सहमत नहीं हुआ. आखिरकार, पत्नी अपने नाबालिग बेटे के साथ कोलकाता चली गई और पति के कहने के बावजूद वापस लौटने से इनकार कर दिया.

पति ने खटखटाया हाई कोर्ट का दरवाजा

जहां पति ने लखनऊ में तलाक की याचिका दायर की थी. चूंकि पत्नी पेश नहीं हुई, इसलिए न्यायालय ने एकपक्षीय कार्यवाही की और इस आधार पर तलाक की याचिका को खारिज कर दिया कि पत्नी द्वारा क्रूरता साबित नहीं हुई. यह भी माना गया कि परित्याग साबित नहीं हुआ, क्योंकि ऐसा मामला नहीं था जहां पत्नी काम के लिए 2 साल से अधिक समय तक अलग रही हो.

शराब पीना क्रूरता नहीं

इसके बाद अपीलकर्ता ने फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती देने के लिए हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. चूंकि न्यायालय द्वारा कई बार नोटिस दिए जाने के बावजूद पत्नी पेश नहीं हुई, इसलिए न्यायालय ने एकपक्षीय कार्यवाही की. यह माना गया कि शराब पीने के आरोप मात्र क्रूरता की बात नहीं हो सकता है, जब तक कि उसके बाद कुछ खास व्यवहार न हो. साथ ही, इस मामले में यह भी पाया गया कि गर्भावस्था के दौरान शराब पीने के आरोप साबित नहीं हुए, क्योंकि बच्चे में कमजोरी या अन्य चिकित्सा संबंधी कोई लक्षण नहीं दिखा.

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