इलाहाबाद HC ने 500 में से 499 नंबर लाने का दावा करने वाली छात्रा पर लगाया 20 हजार का जुर्माना, कहा- पढ़ाई पर ध्यान दो...
Allahabad High Court: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में एक एलएलबी छात्रा की याचिका खारिज कर दी. छात्रा का दावा था कि उसके फर्स्ट सेमेस्टर में उसे 500 में से 499 नंबर मिलने चाहिए थे, जबकि विश्वविद्यालय ने करीब 181 नंबर दिए. अदालत ने कहा कि शिक्षा से जुड़े मामलों में, जहां विशेषज्ञों की रिपोर्ट या आंसर-की की जांच हो चुकी हो हाईकोर्ट आम तौर पर दखल नहीं देता.
Allahabad High Court: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक लॉ की स्टूडेंट पर 20 हजार रुपये का जुर्माना लगाया है. दरअसल छात्रा ने कोर्ट में एक याचिका दायर की थी, जिसमें उसने दावा किया था कि उसके फर्स्ट सेमेस्टर में उसे 500 में से 499 नंबर मिलने चाहिए थे, जबकि यूनिवर्सिटी ने करीब 181 नंबर दिए.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, हाई कोर्ट ने इसे बेबुनियाद चुनौती मानते हुए उस पर 20,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया. बता दें कि यह मामला कानपुर की छत्रपति शाहू जी महाराज यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाली संतोष कुमारी का है, जो कि पांच साल एलएलबी कोर्स की छात्रा हैं.
क्या है मामला?
संतोष कुमारी का कहना था कि उन्हें गलत तरीके से कम अंक दिए गए. इस पर यूनिवर्सिटी ने कानून विभाग के शिक्षकों की एक समिति से उनकी ओएमआर कॉपी दोबारा जांच कराई, जिसमें पहले दिए गए कम अंक ही सही पाए गए. कोर्ट ने इसी 181 नंबर को स्वीकार किया.
कोर्ट ने छात्रा को सलाह दी कि वे बार-बार अदालत आने के बजाय पढ़ाई पर ध्यान दें और ईमानदारी से तैयारी करके बेहतर अंक लाएं. अदालत ने यह भी कहा कि शिक्षा से जुड़े मामलों में, जहां विशेषज्ञों की रिपोर्ट या आंसर-की की जांच हो चुकी हो हाईकोर्ट आम तौर पर दखल नहीं देता.
छात्रा की रद्द की याचिका
सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा, छात्रा ने जो हलफनामा और सामग्री दी, उसमें न तो भरोसेमंद स्रोत थे और न ही यह स्पष्ट था कि कौन-से सवाल ओएमआर में सही भरे गए थे पर विश्वविद्यालय ने नहीं जोड़े. पहले ही कोर्ट ने यूनिवर्सिटी को निर्देश दिया था कि विभागाध्यक्ष और दो प्रोफेसरों की समिति बनाकर कॉपी की समीक्षा करे. समीक्षा के बाद भी कुल अंक करीब 181 ही सही निकले, 499 नहीं.
10 बार की शिकायत
अदालत की जांच में यह भी सामने आया कि छात्रा ने 2021–2022 के बीच कम से कम 10 मामले (रिट, रिव्यू, स्पेशल अपील आदि) दायर किए हैं. कोर्ट ने कहा कि केवल स्वयं बहस करने का अधिकार होने से कोई भी आधारहीन दस्तावेज या दलील स्वीकार नहीं की जा सकती. फिर याचिका खारिज कर दी गई और छात्रा को निर्देश दिया गया कि 15 दिनों के अंदर 20,000 रुपये हाईकोर्ट लीगल सर्विसेज कमेटी के खाते में जमा करें, जिससे बार-बार होने वाली मुकदमेबाजी पर रोक लगे.





