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प्रमोशन की अंधी चाहत और 7 बेकसूरों का फर्जी एनकाउंटर... 32 साल बाद मिले इंसाफ पर क्‍या कहें, पूर्व SSP संग 5 का बुढ़ापा कटेगा जेल में

पंजाब के तरनतारन में 1993 में हुए 7 निर्दोष लोगों के फर्जी एनकाउंटर मामले में 32 साल बाद इंसाफ मिला है. सीबीआई की विशेष अदालत ने इस जघन्य अपराध में शामिल पंजाब पुलिस के पूर्व SSP सहित 5 अधिकारियों को उम्रकैद की सजा सुनाई है. कोर्ट ने इसे "नैतिक रूप से दिवालिया और अमानवीय" अपराध बताया. पीड़ितों में 3 SPO भी शामिल थे.

प्रमोशन की अंधी चाहत और 7 बेकसूरों का फर्जी एनकाउंटर... 32 साल बाद मिले इंसाफ पर क्‍या कहें, पूर्व SSP संग 5 का बुढ़ापा कटेगा जेल में
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( Image Source:  Sora AI )
संजीव चौहान
By: संजीव चौहान

Updated on: 5 Aug 2025 6:17 PM IST

पुलिस के सिपाही से लेकर अफसरान तक जवानी के जोश में ‘आउट ऑफ टर्न’ प्रमोशन की अंधी चाहत में, किसी भी हद तक जाकर गिर सकते हैं. अबसे 32 साल पहले यानी साल 1993 में भी पंजाब के 10 पुलिस वालों ने यही किया. समय से पहले पदोन्नति पाने के चक्कर में तीन स्पेशल पुलिस अधिकारियों सहित 7 का पहले अपहरण कर लिया. उसके बाद उन्हें एक दो दिन के अंतराल पर पुलिस कस्टडी से भागा हुआ बताकर फर्जी एनकाउंटर में गोलियों से भूनकर कत्ल कर डाला. हत्यारे पुलिस वालों को उम्मीद थी कि उन दिनों पंजाब में आतंकवाद के चरम पर होने के चलते, यह हत्यारे वर्दी पर बिल्ले तो बढ़वा ही लेंगे, उनके इस जघन्य सामूहिक हत्याकांड पर उंगली भी नहीं उठेगी.

अब 32 साल बाद मगर जब वक्त पलटा तो 10 आरोपी पुलिस वालों में से जिंदा बचे, बाकी 5 हत्यारोपी अफसर-पंजाब पुलिसकर्मी बुढ़ापा जेल में काटेंगे. क्योंकि मोहाली स्थित सीबीआई की विशेष कोर्ट ने 10 में से 5 जिंदा बचे आरोपियों को उम्रकैद की सजा तो सुनाई ही है. साथ ही इस जघन्य अपराध को कोर्ट ने 'नैतिक रूप से दिवालिया व बेहद अमानवीय' करार देते हुए हर सजायाफ्ता मुजरिम के ऊपर साढ़े तीन लाख का अर्थदंड भी लगाया है. सजायाफ्ता एक मुजरिम की तो इस वक्त उम्र ही 83 साल है. इसका नाम सूबा सिंह है. फर्जी एनकाउंटर के वक्त सूबा सिंह इंस्पेक्टर ही था.

अपने ही लोगों का किया गया कत्‍ल

इन तमाम तथ्यों की पुष्टि दिल्ली स्थित सीबीआई मुख्यालय ने भी स्टेट मिरर हिंदी के एडिटर क्राइम से की है. सीबीआई को मुताबिक फॉरेंसिक जांच में यह भी सामने आया कि, यह मामला न केवल 7 बेकसूरों के अपरहरण के बाद फर्जी एनकाउंटर का था. अपितु अपहरण करने के बाद निर्दोषों को कई दिन तक पुलिस ने गैर-कानूनी हिरासत में बुरी तरह प्रताड़ित भी किया था. इसकी पुष्टि पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में भी हुई. इस जघन्य सामूहिक हत्याकांड में अपहरण के बाद पुलिस द्वारा कत्ल कर डाले गए 7 में से 3 बेकसूर पंजाब पुलिस के विशेष पुलिस अधिकारी भी थे.

आतंकवाद की आड़ में छुपाना चाहते थे गुनाह

आरोपी पुलिस वालों को अंदाजा था कि चूंकि उन दिनों पंजाब में आतंकवाद चरम पर था. तो उस आतंकवाद के शोर में इनके द्वारा मार डाले गए 7 निर्दोषों के कत्ल का गुनाह दब जाएगा. आरोपी पुलिस वालों ने न केवल साजिशन अपहरण के बाद 7 लोगों को गोलियों से भूनकर कत्ल कर डाला, अपितु उनकी लाशों को लावारिस बताकर अंतिम संस्कार भी खुद ही कर डाला. ताकि किसी भी तरह से परिवार वालों के पंजाब पुलिस के इन क्रूर पुलिस अफसरों कर्मचारियों के जघन्य सामूहिक हत्याकांड में शामिल होने का शक भी न हो.

तारीख पर तारीख...

सामूहिक हत्याकांड के करीब 6 साल बाद यानी 1999 में सर्वोच्च न्यायालय ने मुकदमे की जांच पंजाब पुलिस से छीनकर, केंद्रीय जांच ब्यूरो यानी सीबीआई के हवाले कर दी. सीबीआई ने पंजाब पुलिस द्वारा फर्जी एनकाउंटर में मार डाले गए लोगों में से एक शिंदर सिंह की पत्नी नरिंदर कौर के बयान पर कत्ल का मुकदमा दर्ज किया था. मतलब सन् 1993 से लेकर साल 1999 तक करीब छह साल पीड़ित परिवार न्याय की आस में एक देहरी से दूसरी देहरी तक भटकते रहे थे.

सीबीआई ने खोली हत्‍याकांड की परतें

सीबीआई के अनुसार, 27 जून साल 1993 को सरहाली पुलिस ने एक ठेकेदार के घर से विशेष पुलिस अधिकारी शिंदर सिंह, देसा सिंह, सुखदेव सिंह और दो अन्य बलकार सिंह व दलजीत सिंह को डकैती के फर्जी मामले में गिरफ्तार कर लिया था. उसके बाद 2 जुलाई 1993 को पुलिस ने दावा किया कि तीनों विशेष पुलिस अधिकारी सरहाली पुलिस की हिरासत से मय हथियारों के भाग गए हैं. इसके बाद 12 जुलाई 1993 को पंजाब में खबर फैली कि तत्कालीन डीएसपी पंजाब पुलिस भूपिंदरजीत सिंह, इंस्पेक्टर गुरदेव सिंह के नेतृत्व वाली टीम के साथ हुई मुठभेड़ में मंगल सिंह, देसा सिंह, बलकार सिंह और शिंदर सिंह मार डाले गए. इसके बाद 28 जुलाई 1993 को पंजाब पुलिस ने सुखदेव सिंह, सरबजीत सिंह और हरविंदर सिंह को भी एनकाउंटर में मार डाला.

तब पीड़‍ित परिवारों की पुलिसवालों ने एक नहीं सुनी

जिस तरह से इन सातों का पुलिस ने अपहरण किया और उसके बाद दो बार में कुछ ही दिन के अंतराल में उन्हें तरनतारन पुलिस ने मुठभेड़ में मार डाला. उससे पीड़ित परिवारों को फर्जी एनकाउंटर का शक हुआ. पुलिस परिवारों ने तत्कालीन पंजाब पुलिस महानिदेशक से लेकर सूबे के मुख्यमंत्री तक के दरवाजे पर दोषी पुलिसकर्मियों को सजा दिलवाने के लिए नाक रगड़ी. मगर पंजाब पुलिस महानिदेशक और पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री की लालफीताशाही के चलते पीड़ित परिवारों को झूठे आश्वासनों के सिवाए कुछ हासिल नहीं हुआ. तब पीड़ितों में से एक दो परिवारों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. सीबीआई के हवाले जब जांच गई तो फर्जी एनकाउंटर में 7 बेसकसूरों को पुलिस द्वारा ही कत्ल कर डाले जाने का आरोप सिद्ध हो गया.

सजा सुन सूख गए हत्‍यारों के गले

4 अगस्त 2025 को घटना के करीब 32 साल बाद मोहाली स्थित सीबीआई की विशेष अदालत ने जब फैसला सुनाया तो, हत्यारे पुलिस वालों के गले सूख गए. जबकि पीड़ित परिवारों के चेहरे खिल उठे. कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए उन 7 बेकसूरों की हत्या के लिए लिए पंजाब पुलिस के पूर्व एसएसपी भूपिंदरजीत सिंह, पूर् डीएसपी दविंदर सिंह, पूर्व इंस्पेक्टर सूबा सिंह, पूर्व सहायक उप निरीक्षक गुलबर्ग सिंह और पूर्व एएसआई रघुबीर सिंह को हत्या करने और षडयंत्र रचने का मुजरिम करार देते हुए उम्र कैद की सजा सुना दी. तरनतारन फर्जी एनकाउंटर (Tarn Taran Fake Encounter) के नाम से पंजाब में बदनाम इस सामूहिक फर्जी पुलिस एनकाउंटर के मामले में 10 पुलिस अफसर-कर्मचारी आरोपी थे. इनमें से 5 गुरदेव सिंह, ज्ञान चंद, जागीर सिंह, मोहिन्दर सिंह, अरूर सिंह की मुकदमे के दौरान मौत हो चुकी है. एतिहासिक फैसला सुनाने वाली सीबीआई की विशेष अदालत ने कहा कि, चूंकि मुकदमा चलते हुए काफी वक्त बीत गया है. ऐसे में मुजरिमों को सजा-ए-मौत सुना पाना संभव नहीं है.

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