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मुस्लिमों के पास नहीं है दफनाने की जगह, 300 साल पुराने कब्रिस्तान को लेकर विवाद; हाईकोर्ट ने दिया यह आदेश

मध्य प्रदेश के कटनी शहर में विवाद का केंद्र 300 साल पुराना कब्रिस्तान बना हुआ है, जिसे लेकर वर्षों से टकराव चल रहा है. अब इस मामले में एमपी हाईकोर्ट ने अपने आदेश को बरकरार रखा है. दरअसल स्लीमनाबाद में इस कब्रिस्तान के अलावा, मुस्लिमों को दफनाने के लिए दूसरी कोई जगह नहीं है.

मुस्लिमों के पास नहीं है दफनाने की जगह, 300 साल पुराने कब्रिस्तान को लेकर विवाद; हाईकोर्ट ने दिया यह आदेश
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( Image Source:  META AI )
हेमा पंत
Edited By: हेमा पंत

Updated on: 26 Dec 2025 1:05 PM IST

मध्य प्रदेश के कटनी जिले के स्लीमनाबाद में एक पुराना कब्रिस्तान एक बार फिर चर्चा के केंद्र में आ गया है. यह मामला सिर्फ जमीन के टुकड़े का नहीं, बल्कि पीढ़ियों से चली आ रही आस्था, परंपरा और सम्मानजनक दफन के अधिकार से जुड़ा है.

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हाल ही में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने इस विवाद पर अहम हस्तक्षेप करते हुए राज्य प्रशासन को यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश दिया है, जिससे स्थानीय मुस्लिम समुदाय को अस्थायी राहत मिली है.

300 साल पुराना है कब्रिस्तान

याचिकाकर्ता निसार बेग स्थानीय मस्जिद में कैशियर हैं. उन्होंने अदालत को बताया कि यह कब्रिस्तान पिछले 300 से 350 साल से मुस्लिम समुदाय के लोगों द्वारा इस्तेमाल किया जा रहा है. राजस्व रिकॉर्ड में भी इस जमीन के बारे में बताया गया है. मुख्य कब्रिस्तान भर जाने के बाद लगभग 150 साल पहले इसके पास लगी जमीन को भी दफन के लिए इस्तेमाल किया जाने लगा. इस हिस्से में अब तक लगभग हजार से अधिक कब्रें हैं.

बाउंड्री से शुरू हुआ तनाव

याचिका में बताया गया है कि पहले इस कब्रिस्तान की सीमा कांटेदार झाड़ियों से बनी हुई थी, जिसे बाद में लोहे के तारों से सुरक्षित किया गया. साल 2000 की पटवारी रिपोर्ट में भी इसका जिक्र मिलता है. आरोप है कि सितंबर 2025 में कुछ लोग इस सीमा से छेड़छाड़ करने आए. जब मुस्लिम समुदाय ने पुलिस में शिकायत की और मरम्मत करने की कोशिश की, तो उन्हें तहसीलदार द्वारा जारी स्टे ऑर्डर के बारे में पता चला, जिसमें उन्हें अपनी बात कहने का मौका नहीं दिया गया.

“एकमात्र कब्रिस्तान” की दलील

याचिका में यह भी बताया गया कि स्लीमनाबाद में मुस्लिम समुदाय के पास इस जमीन के अलावा कोई और कब्रिस्तान नहीं है. अलग-अलग राजस्व अधिकारियों के पास जाने के बावजूद समुदाय को कोई मदद नहीं मिल रही और वे खुद को असहाय महसूस कर रहे हैं. इसी वजह से अदालत से यह अनुरोध किया गया है कि विवादित खसरा नंबर को खास तौर पर मुस्लिम कब्रिस्तान घोषित किया जाए.

हाईकोर्ट का हस्तक्षेप और आगे की राह

मुख्य न्यायाधीश संजीव सचदेवा और न्यायमूर्ति विनय सराफ की खंडपीठ ने मामले में नोटिस जारी किया है और अगली सुनवाई जनवरी 2026 में तय की है. तब तक जमीन की स्थिति में किसी भी तरह का बदलाव नहीं किया जा सकेगा. यह आदेश मुस्लिम समुदाय के लिए एक उम्मीद की किरण बनकर आया है, जो अपने मृतकों को सम्मानपूर्वक दफनाने के अधिकार के लिए संघर्ष कर रहा है.

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