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कफ सिरप नहीं विष का घूंट! पेंट-इंडस्ट्री के केमिकल ने ले ली 16 से अधिक बच्चों की जान, US में बैन लेकिन भारत में क्यों नहीं?

मध्य प्रदेश और राजस्थान में दूषित कफ सिरप से बच्चों की मौत का मामला अब गंभीर रूप ले चुका है. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, बच्चों की किडनी फेल होने का मुख्य कारण सिरप में मौजूद जहरीला केमिकल था. इस घटना के बाद स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय (DGHS) ने बच्चों के लिए कफ सिरप के सुरक्षित उपयोग पर विशेष दिशा-निर्देश जारी किए हैं. विशेषज्ञों ने दो साल से कम उम्र के बच्चों को खांसी और जुकाम की दवाएं देने से परहेज करने की सलाह दी है. कई राज्यों में बच्चों की सुरक्षा और इलाज के लिए आपात कदम उठाए जा रहे हैं.

कफ सिरप नहीं विष का घूंट! पेंट-इंडस्ट्री के केमिकल ने ले ली 16 से अधिक बच्चों की जान, US में बैन लेकिन भारत में क्यों नहीं?
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( Image Source:  Social Media )
सागर द्विवेदी
By: सागर द्विवेदी

Updated on: 6 Oct 2025 11:43 AM IST

मध्य प्रदेश और राजस्थान के कफ सिरफ में जहर की बात धीरे-धीरे उफान मार रहा है और देश के राज्यों के कई राज्यों में फैसला जा रहा है. जैसा ही कि मालूम हो कि कफ सिरप पीने से बच्चों की मौत की खबर ने पूरे देश को हिला दिया है. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इन बच्चों की किडनी फेल होने का मुख्य कारण दूषित सिरप में मौजूद जहरीला केमिकल थे. इस मामले के बाद सरकार सख्त हो गई है और स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय (DGHS) ने बच्चों के लिए कफ सिरप के सुरक्षित उपयोग पर सलाह जारी की है.

स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने भी दो साल से कम उम्र के बच्चों को खांसी और जुकाम की दवाएं देने से परहेज करने की सिफारिश की है. इसके साथ ही बच्चों के इलाज और सुरक्षा के लिए कई राज्यों में आपात कदम उठाए जा रहे हैं.

दूषित कफ सिरप पर प्रतिबंध, तमिलनाडु से जांच की मांग

मध्य प्रदेश सरकार ने दूषित कफ सिरप की बिक्री तुरंत रोक दी है. यह सिरप कांचीपुरम की एक फैक्ट्री में तैयार किया गया था. घटना के बाद राज्य सरकार ने तमिलनाडु सरकार से मामले की गहन जांच करने का अनुरोध किया है. औषधि नियंत्रक डीके मौर्य ने बताया कि इस सिरप में डायथिलीन ग्लाइकॉल (DEG) की मात्रा 48% पाई गई, जबकि इसकी स्वीकार्य सीमा केवल 0.1% है. यह मात्रा बच्चों के लिए बेहद खतरनाक है.

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की चेतावनी

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया है कि दो साल से कम उम्र के बच्चों को खांसी और जुकाम की दवाएं न दी जाएं. पांच साल से कम उम्र के बच्चों के लिए भी ये दवाएं आम तौर पर सुरक्षित नहीं मानी जातीं. मंत्रालय ने कहा कि 5 साल से अधिक उम्र के बच्चों के लिए इनका इस्तेमाल केवल सावधानीपूर्वक, चिकित्सकीय मूल्यांकन और निगरानी के साथ किया जाए.

DEG और EG- जानलेवा रसायन

डायथिलीन ग्लाइकॉल (DEG) और एथिलीन ग्लाइकॉल (EG) औद्योगिक रसायन हैं, जिनका उपयोग सामान्यत: ब्रेक द्रव, एंटीफ्रीज, पेंट, प्लास्टिक और अन्य घरेलू सामान बनाने में किया जाता है. ये रंगहीन और सस्ते तरल पदार्थ हैं, लेकिन इंसानों के लिए खतरनाक माने जाते हैं. अक्सर इन्हें प्रोपिलीन ग्लाइकॉल के स्थान पर दवाओं में अवैध रूप से मिलाया जाता है. प्रोपिलीन ग्लाइकॉल एक सुरक्षित विलायक है जो दवाओं को तरल रूप में घोलने में मदद करता है. जबकि DEG और EG का सेवन बच्चों में उल्टी, बेहोशी, दौरे, हृदय संबंधी समस्याएं और किडनी फेलियर जैसी गंभीर स्थितियां पैदा कर सकता है.

बच्चों के लिए DEG कितना खतरनाक

अमेरिकी CDC के अनुसार, DEG और EG बेहद जहरीले हैं. इनका सेवन केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करता है. इसके लक्षणों में उल्टी, मितली, बेहोशी, श्वास में कठिनाई, यूरिन की कमी और गंभीर मामलों में कोमा शामिल हैं. अगर समय पर इलाज न मिले तो मल्टीपल ऑर्गन फेलियर तक हो सकता है. कई दवा कंपनियां ग्लिसरीन या प्रोपिलीन ग्लाइकॉल की जगह सस्ता DEG और EG इस्तेमाल करती हैं, जिससे लागत कम होती है लेकिन बच्चों के लिए यह जानलेवा साबित होता है.

सरकार की कार्रवाई और भविष्य की चेतावनी

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने सभी दवा निर्माताओं को निर्देश दिया है कि वे संशोधित अनुसूची एम मानदंडों के अनुसार दवाओं का निर्माण करें. अनुपालन न करने वाले यूनिटों के लाइसेंस रद्द कर दिए जाएंगे. इसके साथ ही तमिलनाडु औषधि नियंत्रण विभाग की रिपोर्ट के आधार पर उत्तर प्रदेश सरकार ने कोल्ड्रिफ कफ सिरप पर प्रतिबंध लगा दिया है. विशेषज्ञों का कहना है कि भविष्य में इस तरह के हादसों को रोकने के लिए दवा निर्माण और परीक्षण में और अधिक पारदर्शिता और निगरानी जरूरी है.

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