भोपाल में बना 'टेंपल रन' जैसा ओवर ब्रिज चर्चा में, सोशल मीडिया यूजर्स बोले - ट्रिपल इंजन सरकार का विकास
भोपाल के ऐशबाग में बना 18 करोड़ रुपये का ओवरब्रिज अब चर्चा में है, लेकिन अच्छे कारणों से नहीं. 90 डिग्री के खतरनाक मोड़ वाले इस ब्रिज को लेकर सोशल मीडिया पर भारी आलोचना हो रही है. लोग इसे 'मौत का पुल' बता रहे हैं. सरकार और इंजीनियरिंग फैसलों पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं.

मध्यप्रदेश की सरकार ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि “विकास” सिर्फ जुमलों में होता है, ज़मीनी हकीकत में नहीं. जब जनता ओवरब्रिज मांगती है, तो सरकार उन्हें ओवर-स्मार्ट इंजीनियरिंग थमा देती है. भोपाल में ऐशबाग स्टेडियम के पास बना नया रेलवे ओवरब्रिज विकास की नहीं, बल्कि विफल प्रशासनिक सोच की बेजोड़ मिसाल बन गया है. और इसके तीखे 90 डिग्री मोड़ ने इस "इंजीनियरिंग चमत्कार" को सीधा सोशल मीडिया का जोकर बना डाला है.
18 करोड़ की लागत से तैयार इस पुल का उद्देश्य था लोगों को राहत देना. लेकिन जैसे ही जनता ने 90 डिग्री के मोड़ पर नजर डाली, आंखें फटी रह गईं. 'मौत का कोण' कहे जा रहे इस मोड़ ने साबित कर दिया कि सरकारी योजनाओं में अब समझदारी नहीं, सिर्फ खानापूर्ति बची है.
गाड़ी नहीं, सिर्फ सर्कस चल सकता है
सरकार ने दावा किया था कि ऐशबाग ओवरब्रिज बनने से रोज़ाना करीब 3 लाख लोगों को राहत मिलेगी. लेकिन जब पुल सामने आया, तो लोग बोले- “ये राहत नहीं, रेस है.” सोशल मीडिया पर लोग कह रहे हैं, “इस पर गाड़ी नहीं, सिर्फ सर्कस चल सकता है.” पुल के एक छोर पर बना 90 डिग्री का टर्न सीधे सड़क से फ्लाइट पकड़ने जैसा है. गाड़ी मोड़ो या जान बचाओ, ये तय करना मुश्किल हो गया है.
क्या कह रहे यूजर?
सौरभ नाम के यूजर ने कहा कि, "इसे चेक करके पास करने वाले अधिकारी क्या सिर्फ चाय-समोसा खा रहे थे." वहीं, अभिषेक नामक यूजर ने लिखा, इस अद्भुत वास्तुकला के वास्तुकार कौन हैं? ये तकनीक भारत से लीक नहीं होनी चाहिए. अमरीका वाले आइडिया चुरा लेते हैं." पूजा नाम की यूजर ने लिखा कि इसे टेम्पल रन जैसा ब्रिज बना दिया है.
स्नेक गेम देखकर किया था डिजाइन
इस ब्रिज को बनाने में सरकार को 10 साल लगे. इतने सालों में अमेरिका चांद पर इंसान भेज चुका है, लेकिन भोपाल में एक सीधा ब्रिज नहीं बन पाया. सोशल मीडिया पर लोगों ने तंज कसते हुए कहा, “ब्रिज कम, स्टंट एरीना ज्यादा लगता है. लगता है ठेकेदार ने AutoCAD नहीं, Snake गेम से डिजाइन लिया है.” क्या इसे विकास कहेंगे? जनता पूछ रही है कि क्या पीडब्ल्यूडी ने ब्रिज बनाने से पहले बच्चों की स्केचबुक में नक्शा देखा था?
मंत्री जी का जवाब सुनकर पकड़ लेंगे माथा
लोक निर्माण मंत्री राकेश सिंह का बयान सुनकर लोग दंग रह गए. मंत्री जी ने कहा कि "अगर कोई शिकायत है तो जांच होगी." यानी करोड़ों खर्च करने के बाद जनता को ‘ट्रायल यूजर’ बनाया गया? क्या यही है गुड गवर्नेंस? वहीं, सरकारी बचाव में पेश हुए अभियंता साहब ने कहा, “मेट्रो स्टेशन की वजह से स्पेस नहीं था.” ब्रिज के 90 डिग्री मोड़ पर सोशल मीडिया ने सरकार को घेर लिया. एक्स (ट्विटर) पर एक यूजर ने लिखा, “जब इंजीनियर को डिग्री दान में मिले, प्लानर सरकारी रिश्वत से बने और मंत्री उद्घाटन के बाद आंख खोलें, तब ऐसे ब्रिज बनते हैं.” ये सवाल अब केवल मज़ाक का नहीं, जनता की सुरक्षा का है.
लंबी लड़ाई के बाद मिला था ओवरब्रिज
ये ओवरब्रिज जनता की एक लंबी लड़ाई का नतीजा था. रेलवे फाटक पर हर दिन हजारों लोग घंटों फंसे रहते थे. सरकार ने रास्ता दिया, लेकिन ऐसा कि लोग अब वहां से गुजरने की हिम्मत नहीं कर पा रहे. पुल का जो हिस्सा सबसे खतरनाक है, वो मोड़ वाला. वही सबसे ज्यादा ट्रैफिक का सामना करेगा. कल्पना कीजिए कि रात में कोई बाइक सवार या स्कूटी वाला उस मोड़ पर फिसले, तो उसका जिम्मेदार कौन होगा? सरकार या वो इंजीनियर जिसने “स्पेस नहीं थी” कहकर खतरनाक निर्णय लिया? अगर जनता ही योजना की त्रुटियां उजागर कर रही है, तो पूछिए सरकार से कि क्या उनके नक्शों में आम आदमी की जान की कोई जगह भी है या नहीं?