बिल भरने पर भी दो महीने से नहीं आ रही थी बिजली, झारखंड हाईकोर्ट ने अफसरों को लगाई लताड़, कहा - तत्काल चालू करो
झारखंड के रांची निवासी संतोष शर्मा हाईकोर्ट के जज से अपनी पीड़ा सुनाते हुए कहा कि तपती गर्मी में मेरे बच्चे बिजली न होने से पढ़ नहीं पाए. हमने सारी रातें तपती गर्मी में बिताईं. JBVNL ने बच्चों का भोजन रखने या पानी कूल करने से वंचित किया. ऐसा लग रहा है जैसे हमें कुछ भी गलत किए बिना बेवजह सजा दी जा रही है.

झारखंड हाईकोर्ट ने बिजली डिस्कनेक्शन से जुड़े एक मामले में बड़ा दिया है. हाईकोर्ट ने कहा कि बिल चुकाने सहित सभी कानूनी जिम्मेदारियों के बाद भी अगर भीषण गर्मी के दौरान एक उपभोक्ता को बिना बिजली के रहना एक गंभीर मसला है. अदालत ने बिजली वितरण निगम लिमिटेड के अफसरों को फटकार लगाते हुए कहा कि नागरिक द्वारा अपने कानूनी दायित्वों को पूरा करने के बाद बिजली जैसी आवश्यक सेवाओं को मनमाने ढंग से नहीं रोका जा सकता है. अधिकारियों को व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा के लिए प्रभावी कदम उठाने चाहिए.
झारखंड हाईकोर्ट ने झारखंड बिजली वितरण निगम लिमिटेड (JBVNL) को निर्देश दिया है कि वह रांची के एक निवासी के घन में बिजली कनेक्शन तत्काल प्रभाव से बहाल करे, जो सभी बकाया और कनेक्शन शुल्क का भुगतान करने के बावजूद 60 दिनों से अधिक समय से बिजली के बिना नारकीय जीवन जीने को मजबूर है.
अपने फैसले में हाईकोर्ट ने कहा कि एक बार नागरिक द्वारा अपने कानूनी दायित्वों को पूरा करने के बाद बिजली जैसी आवश्यक सेवाओं को मनमाने ढंग से नहीं रोका जा सकता है और राज्य के अधिकारियों को व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा के लिए निर्णायक रूप से कार्य करना चाहिए.
क्या है पूरा मामला?
याचिकाकर्ता रांची निवासी संतोष शर्मा ने JBVNL स्थानीय पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों के माध्यम से निवारण की मांग करने के बार-बार प्रयासों के बाद हाईकोर्ट का रुख किया था. मार्च 2025 में उनकी बिजली आपूर्ति काट दी गई.
संतोष शर्मा ने बताया कि अगले दो महीनों में उन्होंने सभी बकाया चुकाने के लिए कई किस्तों में करीब 68 हजार रुपये का भुगतान किया, लेकिन उनकी बिजली बहाल नहीं हुई. अदालत में जेबीवीएनएल ने स्वीकार किया कि कोई बकाया नहीं है, लेकिन दावा किया कि पड़ोसियों से जुड़े भूमि विवाद की वजह से 'बाहरी लोगों द्वारा बाधा' के कारण उसके कर्मचारी लाइन को फिर से जोड़ने में असमर्थ थे.
जस्टिस गौतम कुमार चौधरी की एकल पीठ ने कहा कि 'कोई तीसरा पक्ष कनेक्शन की बहाली में हस्तक्षेप नहीं कर सकता. जिला प्रशासन को दो दिनों के भीतर फिर से कनेक्शन सुनिश्चित करने में बिजली बोर्ड की सहायता करे.
क्या बिजली कनेक्शन होना मौलिक अधिकार नहीं?
इंडियन एक्सप्रेस ने पीड़ित संतोष शर्मा के हवाले से कहा, - 'याची को कुछ भी गलत किए बिना सजा दी जा रही है. 68 हजार रुपये से अधिक का बकाया चुकाने के बावजूद मार्च के अंत से जून तक हमारी बिजली काट दी गई. हमने पुलिस से लेकर आरटीआई और मुख्यमंत्री कार्यालय तक हर तरह की कोशिश की, लेकिन हाई कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद ही उम्मीद लौटी है. अब भी लोग कनेक्शन वापस जोड़ने में बाधा डाल रहे हैं. क्या अपने घर में बिजली होना मौलिक अधिकार नहीं है?"
पीड़ित ने कहा, "मेरे बच्चे पढ़ नहीं पाए, हमने ये सारी रातें तपती गर्मी में बिताईं और यहां तक कि भोजन रखने या पानी लाने जैसे बुनियादी अधिकार भी रोजमर्रा की लड़ाई बन गए. ऐसा लगा जैसे हमें कुछ भी गलत किए बिना सजा दी जा रही है."
जेबीवीएनएल के तर्क पर अदालत का रुख सख्त
जेबीवीएनएल के कर्मचारियों ने अदालत को बताया कि स्थानीय लोगों द्वारा भूमि विवाद का हवाला देते हुए पीड़ित के घर बिजली कनेक्शन बहाली से रोका जा रहा है. कोर्ट ने सही आदेश दिया कि इस तरह के तीसरे पक्ष के हस्तक्षेप का इस्तेमाल बिजली से वंचित करने के लिए नहीं किया जा सकता, जो एक आवश्यक सेवा है और निर्देश दिया कि जिला प्रशासन की मदद से कनेक्शन तत्काल बहाल करें.
लोगों को हाईकोर्ट के आदेशों की परवाह नहीं
चौंकाने वाली बात यह है कि हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद स्थानीय लोगों ने मंगलवार शाम को कनेक्शन को रोकने का प्रयास किया, जिससे पुलिस की मौजूदगी के बावजूद जेबीवीएनएल अधिकारियों को वापस लौटना पड़ा.